By अनन्या मिश्रा | Dec 05, 2023
आज यानी की 5 दिसंबर को नेल्सन मंडेला की डेथ एनिवर्सरी है। वह दक्षिण अफ्रीका के 'गांधी' भी कहे जाते थे। उन्होंने अंहिसा के रास्ते पर चलकर रंगभेद के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी। वह दुनिया भर में शांति दूत के रूप में फेमस हैं। उनके द्वारा रंगभेद के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई में 27 साल जेल में गुजारे थे। बाद में वह उसी देश के राष्ट्रपति बने थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर नेल्सन मंडेला के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
दक्षिण अफ्रीका के केप प्रांत में उम्टाटा के म्वेजो गांव में 18 जुलाई 1918 को नेल्सन मंडेला का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम नेल्सन रोलीह्लला मंडेला था। इनके पिता उस कस्बे के जनजातीय सरदार थे। वहीं बेहद कम उम्र में नेल्सन ने अपने पिता को खो दिया था। जिसके बाद इनका जीवन काफी संघर्षपूर्ण बीता। पिता की मौत के बाद नेल्सन ने वकालत की पढ़ाई शुरू की। इस दौरान उन्होंने अपनी जाति के सरदार का पद त्याग दिया। हांलाकि वकालत की पढ़ाई खत्म होने से पहले वह राजनीति में सक्रिय हो गए थे।
राजनीतिक सफर
बता दें कि साल 1944 में नेल्सन मंडेला अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए। इसी दौरान उन्होंने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। वह लोगों के बीच जल्द ही अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए। वहीं अपनी प्रतिभा के चलते उन्होंने अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की। साथ ही 3 साल बाद वह उसके सचिव पद पर रहे। कुछ सालों के बाद वह अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के कार्यकारी समिति के सदस्य बने।
देशद्रोह का मुकदमा
मंडेला और उनके कुछ मित्रों के खिलाफ साल 1961 में देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। लेकिन इस मामले में वह निर्दोष साबित हुए। जिसके बाद 5 अगस्त 1962 को उनकी एक बार फिर गिरफ्तारी हुई। उस दौरान मंडेला को मजदूरों को हड़ताल के लिए भड़काने और बिना अनुमति लिए देश छोड़ने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। मंडेला की गिरफ्तारी के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे के तहत मंडेला को आजीवन कारावास की सजा हुई।
इसके साथ ही साल 1964 से लेकर 1990 तक मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। जिसके कारण उनको अपने जीवन के 27 साल जेल में बिताने पड़े। सजा के दौरान मंडेला को रॉबेन द्वीप की जेल में रखा गया था। रॉबेन द्वीप की जेल में उनको कोयला खनिज का काम करना पड़ता था। सजा खत्म होने के बाद साल 1990 में मंडेला की जेल से रिहाई हो गई।
ऐसे बने पहले अश्वेत राष्ट्रपति
जिस दौरान नेल्सन मंडेला जेल में सजा काट रहे थे। तब उन्होंने बेहद गुप्त तरीके से अपनी जीवनी लिखी। जिसको बाद में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक का नाम 'लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम' है। जेल से रिहा होने के दौरान पूरे देश में जश्न का माहौल हो गया। क्योंकि उनकी छवि एक हीरो के तौर पर बन चुकी थी। इसके बाद उन्होंने समझौते और शान्ति की नीति द्वारा लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखने का काम किया।
इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में साल 1994 में रंगभेद रहित चुनाव हुए। इस चुनाव में नेल्सन मंडेला को जनता का भरपूर प्यार और समर्थन मिला। जिसके कारण अफ्रीका में उनकी बहुमत की सरकार बनी। नेल्सन मंडेला 10 मई 1994 को साउथ अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने।
भारत रत्न से सम्मानित
नेल्सन मंडेला ने अहिंसा की राह पर चलकर रंगभेद के खिलाफ जो भी लड़ाई लड़ी। जिसके बाद पूरी दुनिया में उनकी छवि शांति दूत और हीरो के तौर पर बन गई थी। उनके इस कदम से अन्य देश भी मंडेला से आकर्षित हुए। भारत सरकार ने साल 1990 में देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से नेल्सन मंडेला को सम्मानित किया। भारत रत्न पाने वाले वह पहले विदेशी थे। जिसके बाद साल 1993 में मंडेला को नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया।
मौत
साल 1997 में मंडेला ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। वहीं लंबी बीमारी के बाद 5 दिसंबर 2013 को 95 साल की आयु में नेल्सन मंडेला का निधन हो गया।