Neerja Bhanot Birth Anniversary: अशोक चक्र से सम्मानित पहली महिला थीं नीरजा भनोट, बहादुरी से किया था आतंकियों का सामना

By अनन्या मिश्रा | Sep 07, 2024

देश के सिपाहियों और सैन्य अधिकारियों में आतंकियों के सामने साहस से खड़े होने का जज्बा होता है। इसके लिए सैनिकों और अधिकारियों को ट्रेंड किया जाता है। लेकिन सोचिए जब, एक बेहद साधारण महिला हथियारबंद आतंकियों के सामने अपने जान की परवाह किए बिना सैकड़ों जिंदगी बचाए, तो वह साधारण नहीं बल्कि साहसी सिपाही बन जाती है। ऐसी ही भारत की बेटी नीरजा भनोट थी। नीरजा भनोट कोई सैन्य अधिकारी नहीं थी।


साल 1986 में भारत का प्लेन हाइजैक हुआ, तो नीरजा भनोट ने बतौर फ्लाइट सीनियर अटेंडेंट आतंकियों का जमकर सामना किया और खुद की जान दांव पर लगाकर प्लेन में बैठे 360 लोगों की जान बचाई। बता दें कि नीरजा भनोट के जीवन को बड़े पर्दे पर भी फिल्म के रूप में उतारा जा चुका है। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर नीरजा भनोट के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

बता दें कि वह पहली महिला हैं, जो अशोक चक्र से सम्मानित हैं। नीरजा का जन्म पंजाबी परिवार में 07 सितंबर 1963 को हुआ था। नीरजा का बचपन चंडीगढ़ में बीता और उन्होंने सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से शुरूआती शिक्षा ली थी। इसके बाद उनका परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया। जिसके बाद मुंबई से नीरजा ने सेंट जेवियर कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की।

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परिवार

नीरजा काफी खुले विचारों वाली महिला थीं। महज 17 साल की नीरजा को रोक-टोक और दबाव वाली जिंदगी स्वीकार नहीं थी। उनको मॉडलिंग का शौक था। लेकिन साल 1985 में नीरजा की शादी एक बिजनेसमैन से करवा दी गई। लेकिन पति संग रिश्ते अच्छे न होने के कारण वह महज 2 महीने बाद ही पति से अलग हो गईं। जिसके बाद नीरजा ने मॉडलिंग शुरूकर दी और करीब 22 विज्ञापनों में काम किया।


कॅरियर

नीरजा भनोट को बचपन से प्लेन में बैठने का काफी ज्यादा शौक था। वह हमेशा से आकाश में उड़ने का सपना देखती थीं। शादी खत्म करने के बाद नीरजा ने मॉडलिंग की और फिर एयरलाइंस ज्वाइन कर ली। इसकी ट्रेनिंग के लिए वह फ्लोरिडा और मयामी गईं।


हाईजैक की हीरो थी नीरजा

अपने बर्थडे से दो दिन पहले साल 1987 में नीरजा मुंबई से अमेरिका जाने वाली फ्लाइट में बतौर सीनियर अटेंडेंट शामिल थीं। लेकिन प्लेन कराची से उड़ान भर पाता, इससे पहले चार आतंकियों ने विमान को हाइजैक कर लिया। प्लेन में मौजूद सभी यात्रियों को गन प्वाइंट पर ले लिया। लेकिन नीरजा ने अपनी समझदारी और सूझबूझ का परिचय देकर विमान का दरवाजा खोल दिया और सभी यात्रियों को सुरक्षित कर लिया। जिसके बाद 05 सितंबर 1986 को आतंकियों की फायरिंग में नीरजा भनोट शहीद हो गईं।

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