सिलिकॉन सौर सेल में उपयोग होने वाले अर्द्ध-चालक (सेमीकंडक्टर) में निकेल ऑक्साइड जैसे धातु ऑक्साइड महत्वपूर्ण होते हैं। भारतीय शोधकर्ताओं को आधुनिक संरचना वाले सिलिकॉन सौर सेल में उपयोग होने वाली सस्ती धातु ऑक्साइड परत विकसित करने में सफलता मिली है। इस अध्ययन के बाद सस्ती सौर बैटरी विकसित करने की राह आसान हो सकती है।
सिलिकॉन सौर सेल बनाने के लिए निकेल ऑक्साइड फिल्म (झिल्ली) तैयार करनी होती है, जिसकी मोटाई मनुष्य के बालों की मोटाई से एक लाख गुना कम, नैनो पैमाने पर होती है। नैनो स्तर पर निकेल ऑक्साइड झिल्ली विकसित करने की प्रक्रिया अत्यधिक खर्चीली है, क्योंकि इसके उत्पादन में उपयोग होने वाले उपकरण आयात करने पड़ते हैं। इन झिल्लियों के विकास में उपयोग होने वाले निकेल एसिटाइलसीटोनेट जैसे पूर्ववर्ती घटक भी बेहद महँगे हैं। इस तकनीक का महँगा होना इसके उपयोग की संभावनाओं को सीमित कर देता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं के इस अध्ययन में धातु ऑक्साइड की पतली झिल्ली बनाने की सस्ती प्रक्रिया विकसित की गई है। वर्तमान में प्रचलित प्रक्रिया में उपयोग होने वाली पूर्ववर्ती सामग्री की तुलना में नई विकसित तकनीक में उपयोग की गई सामग्री भी सस्ती है। इसमें सिलिकॉन सब्सट्रेट पर निकेल ऑक्साइड की महीन झिल्ली बनाने के लिए एरोसोल की सहायता से रसायनिक भाप के निक्षेपण की तकनीक का उपयोग किया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि सौर सेल बनाने के लिए धातु ऑक्साइड परत बनाने के लिए विकसित की गई यह तकनीक किफायती है। इसके उपयोग से आधुनिक आर्किटेक्चर वाले सिलिकॉन फोटोवोल्टिक उपकरण बनाने की प्रक्रिया बेहतर होगी, जिससे व्यावसायिक तकनीकों की लागत और जटिलता कम होगी। यह प्रौद्योगिकी विकास के आरंभिक चरण में है। विकास के बढ़ते स्तरों के साथ यह प्रौद्योगिकी उद्योगों में भी अपनायी जा सकेगी।
अध्ययन का नेतृत्व कर रहे शोधकर्ता डॉ कुणाल घोष बताते हैं, ‘‘एरोसोल की सहायता से रसायनिक भाप के निक्षेपण की तकनीक से सिलिकॉन सहित विभिन्न सतहों पर उच्च गुण्वत्ता युक्त पतली झिल्ली बनायी जा सकती है। इसके लिए, एयरोसोल के रूप में भाप अवस्था में पूर्ववर्ती सामग्री का उपयोग किया जाता है। एयरोसोल की मदद से ऑक्साइड आधारित सामग्रियों की विस्तृत श्रेणियों का जमाव सटीक रूप से किया जा सकता है। इसका लाभ सामग्री विज्ञान और इंजीनियरिंग के विभिन्न उपयोगों में किया जा सकता है।’’
शोधकर्ताओं ने निकेल नाइट्रेट से लगभग 15 नैनोमीटर मोटाई की निकेल ऑक्साइड फिल्म विकसित कर उसकी आकृति और संरचना का विश्लेषण किया। उन्होंने सिलिकॉन सब्सट्रेट पर जमायी गई बारीक झिल्ली की डायोड संबंधी विशेषताओं का भी विश्लेषण किया है, और यह सुनिश्चित किया है कि इसमें सौर सेल बनाने के लिए जरूरी गुण उपस्थित हैं।
डॉ घोष ने कहा, “हमने पाया कि इस प्रक्रिया से सौर सेल के लिए धातु ऑक्साइड झिल्ली उत्पादन की लागत कम हो सकती है, और इसका व्यापक उपयोग किया जा सकता है। यह एक नई पद्धति है, जिसमें उत्पादन की प्रचलित तकनीकों की लागत और जटिलता कम करने और सौर उद्योग में नया दौर शुरू करने की संभावना है। चूंकि उपकरण सहित पूरी प्रक्रिया का विकास इन-हाउस हुआ है, ऐसे में, अत्याधुनिक आर्किटेक्चर के सिलिकॉन सोलर सेक्टर में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में भी इससे योगदान मिल सकेगा।’’
यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ मैटेरियल्स साइंस: मैटेरियल्स इन इलेक्ट्रॉनिक्स में प्रकाशित किए गए हैं। डॉ कुणाल घोष के अलावा इस अध्ययन में उनके पीएचडी शोधार्थी सैयद मोहम्मद हुसैन और मोहम्मद सादुल्लाह शामिल हैं।