By अनन्या मिश्रा | Apr 03, 2025
भारत के सबसे प्रसिद्ध सूफी संतों में से एक रहे सैयद मुहम्मद निज़ामुद्दीन औलिया का 03 अप्रैल को निधन हो गया था। उनको हजरत निज़ामुद्दीन और महबूब-ए-इलाही के नाम से भी जाना जाता है। वह एक सुन्नी मुस्लिम विद्वान और चिश्ती सूफी संत थे। निजामुद्दीन औलिया भी अन्य सूफी संतों की तरह अल्लाह को महसूस करने के लिए प्रेम पर जोर दिया करते थे। निजामुद्दीन औलिया का मानना था कि अल्लाह से प्रेम में मानवता का प्रेम निहित है। उनका प्रभाव सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के मुसलमानों पर था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर निजामुद्दीन औलिया के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
उत्तर प्रदेश में 1238 को निजामुद्दीन औलिया का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम सैयद अब्दुल्ला बिन अहमद अल हुसैनी बदायुनी और मां का नाम बीबी जुलेखा था। बताया जाता है कि जब निजामु्द्दीन औलिया 5 साल के थे, तो उनके पिता की मौत हो गई थी। वहीं 21 साल की उम्र में निजामुद्दीन सूफी संत फरीदुद्दीन गंजशकर के शिष्य बन गए। बता दें कि सूफी संत फरीदुद्दीन गंजशकर को बाबा फरीद के नाम से जाना जाता था। वहीं निजामुद्दीन उनके शिष्य अजोधन गए थे। जब तक बाबा फरीद जिंदा रहे, वह हर साल रमजान के पाक महीने में अजोधन जाया करते थे।
बाबा फरीद के उत्तराधिकारी
बता दें कि जब तीसरी बार निजामुद्दीन औलिया अजोधन गए, तो बाबा फरीद ने उनको अपना उत्तराधिकारी बना दिया। लेकिन उनकी यात्रा के फौरन बाद निजामुद्दीन को खबर मिली कि बाबा फरीद की मृत्यु हो गई है। निजामुद्दीन औलिया दिल्ली में कई स्थानों पर रहे और अंत में वह यूपी के गियासपुर में बस गए। निजामुद्दीन ने अपना खानकाह बनाया, जिसमें अमीर और गरीब सभी तरह के लोगों की भीड़ रहती थी।
मृत्यु
निजामुद्दीन औलिया के कुछ शिष्य थे, जिनमें शेख नसीरुद्दीन चिराग डेलहवी और अमीर खुसरो भी शामिल हैं। बता दें कि 03 अप्रैल 1325 में निजामुद्दीन औलिया ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है। इस दरगाह पर हर रोज तीर्थयात्रियों की भीड़ रहती है, वहीं शाम के समय यहां पर लोग कव्वाली सुनने भी आते हैं।