By नीरज कुमार दुबे | Aug 26, 2022
भारतीय सैन्य सेवाओं में भर्ती की नयी योजना अग्निपथ एक बार फिर से चर्चा में है क्योंकि अब नेपाल में इस योजना का विरोध शुरू हो गया है। दरअसल इस समय तीनों सेनाओं में भर्ती की प्रक्रिया चल रही है और गोरखाओं की भर्ती के लिए नेपाली युवकों के लिए भी भर्ती कैम्प लगाये जाने की घोषणा की जा चुकी थी लेकिन अब नेपाल ने भारत से अनुरोध किया है कि अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना में गोरखाओं की भर्ती निलंबित कर दी जाए। नेपाली मीडिया के अनुसार नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खडके ने बुधवार को नेपाल में भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि नयी योजना के तहत नेपाली युवकों की भर्ती की योजना को स्थगित कर दिया जाए। काठमांडू पोस्ट में प्रकाशित एक अन्य खबर के अनुसार भारतीय सेना की गोरखा रेजीमेंट के लिए लुंबिनी प्रांत के बटवाल में नेपाली युवकों की भर्ती की तय योजना से एक दिन पहले यह मुलाकात हुई। इसके अलावा, कांतिपुर अखबार के अनुसार विदेश मंत्रालय में हुई मुलाकात के दौरान विदेश मंत्री नारायण खडके ने भारतीय राजदूत से कहा कि नेपाल सरकार भारतीय सेना में गोरखाओं की भर्ती को लेकर सकारात्मक रुख रखती है लेकिन सरकार अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों से बातचीत करने के बाद इस विषय पर फैसला लेगी क्योंकि भारत सरकार ने नयी सैन्य भर्ती योजना शुरू की है जिसको लेकर उनके मन में कुछ आशंकाएं हैं।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने जून में अग्निपथ योजना की घोषणा करते हुए कहा था कि साढ़े 17 साल से 21 साल की उम्र के युवाओं को चार साल के कार्यकाल के लिए भर्ती किया जाएगा वहीं उनमें से 25 प्रतिशत को बाद में नियमित सेवा में शामिल किया जाएगा। इस क्रम में भारत में भर्ती शुरू हो चुकी है और नेपाल में भी भर्ती शिविर लगाने का ऐलान किया जा चुका था। हम आपको बता दें कि भारतीय सेना की गोरखा रेजीमेंट में 43 बटालियन हैं और इनमें भारतीय सैनिकों के साथ ही नेपाल से भर्ती जवान भी शामिल हैं। माना जाता है कि इस वक्त 34 हजार नेपाली युवा भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में तैनात हैं। अग्निपथ योजना के मुताबिक गोरखा रेजीमेंट में 1300 नेपाली युवाओं की भर्ती की जानी है। भर्ती रैली के लिए लिए गोरखा रिक्रूटमेंट डिपो गोरखपुर और दार्जिलिंग ने नेपाल के बुटवल और धरान में भर्ती रैली की तारीख का ऐलान भी कर दिया था परन्तु नेपाल सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिलने के कारण भर्ती रैली टालनी पड़ी है। उल्लेखनीय है कि नेपाल के युवक लंबे समय से भारतीय सेना में भर्ती होते रहे हैं। दरअसल 1947 में नेपाल, भारत और ब्रिटेन के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था जिसमें ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं में नेपाली युवकों को भर्ती करने का प्रावधान किया गया था।
आइये अब जानते हैं कि नेपाल अग्निपथ योजना का विरोध क्यों कर रहा है। दरअसल नेपाल में सवाल खड़ा हुआ है कि चार साल बाद उन नेपाली युवकों का क्या होगा जोकि अग्निवीर बनकर आयेंगे। नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने अग्निपथ योजना को 1947 की त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन बताते हुए कहा है कि जिन सेवा शर्तों और सेवा अवधि के साथ नेपाल के नागरिकों को भारतीय सेना में भर्ती किया जा रहा था, उसमें अचानक हुए बदलाव को हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं। इसके अलावा पूर्व रक्षा मंत्री भीम रावल ने कहा है कि अग्निपथ को उनकी पार्टी स्वीकार नहीं करेगी। उन्होंने कहा, 'भारत ने यह तब्दीली करने से पहले नेपाल से चर्चा तक नहीं की जोकि त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है। तो इस तरह जहां एक ओर नेपाल का विपक्ष अग्निपथ योजना का विरोध कर रहा है उसी तरह नेपाल की गठबंधन सरकार में भी इस योजना के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही है। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की सरकार पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के समर्थन से चल रही है। प्रचंड की पार्टी भी अग्निपथ योजना के विरोध में है। प्रचंड चाहते हैं कि अग्निपथ योजना के मौजूदा स्वरूप को नेपाल में स्वीकार नहीं किया जाए। इसलिए भी सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
इस बीच, भारतीय पक्ष का कहना है कि अग्निपथ से 1947 की त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन नहीं हुआ है। भारतीय पक्ष का कहना है कि त्रिपक्षीय संधि में इस बात का प्रावधान था कि जो सुविधा और सेवा शर्तें भारतीय नागरिकों को सेना में मिलेंगी, वही नेपालियों को भी मिलनी चाहिए। भारतीय पक्ष का कहना है कि अग्निपथ योजना में भी नेपालियों से कोई भेदभाव नहीं है। ऐसे में यह कहना कि त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन हुआ है, यह बात सरासर गलत है।
दूसरी ओर, इस मुद्दे पर नयी दिल्ली में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारतीय सेना लंबे समय से नेपाल के गोरखा की सैनिकों के रूप में भर्ती करती रही है और वह अग्निपथ भर्ती योजना के तहत प्रक्रिया जारी रखने के लिए आशान्वित है। बहरहाल, माना जा रहा है कि भारत के सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे की 4 सितंबर से शुरू हो रही नेपाल की पांच दिन की यात्रा के दौरान इस मुद्दे का हल निकल सकता है। हम आपको बता दें कि भारतीय सेना प्रमुख जनरल पांडे की यात्रा का मुख्य उद्देश्य नेपाल की सेना के मानद जनरल की उपाधि प्राप्त करना है जो उन्हें राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी प्रदान करेंगी। गौरतलब है कि भारत और नेपाल की सेनाएं एक दूसरे के सेनाध्यक्ष को मानद जनरल की उपाधि प्रदान करती हैं।