आजादी से पहले की आसमानी उड़ान और फिर ऐसे लिखी गई बर्बादी की दास्तान, बस यही है 'महाराजा' की कहानी

By अभिनय आकाश | Oct 01, 2021

पाउलो कोएल्हो डीसूज़ा की 'द अल्केमिस्ट' एक बेस्ट सेलर नॉवेल है। जिसकी कहानी एक स्पेनिश लड़के पर केंद्रित है। ये लड़का अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देता और पूरी शिद्दत के साथ उसे पूरा करने के लिए पूरी दुनिया की यात्रा करता है। किताब में एक जगह जिक्र है कि अगर आप किसी चीज को पूरे दिल से हासिल करना चाहते हैं तो पूरी कायनात आपको लक्ष्य हासिल करने में मदद करती हैं। बाद में उसे पता चलता है कि वो तो उसके नजदीक ही थी। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो जहां से शुरू हुई थी वो वहीं पर घूमकर वापस आने को लेकर चर्चा में है। एयर इंडिया के बारे में तो आपने सुना ही होगा जो बीते दिनों अपने 52 हजार करोड़ के कर्ज की वजह से भी सुर्खियों में रहा था। लेकिन क्या आपको बता है कि एयर इंडिया किसी जमाने में प्राइवेट एयरलाइंस था। आज बात करेंगे टाटा एयरलाइंस के एयर इंडिया बनने की कहानी के बारे में साथ ही आपको बताएंगे कि 68 साल बाद क्यों इसकी घर वापसी की बात कही जा रही है। 

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ये कहानी शुरू होती है जेआरडी टाटा के बचपन से, जी, हां जेआरडी टाटा ने महज 15 साल की उम्र में हवाई जहाज उड़ाना शुरू कर दिया था। लेकिन तब वो इसे शौक से उड़ाते थे। समय के साथ ही उनका ये शौक व्यवसाय में भी बदल गया। अप्रैल 1932 में उन्होंने टाटा एयर सर्विस की स्थापना की। जेआरडी टाटा ने अपनी पहली व्यवसायिक उड़ान 15 अक्टूबर को भरी। उस समय वो सिंगल ईंजन वाले हेलीपैड बसमूथ हवाई जहाज को अहमदाबाद से होते हुए करांची से मुंबई ले गए थे। उनकी इस उड़ान में कोई सवारी नहीं थी बल्कि 25 किलो चिट्ठियां थी। ये चिट्ठिआं लंदन से इंपीरियल एयरबेस के जरिये करांची लाई गई थीं। ये कराची-बॉम्बे-मद्रास वाली उड़ान हर सोमवार को रवाना होती थी और बेल्लारी में इसका नाइट हॉल्ट होता था। यूं ये 28 घंटों में अपनी यात्रा पूरी करती थी। इसके बाद नियमित रूप से इसका इस्तेमाल डाक ले जाने के लिए हुआ। उस वक्त ब्रिटिश सरकार टाटा एयरलाइंस को कोई आर्थिक मदद नहीं देती थी, बल्कि हर चिट्ठी के बदले में मिलता था केवल 16 आना। शुरुआत में टाटा एयरलाइंस का ऑफिस जूहु के पास एक मिट्टी के मकान में होता था। वहां पर मौजूद मैदान को रनवे के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। टाटा की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार कभी-कभार अगर इन विमानों में यात्री बैठते भी थे तो उन्हें चिट्ठियों के ऊपर बैठना पड़ता था। 1938 तक कंपनी का नाम टाटा एयरलाइंस हो गया और इसी साल इसने भारत से श्रीलंका के रूप में एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान भी भरी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान टाटा एयरलाइंस ने रॉयल एयरफोर्स की काफी सहायता की और सेना की टुकड़ियों को ले जाना, शरणार्थियों का बचाव में भी अहम भूमिका निभाई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद टाटा एयरलाइंस पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई। टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर एयर इंडिया लिमिटेड रखा गया। 

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आजाद हिन्दुस्तान में नेहरू का राष्ट्रीयकरण

