By अभिनय आकाश | Sep 13, 2023
जी20 की ऐतिहासिक सफलता के बाद भारत का डंका दुनियाभर की चौपालों पर बज रहा है। जी0 समिट में सभी देशों की सहमति से घोषणापत्र भी जारी किया गया। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक और राजनयिक जीत माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि आम सहमति की संभावना जब न के बराबर लग रही थी तब भारत की कोशिशें रंग अफ्रीका का आना लाई। यह भारत के बढ़ते कद को दिखाता है। यह दिखाता है कि विश्व को साथ लाने में भारत की भूमिका काफी अहम है। विदेश सेवा के भारतीय राजनयिकों, सदस्य देशों के साथ कई महीनों की कड़ी मेहनत और 3 सितंबर से रात भर जागने वाले पांच लोगों की कड़ी मेहनत का ही परिणाम था कि सहमति बनाने में कामयाबी हासिल हो पाई। टीम मोदी ने चाणक्य नीति को चरितार्थ कर दिया। युद्ध और शांति काल में विदेश नीति का पुराना और आजमाया हुआ ग्रंथ चाणक्य का अर्थशास्त्र है।
चाणक्य की साम, दाम, दंड, भेद वाली नीति से तो आप सभी वाकिफ हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के सिद्धांत भी बड़े काम के हैं। इसमें निम्नलिखित रणनीतियाँ शामिल हैं:
संधि (ट्रीटी), विग्रह (संधि तोड़ना और युद्ध शुरू करना), आसन (तटस्थता), यना (युद्ध के लिए मार्च की तैयारी), सामश्रय (समान लक्ष्य रखने वालों के साथ हाथ मिलाना) और अंत में द्वैदभाव (दोहरी नीति यानी एक दुश्मन से कुछ समय के लिए दोस्ती और दूसरे से दुश्मनी)।
अधिक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी होने पर क्या करना चाहिए?
संधि (शांति स्थापित करना) की नीति इस नियम पर आधारित है कि जब किसी राज्य को अधिक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी का सामना करना पड़ता है, तो उसे जीवित रहने के लिए शांतिपूर्ण समझौते पर बातचीत करने का प्रयास करना चाहिए। यदि शांति स्थापित करने के सिद्धांत का विश्लेषण किया जाए तो इसे कई ऐतिहासिक शांति संधियों के संदर्भ में समझा जा सकता है। कौटिल्य संधि के अन्य रूपों, काल संधि (अस्थायी गठबंधन) या स्थावर संधि (स्थायी गठबंधन) की भी बात करते हैं, जिसमें एक छोटा राज्य अधिक शक्तिशाली सहयोगी को सेवा प्रदान करके और शक्तिशाली लोगों के साथ गठबंधन में रहकर रहने का सौदा कर सकता है। कौटिल्य कहते हैं कि अगर राजा को लगे कि दुश्मन की सेना की ताकत समान है और जंग लड़ने का मतलब है दोनों तरफ तबाही का खुला निमंत्रण को ऐसी परिस्थिति में समझौता यानी तटस्थ रहकर शांति का प्रयास आवश्यक है।
टीम मोदी ने चाणक्य के नक्शे कदम पर तलाशी राह
जवाहर लाल नेहरू ने कौटिल्य की आसन नीति अपनाई जिसका परिणाम ती गुटनिरपेक्षता और मोदी ने कौटिल्य की संधि, आसन और सामरस्य नीति का कॉकटेल तैयार किया। नई दिल्ली ने अपने घोषणापत्र के जरिए चीन को भी अपरोक्ष रूप से साधा। लेकिन इसमें कहीं भी लद्दाख या एलएसी का जिक्र नहीं था और न ही अरुणाचल प्रदेश में उसकी हरकतों का उल्लेख था। लेकिन इस घोषणापत्र में परोक्ष रूप से वो सब था जो भारत चाहता था। मोदी की सेना ने चाणक्य के नक्शे कदम पर चलते हुए ऐसा घोषणापत्र तैयार किया जिससे रूस से हमारी वर्षों पुरानी दोस्ती भी बनी रही और चीन से दुश्मनी भी नहीं बढ़ी व पश्चिमी देश भी खुश रहे।