एक वक्त था जब भारत खाद्यान्न के मोर्चे पर तंगहाल था, लेकिन हरित क्रांति के बाद से न केवल खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ, बल्कि आज देश के अनाज भंडार लबालब भरे हुए हैं। श्वेत क्रांति ने कमोबेश यही भूमिका दुग्ध उत्पादों के मामले में निभायी है। लेकिन, तिलहन के मामले में देश अभी भी अपनी आवश्यकता की पूर्ति से काफी पीछे है और उसके लिए आयात पर निर्भर है। हालांकि, इस दिशा में कोशिशें हो रही हैं और वैज्ञानिक भी इन प्रयासों को सफलता देने के लिए नई-नई तकनीक विकसित करने में जुटे हैं। इसी कड़ी में सोयाबीन की एक नई किस्म विकसित की गई है।
एमएसीएस (मैक्स)1407 नामक यह किस्म उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ कीटों के प्रति अपेक्षाकृत रूप से अधिक प्रतिरोधी है। यह किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ और पूर्वोत्तर राज्यों की जमीन के लिए विशेष रूप से अनुकूल है। इन राज्यों के किसानों को खरीफ सत्र 2022 के लिए इस नई किस्म के बीज उपलब्ध कराए जाएंगे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि फिलहाल देश में सोयाबीन का रकबा मुख्य रूप से मध्य प्रदेश जैसे क्षेत्रों तक ही सीमित है। ऐसे में, इससे न केवल पारंपरिक फसल उत्पादकों पर दबाव घटेगा, बल्कि पूर्वी भारत के इलाकों में फसल विविधीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा। सरकार स्वयं यह मानती है कि देश में अगली यानी तीसरी हरित क्रांति पूर्वी भारत के माध्यम से ही संभव होगी। ऐसे में, सोयाबीन की यह नई किस्म उसकी आधारशिला रखने में अहम भूमिका निभा सकती है।
वर्ष 2019 के दौरान भारत में नौ करोड़ टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ। इस महत्वपूर्ण फसल का उत्पादन मुख्य रूप से तिलहन के रूप में किया जाता है। साथ ही, यह मवेशियों के लिए भी प्रोटीन का एक अहम और किफायती स्रोत माना जाता है। भारत सोयाबीन के दिग्गज उत्पादकों में से एक है। फिर भी देश में खाद्य तेलों की निरंतर बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए इसके उत्पादन को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। ऐसे में, उच्च पैदावार वाले, बीमारियों से निपटने में सहायक किस्म वाली फसल इस लक्ष्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध हो सकती है।
सोयाबीन का अपेक्षित उत्पादन बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है और वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए यह समाधान तलाशा है। इसके लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई), पुणे ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के साथ मिलकर सोयाबीन की उच्च पैदावार वाला यह बीज विकसित किया है। पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक के उपयोग से उन्होंने मैक्स 1407 किस्म का बीज विकसित किया है, जो प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकता है। यह उन तमाम कीटों के प्रति भी बेहतर प्रतिरक्षा में सक्षम है, जो कीट सोयाबीन की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इन कीटों में लीफ रोलर, स्टीम फ्लाई, व्हाइट फ्लाई आदि प्रमुख हैं। यह बीज मशीनी बुआई के लिहाज से भी अनुकूल है। साथ ही वर्षा आच्छादित पूर्वोत्तर भारत के लिए भी उपयुक्त है।
इस परियोजना में अहम भूमिका निभाने वाले एआरआई के वैज्ञानिक संतोष जयभाई ने अपनी इस उपलब्धि के बारे में कहा है कि 'मैक्स 1407 ने अभी तक उपलब्ध सर्वोत्तम किस्म की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक उत्पादन की संभावनाएं जगाई हैं। साथ ही, प्रचलित किस्मों के मुकाबले भी इसमें 14 से 19 प्रतिशत का इजाफा देखा गया है। इसे 20 जून से 5 जुलाई के बीच कभी भी बोया जा सकता है और इस अवधि में बुआई के दौरान फसल को कोई नुकसान नहीं होता। यह सोयाबीन की अन्य किस्मों के मुकाबले मानसून के साथ बेहतर अनुकूलन करने में सक्षम है।'
मैक्स 1407 की आधी फसल पकने में औसतन 43 दिनों का समय लगता है, जबकि बुआई से 104 दिनों के भीतर पूरी फसल पककर तैयार हो जाती है। इसमें सफेद रंग का फूल, पीले रंग का बीज और काले रंग की नाभिका होती है। इसके बीज में 19.81 प्रतिशत तेल और 41 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसमें पानी और उर्वरक की खपत भी कम होती है।
(इंडिया साइंस वायर)