आजादी के बाद भारत में कई सारी एयरलाइंस संचालित होने लगीं और 1952 आते-आते दुनियाभर की एयरलाइंस की हालत में गिरावट देखी गई। देश को अभी स्वतंत्र हुए कुछ ही साल हुए थे और गणतंत्र तो अभी-अभी ही हुआ था। इसी वर्ष नवंबर के महीने में जेआरडी टाटा और जवाहर लाल नेहरू की मुलाकात होती है। जिसके बाद नेहरू ने टाटा को एक पत्र लिखकर विशव की शीर्ष विमान सेवाओं में शुमार एयर इंडिया और इंडिया के प्रति अपने रवैये को लेकर सफाई पेश की थी। उस पत्र में नेहरू ने टाटा को लिखा कि लंच के दौरान उन्हें परेशान देख कर अपनी बात नहीं रख पाए, लेकिन वो उस दौरान टाटा ने उन्हें बताया था कि कैसे केंद्र सरकार ने उनकी विमान कंपनियों के साथ गलत व्यवहार किया है। टाटा को लगता था कि सरकार ने जानबूझ कर एक नीति तैयार की, ताकि वो ‘एयर इंडिया’ को सस्ते में खरीद कर उन्हें नुकसान पहुंचा सके और इसके लिए कई महीनों से काम चल रहा था। आखिर सरकार के किस गलत व्यवहार और नीतियों का जिक्र इस पत्र में था? इसके बारे में बताने के लिए आपको थोड़ा पीछे लिए चलते हैं। 

नेहरू ने बिना जेआरडी टाटा को बताए उनकी विमानन कंपनी का कर दिया राष्ट्रीयकरण 

जेआरडी टाटा का सपना पूरी तरह उड़ान भर भी नहीं पाया था कि 1953 में उन्हें तगड़ा झटका लगा। यही वो समय था जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें बिना बताए ही उनकी विमानन कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। टाटा समूह के मुताबिक अपने समय में टाटा एयरलाइंस दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइंस थी। भारत के योजना आयोग ने सभी एयरलाइन्स को एकीकृत करके उनका निगम बनाने की सिफारिश की। मार्च, 1953 में संसद ने ‘एयर कॉर्पोरेशन बिल’ पारित कर दिया। 28 मई, 1953 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये बिल, कानून बन गया। नेहरू ने जिस तरह इंडस्ट्री से बात किए बिना राष्ट्रीयकरण का फैसला लिया। उसका खामियाजा वर्तमान दौर में हम इस सेक्टर में देख सकते हैं। 

 जब रेडियो पर बोले जेआरडी टाटा- किसी ने प्यारे बच्चे छीन लिए

जेआरडी टाटा का मानना था कि भारत की सरकार नई है और इसे विमान उड़ाने या विमान सेवा कंपनी चलाने का कोई अनुभव नहीं है, ऐसे में एयर ट्रांसपोर्ट कंपनियों के राष्ट्रीयकरण का अर्थ होगा कि ये ब्यूरोक्रेसी की अकर्मण्यता में फँस जाएगा। इससे यात्रियों व कर्मचारियों को परेशानी होगी। जबकि नेहरू सरकार कहती रही कि इससे व्यवस्था सुधरेगी। बाद में सरकार ने उन्हें खुश करने और उनके अनुभव का फायदा लेने के लिए उन्हें ‘एयर इंडिया’ व ‘इंडियन एयरलाइंस’ का चेयरमैन बना दिया। अगले 25 वर्षों तक चीजें उनकी देखरेख में हुई। वो खुद विमान से यात्रा करते और छोटे-छोटे विवरण नोट करते। फिर आता है 1978 का जनवरी का महीना जब एयर इंडिया एक बड़े विमान हादसे का शिकार होता है। 213 यात्रियों की मौत हो जाती है। जिसके बाद 25 सालों तक बिना एक पैसा लिए देश सेवा करने वाले जेआरडी टाटा को उनके पद से हटा दिया जाता है। मोरारजी देसाई सरकार के इस फैसले की खूब आलोचना भी हुई और कई इस्तीफे भी हुए। रेडियो पर ये खबर आई थी। JRD टाटा ने कहा था कि उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है जैसे किसी से उसके प्यारे बच्चे को छीन लिया गया हो। 

UPA सरकार ने एयर इंडिया को किया बर्बाद?

