सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बारे में संसद में उठाई गई चिंताओं का हवाला देते हुए, सरकार ने सोशल मीडिया, डिजिटल न्यूज मीडिया और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) सामग्री प्रदाताओं को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। सोशल मीडिया, डिजीटल मीडिया और ओटीटी को सेफ और सेक्योर बनाने के लिए सरकार ने नई गाइडलाइन को पेश किया। आज हम आपको बताएंगे सरकार द्वारा लाए गए नियमन की दशा और दिशा के बारे में।
केंद्र सरकार सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म्स को लेकर गाइडलाइन्स का ड्राफ्ट लेकर आ गई है. सादी भाषा में – फेसबुक, ट्विटर, ऐमज़ॉन प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के लिए गाइडलाइन. माने आप क्या पोस्ट करेंगे, क्या ट्वीट करेंगे और मनोरंजन के लिए क्या देख पाएंगे, उसके लिए गाइडलाइन
केंद्र सरकार सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए गाइडलाइंस का मसौदा लेकर आई है। सरल भाषा में कहें तो फेसबुक, ट्विटर., ऐमजॉन प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के लिए गाइडलाइन। मतलब कि आप क्या पोस्ट करेंगे, क्या ट्वीट करेंगे और क्या देख पाएंगे इन सब के लिए एक तरह का दिशा-निर्देश। इनफार्मेशन टेक्नॉलाजी (इंटरमेडरी गाइडलाइन और डीजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल 2021 के नाम से सारे नियम बनाए गए।
सबसे पहले आपको सोशल मीडिया के बारे में बताएं तो सोशल मीडिया को अब दो अलग-अलग कैटेगरी में डिवाइड कर दिया गया है।
पहली है इंटरमेडरी सोशल मीडिया, दूसरी है सिग्निफिकेंट इंडेमडरी सोशल मीडिया- सोशल मीडिया कंपनियों को शिकायतों के लिए एक अधिकारी रखना होगा और इसका नाम भी बताना होगा। अब तीन के ऑफीसर को एपाउंट करना होगा। चीफ कंपलाइंस ऑफीसर, ग्रिवलेंस ऑफीसर और एक लोकल नोडल ऑफीसर। लोकल नोडल ऑफीसर को 24 घंटे को लॉ एजेंसियों के साथ टच में रहना होगा ताकि अगर किसी तरह का कंटेट उनके प्लेटफॉर्म पर आता है तो जल्द से जल्द उस पर एक्ट किया जा सके।
सोशल मीडिया कंपनी को अब यूजर्स से 24 घंटे के अंदर-अंदर शिकायत को दर्ज करना होगा। कंपनियों को हर महीने एक रिपोर्ट देनी होगी कि कितनी शिकायत आई और उन पर क्या कार्रवाई हुई। उन्हें 15 दिन के अंदर इस शिकायत को साल्व भी करना होगा। न्युडिटी के मामलों में शिकायत पर 24 घंटे के भीतर उस कंटेट को हटाना होगा। गलती होने पर ओटीटी प्लेटफॉर्म को भी अन्य सभी की तरह माफी प्रसारित करनी होगी।
अगर कोर्ट या सरकारी एजेंसी किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कोई जानकारी होस्ट करने या पब्लिश करने से मना करती है तो उसे वो मानना होगा। इस जानकारी में देश की एकता-अखंडता को खतरे में डालने वाली, कानून व्यवस्था को भंग करने वाली मित्र देशों से रिश्ते खराब करने वाली जानकारी शामिल हो सकती है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म के नियम
ओटीटी प्लेटफॉर्म को टीवी और अखबार की तरह एक सेल्फ रेगुलेशन बॉडी बनानी होगी। इसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या कोई और गणमान्य व्यक्ति होंगे। इसके जरिए शिकायत निवारण सिस्टम भी शुरू करना होगा।
सरकार ने कहा है कि ओटीटी के लिए कोई सेंसरशिप नहीं लगाई जा रही। लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म को अपने स्तर पर ही दर्शकों की उम्र के हिसाब से कॉन्टेंट को अलग-अलग कैटेगरी में रखना होगा, जैसे 13 प्लस या 16 प्लस या वयस्कों के लिए।
डिजिटल न्यूज़ मीडिया के लिए नियम
डिजिटल न्यूज मीडिया को अपने बारे में विस्तृत जानकारी देनी होगी। टीवी और अखबार की तरह उन्हें भी रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा।
डिजिटल न्यूज मीडिया को बताना होगा कि उसका मालिक कौन है और उसमें किसने पैसा लगाया है।
इन दिशानिर्देशों की पृष्ठभूमि क्या है
