जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के मोदी सरकार के फैसले को विपक्ष की ज्यादातर पार्टियों ने समर्थन किया। सबसे ज्यादा विरोध कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों ने ही किया। हां, सरकार के इस फैसले का विरोध करने वाली पार्टियों में जदयू भी शामिल है जो NDA गंठबंधन का हिस्सा है। जदयू के इस फैसले की सबसे ज्यादा चर्चा रही। जदयू NDA का हिस्सा होने के बावजूद भी केंद्र सरकार के कई फैसले के खिलाफ अपनी राय रखता रहा है। जदयू ने तीन तलाक पर भी केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया था। अनुच्छेद 370 और तीन तलाक पर संसद में हुए मतदान के समय जदयू ने वॉकआउट किया था। जदयू के इस फैसले को जानकार पार्टी का दोहरा रवैया बता रहे हैं क्योंकि उनके वॉकआउट से इन दोनों कानूनों को राज्यसभा में पास करवाने में सरकार को मदद मिली।
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जदयू बार-बार जयप्रकाश नारायण और जॉर्ज फर्नांडीज का हवाला देकर तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और राममंदिर के मुद्दे पर भाजपा के रूख का विरोध करती है। जदयू के सबसे बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री हर मंच पर इस बात को भी दोहराते रहते हैं। वह यह भी कहते है कि भाजपा-जदयू के बीच अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडीज की मौजूदगी में जो Agenda of alliance बना था उसमें जदयू ने तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और राममंदिर के मुद्दे पर अपना रूख साफ किया था और वह उस पर कायम भी है। पार्टी महासचिव केसी त्यागी ने पहले ही दिन कहा कि भाजपा लोकतांत्रिक पार्टी है और जेडीयू भी लोकतांत्रिक पार्टी है तथा यह फैसला भाजपा का है, एनडीए का नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे प्रमुख नीतीश कुमार जेपी नारायण, राम मनोहर लोहिया और जॉर्ज फर्नांडीस की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और अनुच्छेद 370 को हटाने के पक्ष में नहीं हैं। हालांकि अब अनुच्छेद 370 को लेकर जदयू के अंदर मतभेद शुरू हो गए हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी को सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए था तो कुछ पार्टी के फैसले से सहमत भी हैं।
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केंद्र सरकार का समर्थन करने वाले नेता यह मानते हैं कि पार्टी के इस रवैये से भाजपा को राष्ट्रवाद के नाम पर बिहार में मदद मिल सकती है जो आने वाले समय में जदयू के लिए ही मुश्किलें खड़ी कर सकता है। धर्मसंकट नीतीश कुमार के सामने है कि वह पार्टी को कैसे एकजुट रख सकते हैं। कभी पार्टी के प्रखर प्रवक्ता रहे अजय आलोक ने तो पहले ही दिन नीतीश कुमार को अपने फैसले पर पुर्नविचार करने की नसीहत दे दी थी। वहीं पार्टी के कुछ सांसद संसद के बाहर केंद्र के इस फैसले का खुलकर विरोध करने से बच रहे हैं। इस सब को देखते हुए जदयू ने अब अपना रवैया थोड़ा नरम करते हुए केंद्र सरकार के इस फैसले के साथ खड़े होने की बात कही है। जदयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश के करीबी आरसीपी सिंह ने कहा कि जब कोई कानून प्रभावी हो जाता है तो यह देश का कानून हो जाता है और सभी को इसको स्वीकार करना चाहिए।
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जदयू में नंबर दो की हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह ने आगे कहा कि भाजपा को इस बात की जानकारी है कि 1996 से ही इस मामले में हमारा रूख क्या है। अब कानून बनने के बाद हम इसका सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय जार्ज फर्नांडिस की आत्मा को ठेस न पहुंचे इसलिए भी जदयू ने केंद्र के इस फैसले का संसद में विरोध किया। लेकिन अपने ही नेता यह भी सवाल उठा रहे हैं कि जार्ज फर्नांडिस के साथ पार्टी ने जो किया था क्या वह उनका सम्मान था। जदयू का बदला हुआ यह रवैया साफ बता रहा है कि पार्टी दबाव में है। जानकार इसे नीतीश का यू-टर्न भी मान रहे हैं और वह अपने इस स्वभाव के लिए जाने भी जाते हैं। एक बात को साफ है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुानव को देखते हुए जदयू राष्ट्रवाद के नाम पर भाजपा से कोई बैर नहीं मोल लेना चाहती। हालांकि तीन तलाक पर जदयू का विरोध बिहार में भाजपा के लिए फायदेमंद भी साबित हो सकता है और गठबंधन के ही बहाने ही सही भाजपा को मुस्लिम वोट मिल सकता है।