By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 15, 2020
काठमांडू। देश के नेतृत्व में मतभेद और राष्ट्रवाद के नाम पर ‘सस्ती लोकप्रियता’ हासिल करने के कदम के विपरीत नतीजे होने की चेतावनी देते हुए देश के विशेषज्ञों और वरिष्ठ पत्रकारों ने रविवार को यहां कहा कि सीमा विवाद के स्थायी समाधान के लिए नेपाल और भारत के पास बातचीत के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। नेपाल के सत्ताधारी और विपक्षी राजनीतिक दलों ने शनिवार को नए विवादित नक्शे को शामिल करते हुए राष्ट्रीय प्रतीक को अद्यतन करने के लिए संविधान की तीसरी अनुसूची को संशोधित करने संबंधी सरकारी विधेयक के पक्ष में मतदान किया। इसके तहत भारत के उत्तराखंड में स्थित लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाली क्षेत्र के तौर पर दर्शाया गया है। भारत ने इस कदम का सख्त विरोध करते हुए इसे स्वीकार करने योग्य नहीं बताया था।
वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक दैनिक के संपादक प्रहलाद रिजल ने कहा, “नेपाल द्वारा कालापानी को शामिल करते हुए नक्शे को फिर से तैयार करना और प्रतिनिधि सदन द्वारा उसे अनुमोदित करना राष्ट्रवाद के नाम पर के पी ओली सरकार के ‘सस्ती लोकप्रियता’ हासिल करने के कदम को दिखाता है, जिसके नतीजे उलट भी हो सकते हैं।” रिजल ने चेतावनी दी कि ओली सरकार के कदम से भारत और नेपाल के बीच जमीन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है जो महंगा साबित हो सकता है। उन्होंने कहा, “ऐसी खबरें हैं कि इस कदम को बीजिंग से संकेत मिलने के बाद उठाया गया है। अगर ऐसा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”
उन्होंने नेपाल के राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में चीन की बढ़ती भूमिका के संदर्भ में संभवत: यह बात कही। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ओली के हालिया कदम को सत्ताधारी दल में उनके और उनके प्रतिद्वंद्वी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ के बीच सत्ता को लेकर बढ़ती खींचतान के तौर पर भी विश्लेषित किया जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश त्रिपाठी ने कहा कि दोनों देशों के पास बातचीत और समस्या का राजनीतिक समाधान तलाशने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा, “हमें मामले को सुलझाने के लिए व्यापक आधार और गहन कूटनीति की जरूरत है तथा नेपाल को परिपक्व कूटनीति दिखानी होगी।” राजनीतिक विश्लेषक अतुल के ठाकुर ने काठमांडू पोस्ट में लिखा कि दोनों पक्षों द्वारा कूटनीतिक वार्ता में साझा आधार नहीं तलाश पाना चिंताजनक है।