देश में फैलते एनजीओ के मकड़जाल पर लगाम लगाना जरूरी

By राजेश कश्यप | Feb 06, 2017

देश में एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) का मकड़जाल चरम पर पहुंच चुका है। इस समय देशभर में 29,99,623 स्वंयसेवी संगठन (एनजीओ) पंजीकृत हैं। आश्चर्य का विषय है कि अकेले महाराष्ट्र में 5 लाख से अधिक एनजीओ पंजीकृत हैं। इसी तरह बिहार में 61000 और असम में 97000 स्वयंसेवी संस्थाओं का महाजाल फैला हुआ है। प्रत्येक राज्य में यही हाल है। एक छोटे से राज्य में भी हजारों स्वयं संस्थाओं का साम्राज्य स्थापित है। ये गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सरकारी अनुदान (ग्रान्ट) और सामाजिक दान व चन्दा लेकर अपनी गतिधियां संचालित करते हैं। देश में पंजीकृत लगभग 30 लाख एनजीओ में से कई लाख एनजीओ ऐसी भी हैं, जो विदेशों से बड़ी संख्या में पैसा हासिल कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर तो आयकर रिटर्न भी नहीं भरते हैं और उनका हिसाब भी कोई लेने वाला नहीं है। ऐसे एनजीओ धड़ल्ले से चल रहे हैं।

गत वर्ष इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रूख जताते हुए केन्द्र सरकार को लताड़ लगाते हुए पूछा कि क्या एनजीओ के लिए कोई कानून है? सीबीआई ने सितम्बर, 2015 में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि पंजीकृत एनजीओ में से मात्र 9.33 प्रतिशत ने ही आयकर रिटर्न भरा है। इसका मतलब पंजीकृत 30 लाख एनजीओ में से 10 फीसदी ने भी आयकर नहीं भरा। इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से पूछा है कि क्या इनके प्रभावी नियमन और लेनदेन में पारदर्शिता के लिए विधि आयोग ने किसी कानून की सिफारिश की है? चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस खानविलकर की खंडपीठ ने कहा कि एनजीओ ने अब तक क्या किया, यह पता लगाना असंभव है। लेकिन आगे से इन्हें पारदर्शी होना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि वकील एमएल शर्मा ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के एनजीओ हिन्द स्वराज ट्रस्ट के खिलाफ फण्ड में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में याचिका का दायरा बढ़ाकर सभी एनजीओ इसमें शामिल कर दिए थे।

 

कहने की आवश्यकता नहीं है कि अधिकतर एनजीओ समाजसेवा के नाम पर गोरखधंधा करते हैं। ऐसे एनजीओ पर अंकुश लगाना बेहद आवश्यक है। इसके लिए, सर्वप्रथम इन सामाजिक संस्थाओं के पंजीकरण प्रक्रिया को बदलने की आवश्यकता है। सामान्यतः देश में इन एनजीओ का पंजीकरण सोसाइटीज एक्ट 1860, इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950, इंडियन कंपनीज एक्ट 1956 (दफा 25), रिलीजियस इनडाउमेंट एक्ट 1863, द चैरिटेबल एण्ड रिलीजियस ट्रस्ट एक्ट 1920, मुसलमान वक्फ एक्ट 1923 आदि के तहत होता है। एनजीओ के पंजीकरण की प्रक्रिया इतनी सरल और सुगम है कि कोई भी व्यक्ति चंद कागजों की खानापूर्ति करके अपनी एनजीओ बना लेता है। कमाल की बात तो यह है कि काफी शातिर लोगों ने तो संस्थाओं का पंजीकरण करवाने की दुकान ही खोल रखी हैं। ये लोग एनजीओ पंजीकरण से लेकर प्रोजेक्ट बनाने तक का ठेका लेते हैं और बदले में मुंहमांगी रकम ऐंठते हैं। बेहद आश्चर्य की बात तो यह है कि ये ठेकेदार प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में पंजीकृत संस्था की वार्षिक गतिविधियों से लेकर उसके खर्च तक के दस्तावेज भी तैयार करके देते हैं, भले ही संस्था ने किसी को मटके का एक गिलास पानी तक न पिलाया हो। ऐसे शातिर लोग अपने पूरे परिवार और सगे संबंधियों के नाम पर दर्जनों एनजीओ का संचालन इसी तरह कागजों में करते रहते हैं। 

 

संस्थाओं के पंजीकरण की प्रक्रिया को सख्त और पारदर्शी बनाया जाना, अब समय की कड़ी मांग बन चुकी है। जो भी संस्था पंजीकृत हो, उसके कार्यालय, लक्ष्य, सदस्य आदि का पूरा खुलासा सार्वजनिक स्तर पर होना चाहिए। संस्थाओं का पंजीकरण सीमित अवधि पाँच या दस साल के लिए होना चाहिए। संतोषजनक कार्य निष्पादन के आधार पर उन्हें आगामी निश्चित अवधि के लिए नवीनीकृत करने का प्रावधान किया जाना चाहिए। पंजीकृत संस्थाओं को सरकारी अनुदान व सामाजिक चन्दा व दान देने के मामले में भी पारदर्शिता होनी चाहिए। सरकारी अनुदान पास होने से पूर्व पिछले तीन वर्षों के कार्यों का मूल्यांकन सोशल ऑडिट के जरिए करवाना चाहिए और स्थानीय इकाई ग्राम सभा आदि से तसदीक करवानी चाहिए। संस्था द्वारा किया गया कार्य संतोषजनक पाए जाने पर ही उसे सरकारी अनुदान के लिए नामित किया जाना चाहिए। सरकारी अनुदान व सामाजिक चन्दा व दान प्राप्त राशि को भी सार्वजनिक करने के लिए सशक्त, सुलभ और अनिवार्य प्रावधान बनाने की भी कड़ी आवश्यकता है। शातिर लोग समाजसेवा के नाम पर करोड़ों रूपया देश-विदेश से सामाजिक दान के रूप में प्रतिवर्ष हासिल करते हैं और किसी को कानोंकान तक खबर नहीं लगती है।

