By अजय कुमार | Mar 11, 2019
उत्तर प्रदेश में ताजमहल के बाद सबसे अधिक चर्चा सुबह−ए−बनारस और शाम−ए−अवध की होती है। बाबा भोलेनाथ की नगरी में प्रातःकाल जब सूर्य की लालिमा माँ गंगा की अविरल धारा को चूमती हुई बनारस के घाटों को अपने आलिंगन में लेती है तो ऐसा लगता है कि जैसे पूरा का पूरा बनारस सूर्य की लालिमा से प्रकाशमान हो गया हो। माँ गंगा के घाटों से कुछ कदम दूरी पर ही विराजमान हैं त्रिलोक के स्वामी बाबा भोलेनाथ। भोर की बेला में बाबा भोलेनाथ के भक्त जब उनके नाम का जयकारा लगाते हुए बाबा विश्वनाथ मंदिर पहुंचते हैं तो सुबह−ए−बनारस में 'चार चांद' लग जाते हैं। आज भले ही उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हमारे बीच नहीं हों लेकिन उनकी शहनाई की मधुर धुन और बनारस की सुबह का रिश्ता कौन भूल सकता है।
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रामायण में वर्णित कथन के अनुसार अवध के राजा राम ने लंका से लौटने के बाद अपने अनुज भाई लक्ष्मण को अवध से करीब 40 मील दूर स्थित एक स्थान उपहार स्वरूप दिया था, जिसका नाम लक्ष्मणपुर पड़ा। रामायण में ही लिखित साक्ष्यों से यह पता चलता है कि लक्ष्मणपुर एक समृद्धशाली शहर था। वहां पर व्यापार अपनी पराकाष्ठा पर था तथा वहाँ के रास्ते सदैव हाथी घोड़ों के आवागमन से भरे रहते थे। लक्ष्मणपुर एक संस्कृत नाम है जिसका संधिविच्छेद इस प्रकार से है− लक्ष्मणपुर। पुर का अर्थ है 'स्थान' तो यह दोनों शब्द मिलकर यह बताते हैं कि लक्ष्मण से जुड़ा स्थान। 11वीं शताब्दी तक लखनपुर (या लक्ष्मणपुर) के नाम से यह शहर जाना जाता था जो कि बाद में लखनऊ के रूप में जाना जाने लगा।
लखनऊ ने मुगलकाल में भी काफी समृद्धि हासिल की। जब लखनऊ नवाबों की धरती बनी तो तो शेरो−शायरी यहां की तहजीब में रच−बस गई। लखनऊ के नवाबी मिजाज के कारण इसे रंगीन और नृत्य आदि से सराबोर प्रस्तुत किया गया है। यहाँ की गलियों में शाम के समय विभिन्न पकवान, तवायफों के नृत्य और हर जगह खुशी का माहौल ऐसा लगता है मानो दुनिया की सारी उदासी लखनऊ आकर दम तोड़ देती हो। लखनऊ की शाम को शायरों ने बड़ी तल्लीनी के साथ अपनी शायरियों में स्थान दिया है। कई कहावतें भी शाम−ए−अवध और सुबह−ए−बनारस पर आधारित हैं जिनमें से एक है शाम−ए−अवध को निकल जाते हो घर से और लौटते सुबह−ए−बनारस हो।
बनारस और अवध की जितना समृद्ध इतिहास है उतना ही यहां का सियासी मिजाज है। दोनों ही जगह सियासत के कई सूरमाओं ने जन्म लिया। आज भी कौन होगा देश का भावी प्रधानमंत्री ? की चर्चा होती है तो बनारस और अवध क्षेत्र का नाम सबसे आगे नजर आता है। अवध क्षेत्र की सियासी महत्ता को समझना हो तो सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सामने आता हैं जो अवध की सरजमीं से निकल कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। बात वाराणसी की कि जाए तो यहां से पंडित मदनमोहन मालवीय, लाल बहादुर शास्त्री, सम्पूर्णानंद, लक्ष्मण आचार्य, मुकुल बनर्जी, श्याम देव राय चौधरी, पंडित कमलापति त्रिपाठी, अनिल शास्त्री, मुरली मनोहर जोशी जैसी तमाम सियासी हस्तियों ने जिले का नाम रोशन किया। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी वाराणसी से ही सांसद हैं।
वाराणसी और अवध (लखनऊ, अमेठी, रायबरेली), दोनों ही क्षेत्रों में इस बार भी सियासी पारा इतना गरम है कि सात समुंदर पार भी इसकी धमक सुनाई दे रही है। चुनाव का बिगुल बजते ही यह चर्चा आम होने लगी है कि अवध का इलाका 2019 में भी देश की राजनीति का मुख्य केंद्र बनेगा। प्रियंका गांधी वाड्रा के सीधे तौर पर सियासत का रूख करने का यहां असर भी दिखाई दे रहा है। वह एक तरफ रायबरेली संसदीय सीट में जाकर अपनी सांसद मां सोनिया गांधी के निर्वाचन की जिम्मेदारी संभाल रही हैं तो चर्चा यह भी है कि प्रियंका के चचेरे भाई वरुण गांधी इस बार पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर संसदीय सीट से बीजेपी उम्मीदवार हो सकते हैं। कांग्रेस आध्यक्ष और पार्टी के भावी प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी अपने अमेठी संसदीय सीट में आगामी चुनाव की रिहर्सल पहले से ही प्रारम्भ कर चुके हैं। बीजेपी ने यहां राहुल गांधी की मजबूत घेराबंदी कर रखी है। यहां से बीजेपी केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को चुनाव लड़ाने का मन बना चुकी है। पिछली बार भी ईरानी यहां से चुनाव लड़ी थीं और राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी।
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लखनऊ एवं अवध के कुछ जिलों का नाम लम्बे समय से देश−विदेश में कई कारणों से रोशन हुआ है। अवध राजधानी लखनऊ संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले अटल बिहारी बाजपेयी, रायबरेली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाली इंदिरा गांधी तथा अमेठी से चुनाव जीतने वाले राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे और इसी वजह से अवध सुर्खियों में बना रहा।
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उधर, लखनऊ से जुड़ी संसदीय सीटों में सुल्तानपुर एक बार फिर चर्चित हो सकती है और बीजेपी वहां से अपने पूर्व राष्ट्रीय महासचिव वरुण गांधी को पीलीभीत के बजाय वहां से अपना प्रत्याशी बनाने का मन बना सकती है। प्रियंका अपनी मां सोनिया की सीट की देखरेख कर रही हैं तो राहुल अमेठी में यह काम कर रहे हैं। लखनऊ की चर्चा करना भी जरूरी है। केन्द्रीय गृह मंत्री और लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह का रिकॉर्ड रहा है कि वह कभी एक सीट से दोबार चुनाव नहीं लड़े हैं, लेकिन इस बार लखनऊ से चुनाव लड़कर राजनाथ अपना यह रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं। बात वाराणसी की कि जाए तो यहां से फिलहाल नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई बड़ी चुनौती नजर नहीं आ रही है। मोदी को टक्कर देने के लिए यहां से भाजपा के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा, हार्दिक पटेल के बाद हाल फिलहाल में प्रियंका वाड्रा के नाम की भी चर्चा हुई थी, लेकिन अभी तक मोदी के खिलाफ विपक्ष लामबंद नहीं हो पाया है।
-अजय कुमार