प्रेस कॉन्फेंस में, कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 2018 के सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वेशन और 2019 के एससी के ही आदेश का हवाला दिया। राज्य सभा में एक बार 2018 में और फिर 2020 में समिति द्वारा रखी गई रिपोर्ट का जिक्र करते हुए आईटी मंत्री ने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म यूजर्स को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए सशक्त बनाने और उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामले में जवाबदेही की आवश्यकता बताया। सरकार तीन वर्षों से इन दिशानिर्देशों पर काम कर रही थी। हालांकि, 26 जनवरी को लाल किले में हिंसक घटनाओं के बाद इसमें और तेजी आई, जिसके बाद सरकार और ट्विटर के बीच कुछ खातों को हटाने के लिए विवाद भी देखने को मिला था।
दुनिया के देशों में सोशल मीडिया के हालिया घटनाक्रम
सोशल मीडिया ने सीधे तौर पर लोकतंत्र और लोगों को प्रभावित करना भी शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया व्यापक स्तर पर संचार सुविधाओं का लोकतंत्रीकरण करता जा रहा है। विश्वभर के अरबों लोगों ने अब सूचना को संरक्षित रखने और इसका प्रसार करने के पारंपरिक माध्यमों को चलन से लगभग बाहर कर दिया है। सोशल मीडिया के उपभोक्ता अब मात्रा उपभोक्ता ही नहीं हैं, वे अब इस पर प्रसारित होने वाली साम्राग्री को तैयार करने वाले प्रसारकर्ता भी बन गए हैं।
जब टिक-टॉक ने दीं गलत सूचनाएं
टिक-टॉक ने पिछले साल जुलाई और दिसबंर के बीच ऐप ने 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और कोरोना वायरस महामारी के बारे में गलत जानकारी देने के लिए अपने हजारों वीडियो हटा दिए हैं। यह तो यही साबित करता है कि टिक टॉक गलत जानकारी साझा कर चुका था। रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने चुनाव में गलत सूचना या मीडिया को साझा किए 347,225 वीडियो बाहर निकाले। अतिरिक्त 441000 क्लिप को ऐप की सिफारिशों से हटा दिया गया क्योंकि सामग्री आपत्तिजनक थी।
फेसबुक की म्यांमार में भूमिका
फेसबुक इंक ने म्यांमार की सेना से जुड़े पृष्ठों पर प्रतिबंध लगा दिया और संबद्ध वाणिज्यिक संस्थाओं से विज्ञापन पर रोक लगा दी है। जिससे दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र में तख्तापलट का विरोध बढ़ रहा है। म्यांमार की सत्तारूढ़ सरकार ने इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को फेसबुक तक पहुंच को अवरूद्ध करने का आह्वान किया।
सरकार के मांगने पर देनी होगी जानकारी
नई गाइडलाइंस के अनुसार इंड टू इंड एनक्रिप्शन देने वाली व्हाट्सएप के सामने एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। भारत की संप्रभुता, सुरक्षा, विदेशों से संबंध, दुष्कर्म जैसे अहम मामलों पर सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से अब सोशल मीडिया कंपनियों को शरारती कंटेंट फैलाने वाले शख्स के बारे में भी जानकारी देनी होगी। नियम के अनुसार विदेश से शुरू होने वाले कंटेंट को भारत में पहले किसने शेयर या ट्वीट किया है। इसकी जानकारी देनी होगी। कोर्ट के आदेश या सरकार द्वारा पूछे जाने पर सोशल मीडिया कंपनियों को उस शख्स की जानकारी साझा करनी होगी। इसी के साथ सरकार ने फेक अकाउंट्स के लिए कंपनियों को कहा है कि वे खुद से ऐसा नियम बनाए, जिससे यह न हो सके। इसके लिए वह आधार कार्ड लें या फिर मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करें।
तीन महीने में कानून
नई गाइडलाइंस के अनुसार फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम, नेटफिलक्स, अमेजन प्राइम, न्यूज वेबसाइट, व्हाट्सएप और लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को सरकार की ओर से मांगे जाने पर कंटेंट की जानकारी देना जरुरी हो गया है।
भारत और अन्य देशों में डाटा संरक्षण कानून
अनुमान के अनुसार साल 2023 तक यग संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुंच जाएगी।
भारत में साल 2019 तक 574 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता थे। इंटरनेट प्रयोग करने के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर हैं।
फिलहाल भारत के पास किसी व्यक्ति के डाटा की सुरक्षा को लेकर कोई सख्त कानून या विशेष प्रावधान नहीं है।
अमेरिकी के पास विशिष्ट डाटा सुरक्षा कानून और नियम हैं जो अमेरिकी नागरिकों के डाटा के लिए राज्य स्तरीय कानून के तहत काम करते हैं। -अभिनय आकाश