स्पीकर की भूमिका पर फिर से विचार की जरूरत: वेंकैया नायडू

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 11, 2016

नयी दिल्ली। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि किसी सरकार के बहुमत के परीक्षण के वक्त स्पीकर की भूमिका पर फिर से विचार करने और दल-बदल निरोधक कानून के प्रावधानों को लागू किए जाने की जरूरत है। केंद्रीय मंत्री ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब कांग्रेस ने उत्तराखंड विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर दिया जिसकी घोषणा बुधवार उच्चतम न्यायालय करेगा। नायडू ने कहा, ‘‘उत्तराखंड में जो कुछ हुआ है, उसकी पृष्ठभूमि में हमें बहुमत परीक्षण के मुद्दे के संदर्भ में स्पीकर की भूमिका पर विचार करने और दल-बदल निरोधक कानून को लागू करने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि देश में इस मुद्दे पर बहस हो।’’ उन्होंने कहा कि दल-बदल निरोधक कानून के मामलों पर फैसले के लिए कोई समयसीमा तय होनी चाहिए। वरिष्ठ भाजपा नेता ने यह भी कहा कि जब सभी जनप्रतिनिधि एक बार पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होने का फैसला कर लें, तो उन्हें तुरंत इस्तीफा देकर नया जनादेश मांगना चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘चाहे कोई भी जनप्रतिनिधि हो, विधायक हो या सांसद हो, यदि वह अपनी पार्टी बदलता है और अपनी वफादारी बदलता है तो उसे संविधान की भावना के मुताबिक पद से इस्तीफा देकर फिर से चुनाव लड़ना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि यदि कोई जनप्रतिनिधि किसी अन्य पार्टी में शामिल होने के लिए अपनी वफादारी बदलता है तो उसे ‘‘तत्काल अयोग्य घोषित कर देना चाहिए।’’

 

संयोगवश, तेलंगाना में तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के कई विधायक तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) में शामिल हो गए थे और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर (कांग्रेस) के कुछ विधायक तेदेपा में शामिल हो गए थे, लेकिन उनके खिलाफ दल-बदल निरोधक कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं की गई। कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को अयोग्य करार देने में उत्तराखंड के स्पीकर की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर नायडू ने सवाल किया कि यदि किसी विधानसभा के स्पीकर ने ‘‘गलत तरीके से’’ और निर्धारित संवैधानिक प्रावधानों से परे जाकर कार्रवाई की तो इसका क्या समाधान है। नायडू ने कहा, ‘‘आपके पास क्या विकल्प है? हमें इस पर फिर से विचार करके फैसला करना होगा।’’ हरीश रावत सरकार के बहुमत परीक्षण जीतने के परिणामों से जुड़े सवाल पर नायडू ने कहा कि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाकर कुछ भी गलत नहीं किया था क्योंकि राज्य में संवैधानिक तंत्र चरमरा गया था।

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