मंदी मंदी कहते रहने से कुछ नहीं होगा, धैर्य रखें, 6 से 9 महीने में ही वृद्धि की राह पर होगा भारत

By नीरज कुमार दुबे | Jun 01, 2020

2019 में जब मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई तो उसने देश की अर्थव्यवस्था का आकार 5 ट्रिलियन डॉलर का बनाने के लिए तमाम कदम उठाये लेकिन कोरोना संकट ने उन पर लगभग पानी फेर दिया है और अब सरकार को नये सिरे से सबकुछ करना होगा। प्रधानमंत्री देश के नाम अपने हालिया संबोधनों में कई बार यह बात स्पष्ट कर चुके हैं कि देश की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और यह जल्दी ही पहले की तरह तेज रफ्तार से विकास की राह पर दौड़ने लगेगी। सरकार इसके लिए प्रयास कर भी रही है और देश को आत्मनिर्भर बनाने का जो अभियान अब छेड़ा गया है वह जल्दी ही देश को सफलता दिलायेगा लेकिन उसके लिए जरूरी है कि सकारात्मक भाव से आगे बढ़ा जाये, नकारात्मक सोच का त्याग आगे बढ़ने के लिए बेहद जरूरी है।


प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में वित्त मंत्रालय का जिम्मा निर्मला सीतारमण को सौंप कर सभी को चौंका दिया था क्योंकि यह माना जा रहा था कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली के सरकार में शामिल होने के बाद इस मंत्रालय का जिम्मा पीयूष गोयल को सौंपा जा सकता है लेकिन प्रधानमंत्री ने पहले कार्यकाल में बतौर वाणिज्य मंत्री और रक्षा मंत्री काम कर चुकीं निर्मला पर भरोसा जताया। निर्मला सीतारमण ने वित्त मंत्रालय संभालते ही बेहद कम समय में मोदी सरकार-2 का पहला आम बजट प्रस्तुत कर यह दर्शा दिया था कि उन्हें अर्थशास्त्र की अच्छी समझ है। लेकिन निर्मला सीतारमण के खिलाफ जिस तरह कुछ बुद्धिजीवियों ने अभियान छेड़ा उससे उनकी सफलताएँ दब कर रह गयीं। देखा जाये तो वित्त मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण के कार्यों का अभी तक निष्पक्ष आकलन नहीं हुआ है। यकीनन उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने और पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए असाधारण उपाय किये हैं। देश ने उनके रूप में ऐसा वित्त मंत्री पहली बार पाया है जो समाज के विभिन्न वर्गों के साथ बजट पूर्व चर्चाओं में ही सिर्फ विश्वास नहीं रखता है बल्कि बजट के बाद भी बड़े-बड़े शहरों में जाकर लोगों की राय लेता है। याद कीजिये इससे पहले किस वित्त मंत्री ने कॉरपोरेट टैक्स में 10 प्रतिशत की बड़ी कटौती की थी? याद कीजिये इससे पहले किस वित्त मंत्री ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए देश में विनिर्माण कंपनी लगाने वाले कारोबारियों को भी राहत प्रदान करते हुए उनके कर की दर को 10 प्रतिशत तक घटा दिया हो? 

 

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निर्मला सीतारमण के ऐतिहासिक कदम


लॉकडाउन के समय में देश को दिये गये आर्थिक पैकेजों और तमाम तरह की राहतों आदि से भी लोगों को सीधा लाभ मिला है। साथ ही निजी क्षेत्र के लिए खोले गये कई क्षेत्रों और विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ायी गयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा का लाभ भी देश को मिलेगा। स्वर्गीय अरुण जेटली के बाद निर्मला सीतारमण दूसरी ऐसी वित्त मंत्री हैं जिनके प्रयासों से कालाधन रखने वालों पर नकेल कसी गयी है और वित्तीय अनुशासन बढ़ा है। यह सही है कि राजकोषीय घाटा बढ़ा है लेकिन मुद्रास्फीति लगातार नियंत्रणा में है। वित्त मंत्री ने एनपीए के मुद्दे पर बैंकों पर लगाम भी लगायी है। साथ ही वित्त मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण की एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि बैंकों के पैसे का घोटाला करने वाले प्रमोटरों को उन्होंने जेल की सलाखों के पीछे पहुँचाया और बड़ी ही समझदारी से महाराष्ट्र के पीएमसी बैंक और निजी क्षेत्र के येस बैंक को डूबने से बचाया जिससे खाताधारकों के हित सुरक्षित रहे। येस बैंक को तो एक महीने से कम समय में ही संकट से उबार लिया गया जिससे देश के बैंकिंग तंत्र में लोगों का विश्वास बना रहा। वित्त मंत्री यह जानती थीं कि संप्रग शासनकाल में कई बैंकों की हालत दयनीय बना दी गयी इसलिए बैंक डूबे तो खाताधारकों का पैसा नहीं डूबे और बैंकिंग व्यवस्था में आम लोगों का भरोसा बरकरार रहे, इसके लिए सरकार ने इस बार के आम बजट में लोगों की मेहनत की कमाई के बड़े हिस्से को सुरक्षित करते हुए डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन 1961 के तहत बैंक जमा की बीमा गारंटी को पांच लाख रुपये कर दिया। यानी बैंक फेल होने पर बैंक ग्राहक के खाते में जमा राशि या पांच लाख रुपये, जो भी कम हो, अदा करने की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक के अधीन आने वाले डिपाजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन की होगी। यही नहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय भी सहज तरीके से हो गया और इसमें किसी तरह की कोई अड़चन नहीं आई। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सीमित संख्या घोटालेबाजों के लिए परेशानी का सबब भी बनेगी।


आलोचक जरा ध्यान दें!


