नेता जी का विकास पर्व (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त' | Dec 12, 2024

गांव के एक छोटे से चौपाल पर सुबह-सुबह हलचल मच गई। गांव के बुजुर्गों, बच्चों, नौजवानों और औरतों में अजीब-सी उत्सुकता थी। आखिर हो भी क्यों ना? आज गांव में खुद माननीय नेता जी आने वाले थे। ये वही नेता जी थे जो चुनाव से ठीक पहले धरती पर पधारते थे और फिर अगली पंचवर्षीय योजना में कहीं गुम हो जाते थे।


नेता जी को लेकर गांव वालों के बीच चर्चाएं गरम थीं। कोई कहता, "नेता जी बहुत काम कर रहे हैं, सारा देश बदल रहा है," तो कोई बोलता, "हां, हमारे गांव में भी पिछले चुनाव में उन्होंने दो पेड़ लगवाए थे, और इस बार सुना है कि वो तिनका-तिनका विकास करने का प्लान लेकर आए हैं।" 


थोड़ी देर में धूल उड़ाती गाड़ियों का काफिला चौपाल के पास आकर रुका। चार-चार बंदूकधारी सुरक्षा गार्ड उतर कर चौकस हो गए। उसके बाद बेशकीमती सूट-बूट में नेता जी उतरते हुए दिखाई दिए। गांव वालों की भीड़ में से किसी ने धीरे से कहा, “देखो, इनकी पोशाक से ही पता चलता है कि कितने महान नेता हैं हमारे!”

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नेता जी मंच पर चढ़े और एक जोरदार भाषण शुरू किया, “मेरे प्यारे गांववासियों, आप सब जानते हैं कि मैं जनता की सेवा में हमेशा तत्पर रहता हूं। मुझे कोई निजी स्वार्थ नहीं है। मैं जनता के सुख-दुख का साथी हूं। मुझे जनता की समस्याओं से गहरी सहानुभूति है।”


गांव वाले भौचक्के होकर नेता जी की बातों को सुन रहे थे, और एक-दूसरे से इशारों में पूछ रहे थे, “यह सहानुभूति कौनसी जगह है?”


नेता जी ने अपनी बात जारी रखी, “हमने पिछले कार्यकाल में गांव के विकास के लिए करोड़ों रुपये स्वीकृत किए। हमने जनता के सपनों को हकीकत में बदलने का वादा किया था, और वही करने का प्रयास कर रहे हैं।”


इतने में गांव के एक उत्साही युवक ने सवाल कर दिया, “नेता जी, आपने जो करोड़ों खर्च किए, वो दिख क्यों नहीं रहे?”


नेता जी ने बिना हिचकिचाए जवाब दिया, “अरे बेटा, तुम लोगों की आंखें विकास देखने के लिए थोड़ी कमजोर हैं। मैं चाहता हूं कि सरकार जल्द ही आपकी आंखों का भी इलाज कराए ताकि आप असली विकास देख सको।” चारों ओर तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। किसी ने कहा, “देखा, कितने सच्चे और सीधे-साधे नेता हैं!”


फिर नेता जी ने बड़ी गर्व से घोषणा की, “हमने गांव में बिजली के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया है। अभी तक तार बिछा दिए हैं, और अगले चुनाव तक बिजली भी आने की संभावना है।”


गांव के एक बुजुर्ग ने हिम्मत करके पूछा, “नेता जी, पिछली बार भी आपने यही कहा था।”


नेता जी मुस्कुराते हुए बोले, “बाबा, विकास का स्वाद धीरे-धीरे लेना चाहिए। अभी से सब मिल गया तो अगले चुनाव में क्या वादा करेंगे?”


चौपाल में बैठे सारे लोग एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए, मानो विकास का स्वाद उन्हें समझ आ गया हो।


फिर नेता जी ने आगे कहा, “हमने गांव में सफाई अभियान चलाया है। आपको जल्द ही कचरा प्रबंधन की आधुनिक व्यवस्था का लाभ मिलेगा। शहरों की तरह कचरे का सिस्टमैटिक मैनेजमेंट किया जाएगा।”


तभी एक महिला ने साहस जुटाकर कहा, “पर गांव में तो कचरे की गाड़ी महीने में एक बार भी नहीं आती, कचरा कहां जाएगा?”


नेता जी ने धैर्यपूर्वक समझाया, “बिटिया, कचरा तो तुम्हारी मानसिकता में है। हम सोच बदलने की दिशा में काम कर रहे हैं। जैसे ही तुम्हारी सोच शुद्ध होगी, कचरा अपने आप गायब हो जाएगा।” 


अब तक लोग नेता जी की बातों में खो चुके थे। कुछ को तो अपने सामने ही विकास का सपना नजर आने लगा था, मानो चौपाल पर ही उन्हें बिजली, सड़क, और पानी मिलने वाला हो।


नेता जी ने भाषण का समापन करते हुए घोषणा की, “मैं आप सबसे वादा करता हूं कि अगले पांच साल में हमारा गांव ‘आदर्श गांव’ बन जाएगा। सभी सुविधाएं, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार की गारंटी हम देंगे।”


सभा में बैठे गांव के बच्चों ने चुपके से हंसते हुए कहा, “अरे, ये तो हर चुनाव में यही कहते हैं। गांव तो अभी भी वैसा ही है।” पर उनकी आवाज भीड़ में खो गई। नेता जी ने फिर तालियां बटोरीं, और थोड़ी देर में गाड़ियों के काफिले के साथ गांव से रवाना हो गए।


चौपाल के पास एक बूढ़ा किसान बुदबुदाया, “विकास का ये पर्व भी हर बार की तरह आया और चला गया। हमें अगले चुनाव का इंतजार करना चाहिए। तब तक इसी विकास को सपना समझकर जी लेंगे।”


और इस तरह, गांव वालों ने विकास का इंतजार करना सीख लिया। नेता जी के वादों की लंबी फेहरिस्त और जनता की समझौते की आदतें, दोनों ने मिलकर इस बार भी लोकतंत्र का एक नया अध्याय रच दिया।


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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