 

इसके साथ ही एनजीओ के हस्तांतरण पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि शातिर लोग अनेकों संस्थाओं का पंजीकरण केवल इसीलिए करवाते हैं, ताकि बाद में उन्हें मुंहमांगी कीमत पर बेचकर मोटी कमाई कर सकें। इस तरह हस्तांतरण के जरीये खरीद-फरोख्त की हुई संस्थाओं का काम सिर्फ कागजों में ही होता है और आगे उनका प्रयोग उनसे भी शातिर लोग पैसे के दम पर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट हासिल करके सरकार व समाज को करोड़ों का चूना लगाकर ऐशोआराम व अय्याशी का जीवन जीते हैं। इसके अलावा प्रत्येक एनजीओ के मुख्य कार्यालय के बाहर एक विशेष सूचना पट्ट (नोटिस बोर्ड) लगवाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए, जिस पर मुख्यतः संस्था को मिलने वाले सरकारी अनुदानों व चन्दा अथवा दान राशियों का पूरा विवरण, खर्च राशि का विवरण, संस्था के पदाधिकारियों का परिचय, संस्था के उद्देश्य, कार्यक्षेत्र, लाभार्थियों का विवरण, प्रस्तावित कार्यक्रम, वर्तमान में जारी कार्यक्रमों का पूरा विवरण, सूचना अधिकारी का नाम, संस्था का टेलीफोन नंबर व ईमेल आदि सभी प्रमुख जानकारियां अंकित होनी चाहिए। सभी एनजीओ को आरटीआई के दायरे में लाते हुए प्रत्येक संस्था में सूचना अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान भी किया जाना चाहिए।

 

संस्थाओं का निरीक्षण यानी मॉनीटरिंग प्रक्रिया एकदम व तुरन्त बदलने की आवश्यकता है। संस्थाओं का समयबद्ध तरीके से औचक निरीक्षण होना चाहिए क्योंकि निरीक्षणकर्ता पहले ही निरीक्षण का दिन और समय घोषित कर देते हैं। ऐसे में शातिर संस्था संचालक अपने प्रोजैक्ट का आकर्षक डैमो लगाकर तैयार हो जाते हैं। इसके साथ ही निरीक्षणकर्ता के लिए पैसे के साथ-साथ अय्याशी की हर चीज की व्यवस्था कर ली जाती है। निरीक्षण गोपनीय तरीके से औचक किया जाना चाहिए और साथ ही फोटोग्राफी व विडियोग्राफी भी करवाई जानी चाहिए। इसके साथ ही निरीक्षणकर्ता द्वारा परियोजना के लाभार्थियों व स्थानीय लोगों से भी अकेले में बात करनी चाहिए और उनके सभी गिले-शिकवे व सुझाव दर्ज करने चाहिएं। निरीक्षण के दौरान कार्य से संबंधित हर दस्तावेज का बारीकी से निरीक्षण होना चाहिए और उनको तस्दीक व हस्ताक्षरित करने वाले व्यक्तियों की भी पड़ताल करनी चाहिए। काफी संस्थाएं नकली हस्ताक्षर और गैर-कानूनी तौरपर बड़े-बड़े अधिकारियों की मोहरें व पैड बनवाकर दस्तावेज तैयार करती हैं और भारी फर्जीवाड़े को अंजाम देती हैं। निरीक्षणकर्ता की पूरी रिपोर्ट भी यथाशीघ्र सार्वजनिक किए जाने का प्रावधान बनाया जाना चाहिए।

 

जिन एनजीओ में बच्चों व महिलाओं से संबंधित परियोजनाओं का संचालन होता है अथवा जहां महिलाएं काम करती हैं, उन संस्थाओं पर बारीकी से नजर रखने की आवश्यकता है। ऐसी संस्थाओं में बड़े पैमाने पर एनजीओ संचालक महिलाओं व बच्चों का शारीरिक व मानसिक शोषण करते रहते हैं और उनकी खबर किसी को भी नहीं लग पाती है। ऐसी संस्थाओं में कदम-कदम पर पारदर्शिता की आवश्यकता है और विश्वसनीय एजेन्सियों व अधिकारियों द्वारा प्रतिमाह निरीक्षण किया जाना चाहिए। स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। ऐसी संस्थाओं में किसी भी आम व सभ्य आदमी द्वारा वहां के आश्रित बच्चों व महिलाओं की कुशलक्षेम पूछने की अनुमति होनी चाहिए। प्रत्येक त्यौहार व राष्ट्रीय पर्व पर संस्था में रह रहे बेबस व निराश्रित बच्चों व महिलाओं की सार्वजनिक भागीदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। किसी भी संस्था में, किसी भी स्तर पर कोई शिकायत मौखिक अथवा लिखित मिलती है, तुरंत उसका संज्ञान जिला प्रशासन के साथ-साथ राज्य स्तर भी लेने का प्रावधान होना चाहिए।

 

- राजेश कश्यप

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