एयर इंडिया को डुबाने के कई सारे आरोप यूपीए सरकार पर लगे। यूपीए सरकार के एवीएशन मंत्री पर इससे संबंधित मामले की जांच भी चल रही है। प्रफुल्ल पटेल मनमोहन सिंह सरकार में 2004 से 2011 तक नागरिक उड्डयन मंत्री थे। एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलय किया गया। खाड़ी देशों की 3 कंपनियों को उड़ान के लिए रूट आवंटित किए। आरोप है कि ये पैसा 3 विदेशी एयरलाइन्स एयर एमीरेट्स, एयर अरेबिया और कतर एयरवेज की ओर से दिया गया। इन्हीं 3 कंपनियों को फायदे वाले रूट आवंटित किए गए। आरोप है कि इन कंपनियों के लिए दीपक तलवार लॉबिंग कर रहा था। उसने प्रफुल्ल पटेल के साथ अपने संबंधों का लाभ उठाकर विदेशी एयरलाइंस को फायदा पहुंचाया।  इसमें कॉरपोरेट लॉबिस्ट दीपक तलवार का भी नाम सामने आया। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक प्रफुल्ल पटेल को ईडी ने अपनी चार्जशीट में दीपक तलवार का दोस्त बताया। यूपीए शासन के दौरान ही इसकी हालात और खराब होती गई।  2007 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का एयर इंडिया में विलय होने से एयर इंडिया का संकट बढ़ना शुरू हो गया था। विलय से पहले के वर्ष में एयर इंडिया ने 14.94 करोड़ रुपये का मामूली लाभ दर्ज किया जबकि इंडियन एयरलाइंस का लाभ 49.50 करोड़ रुपये रहा था। 1997-98 में जहां एयर इंडिया को 181.01 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, वहीं इंडियन एयरलाइंस ने 47.27 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था। अगले दो वर्षों में एयर इंडिया को घाटा हुआ जबकि इंडियन एयरलाइंस ने मुनाफा कमाया। साल 2006-07 में एयर इंडिया को 447.93 करोड़ रुपये का घाटा हुआ जबकि IA ने 240.49 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया। विलय के बाद पहले वर्ष में ही इस नई यूनिट ने 2,226 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज किया। अप्रैल, 2008 से फरवरी, 2009 के बीच एशिया फील्ड लिमिटेड और गिल्ट असेट्स मैनेजमेंट लिमिटेड को 272 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया।   

एयरलाइंस के सफर पर एक नजर

  • जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की थी।  
  • 1946 में टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया।
  • जून 1948 में एयर इंडिया ने पहली इंटरनेशनल उड़ान भरी। 
  • 1962 में एयर इंडिया ऑल जेट एयरलाइंस बनी।
  • 2007 में इंडियन एयरलाइंस को एयर इंडिया में मर्ज किया गया। 
  • 2018 में सरकार ने एयर इंडिया की 78% हिस्सेदारी बेचने की शुरुआत की।
  • 2020 में नए प्लान के तहत 100% हिस्सेदारी बेचने की घोषणा की गई।

एयर इंडिया का घाटा

2017-18 में 5348 करोड़

2018-19 में 8556 करोड़

2019-20 में 7982 करोड़

2020-21 में 9779 करोड़ 

कैसे मिलेगी राहत

टाटा संस भारत का एक बड़ा उद्योग घराना है। टाटा संस की वित्तीय सहायता बहुत अच्छी है और इस लिहाज से अगर टाटा के पास एयर इंडिया की कमान जाती है तो ये बहुत बड़ी राहत की बात होगी। एयर इंडिया को लोन देने वाले बैंकों के लिए भी ये अच्छी खबर होगी। हालांकि एयर इंडिया की बोली टाटा संस को मिलने की पहले खबर आई थी जिसे केंद्र सरकार ने फिलहाल खारिज किया है। इसको लेकर वित्त मंत्रालय की ओर से एक ट्वीट किया गया। ट्वीट में इन तमाम खबरों को गलत बताया गया है। साथ ही साथ यह भी कहा गया है कि जब भी ऐसा फैसला लिया जाएगा तो सरकार की ओर से मीडिया को अवगत करा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा होने के बाद टाटा संस भारत का सबसे बड़ा एविएशन कंपनी हो जाएगी क्योंकि उनके पास पहले से ही एयर एशिया इंडिया और विस्तारा एयरलाइंस के रूप में दो एयरलाइंस मौजूद है। अगर बोला जाए "life has come a full circle for टाटा ग्रुप" तो गलत नहीं होगा।  टाटा ग्रुप ने ही टाटा एयरलाइंस के रूप में एयर इंडिया की शुरुआत की थी। इस लिहाज से ये 68 साल बाद एयर इंडिया की घर वापसी कहे तो गलत नहीं होगा। एयर इंडिया को वर्ष 2007 में इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय के बाद से भारी नुकसान हो रहा है और उसने 31 मार्च, 2020 तक लगभग 70,820 करोड़ रुपये का घाटा उठाया है।  

-अभिनय आकाश 

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