अब जरा उन लोगों की बात कर ली जाये जो कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर शुरू हो चुका है और भारत में अब तक की यह चौथी बड़ी मंदी सबकुछ ले डूबेगी। इस पर यही कहा जा सकता है कि देश में एक बड़ी जनसंख्या की आय घटने की आशंका है। लेकिन एक हालिया अध्ययन के मुताबिक आय घटने के बावजूद लोगों के साफ-सफाई और स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों पर अधिक खर्च बढ़ाने की संभावना है। यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि दूरी जैसे कारकों के चलते ई-वाणिज्य को लेकर लोगों का रूझान बढ़ेगा। सर्वेक्षण में शामिल 49 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह अधिक से अधिक खर्च विटामिन, औषधि और अन्य स्वास्थ्य अनुपूरक सामान की खरीद पर करेंगे। इसके अलावा जो लोग कारोबार घटने की बात कह रहे हैं वह जरा पिछले दो सप्ताह के ई-वाणिज्य कंपनियों को मिले ऑर्डर के आंकड़ों पर नजर डाल दें।

 

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लोकल के लिए वोकल सिर्फ नारा ना रहे


सरकार लोकल के लिए वोकल का नारा तो दे रही है लेकिन वहीं दूसरी ओर यह चिंता की बात है कि भारत आज भी कई सामान्य इस्तेमाल की चीजों के मामले में आयात पर निर्भर है। देश में अब भी फर्नीचर, खिलौने, खेलकूद के जूतों और अन्य विभिन्न प्रकार की चीजों का आयात होता है जबकि यह सर्वविदित है कि यह स्वदेश में बहुतायत में बन सकते हैं क्योंकि भारत में कुशल मानवशक्ति के साथ ही तकनीकी ज्ञान भी उपलब्ध है। उद्योगों को चाहिए कि वह इस दिशा में सामान्य से हटकर नये विचारों पर काम करें और ऐसे उत्पाद तैयार करें जो कि टिकाऊ और वहनीय हों।


इतने चिंतित नहीं हों


वहीं जो लोग भारत की जीडीपी में तीव्र गिरावट को लेकर चिंता में डूबे जा रहे हैं उन्हें इस बात का संज्ञान होना चाहिए कि भले चालू वित्त वर्ष के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद में पांच प्रतिशत गिरावट आये लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसमें वापस पांच प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। यह बात हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कोविड-19 कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है। हमारे कारखाने खड़े हैं, हमारी ढांचागत सुविधायें जहां हैं वहां खड़ी हैं और हमारी परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से बरकरार है। जैसे ही लॉकडाउन पूरी तरह हटा लिया जायेगा और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने के लिये पूरी तरह हरी झंडी दी जायेगी, हम जल्द ही आगे बढ़ जायेंगे और कम से कम पांच प्रतिशत की वृद्धि दर पर पहुंच जायेंगे। मंदी के इस दौर में भी जो दो अच्छी चीजें दिख रही हैं वह हैं- हम काफी हद तक आत्मनिर्भर का अर्थ और इसका महत्व समझ गये हैं इसके अलावा इस वर्ष हुआ बंपर कृषि उत्पादन भी देश को संकट से उबारने में सहायक सिद्ध होगा। जो लोग वित्त वर्ष 2019-20 की मार्च तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर ग्यारह साल के निचले स्तर पर आ जाने पर चिंतित हैं उन्हें उद्योग जगत की वह प्रतिक्रिया देखनी चाहिए जिसमें उसने इस बात की उम्मीद जतायी है कि देश की अर्थव्यवस्था छह से नौ महीने में वृद्धि की राह पर लौट आयेगी।

 

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20 लाख करोड़ के पैकेज का मजाक उड़ाना गलत


राजनीतिक दल चाहे जो कहें लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का सरकार के 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के बारे में यही कहना है कि सरकार की राजकोषीय कठिन परिस्थितियों के बीच उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। आर्थिक पैकेज की सराहना हाल ही में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने भी की थी और आरबीआई के एक अन्य पूर्व गवर्नर बिमल जालान ने भी सरकार द्वारा कोविड-19 से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए उठाए गए कदमों को ‘काफी सकारात्मक’ करार दिया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इन उपायों से अर्थव्यवस्था में गिरावट को रोकने में मदद मिलेगी। बिमल जालान का स्पष्ट कहना है कि आज स्थिति 1991 के भुगतान संतुलन के संकट जैसी नहीं है। आज भारत के पास संसाधन हैं। साथ ही किसी भी संकट से निबटने के लिए विदेशी मुद्रा का भंडार है। उन्होंने कहा कि आज हमारे पास क्षमता है कि हम जो करना चाहते हैं, कर सकते हैं।


बहरहाल, जो लोग सरकार के आर्थिक पैकेज की यह कह कर आलोचना कर रहे हैं कि यह अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों की तुलना में काफी कम है, तो उन्हें यह समझना होगा कि विकसित और विकासशील देशों में अंतर होता है। यदि आप विकसित देशों को देखें, तो उनकी वृद्धि दर दो या तीन प्रतिशत है, लेकिन इसके बावजूद उनकी प्रति व्यक्ति आय काफी अधिक है। विकासशील देशों में छह से सात प्रतिशत की ऊंची वृद्धि दर में आपको महंगाई को भी काबू में रखना होता है, जिससे प्रति व्यक्ति आय बढ़े और यकीनन सरकार इस दिशा में पिछले छह साल से काफी हद तक सफल होती आ रही है।


-नीरज कुमार दुबे


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