By प्रेस विज्ञप्ति | Aug 12, 2022
भोपाल। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी), पश्चिमी क्षेत्रीय केन्द्र, अमरावती और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) के संयुक्त तत्वावधान में ‘बच्चों के मुद्दों पर संचारक संवाद’ विषय पर आज एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में वक्ता के रूप में सांची यूनिवर्सिटी ऑफ बुद्धिष्ट-इंडिक स्टडीज की कुलपति प्रो. नीरजा ए. गुप्ता, अमर उजाला डिजिटल के सम्पादक जयदीप कर्णिक और ब्रह्मकुमारीज से डॉ. बी.के. रीना ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने की।
कार्यक्रम में भोपाल महानगर से बड़ी संख्या में समाजसेवी, पत्रकार, लेखक एवं सोशल मीडिया इनफ्लूएंसर्स उपस्थित थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि जीवन और जीविका दोनों अलग-अलग हैं। संस्कार के अभाव में संस्कृति वाले देश में अनाथालय और वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं। बच्चों में बढ़ती हिंसा की प्रवृत्ति को रोकने के लिए परिवार व्यवस्था को सुदृढ़ करना पड़ेगा। परिवार एक संस्कारशाला है, वहीं से बच्चों की सभी समस्याओं का समाधान निकलेगा। परिवार और विद्यालय ही मिलकर संस्कारवान समाज का निर्माण कर सकते हैं।
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षण का व्यावसायीकरण नहीं चलेगा। हमें अतीत से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना होगा। जो पीढ़ी अपने बच्चों के बारे में नहीं सोचती, उनका स्वर्णिम भविष्य कैसे बनेगा? परिवारों में आज संवाद घट गया है और ‘बातें’ बढ़ गई हैं। मोबाइल ने व्यक्ति के व्यवहार में बड़े पैमाने पर परिवर्तन कर दिया है। आज की सबसे बड़ी आवश्यकता मीडिया साक्षरता है। बच्चों को बताना पड़ेगा कि वे ‘फेक न्यूज’ और ‘हेट न्यूज’ से कैसे बच सकते हैं। मीडिया साक्षरता को लेकर एक व्यापक अभियान की आवश्यकता है। युवाओं के लिए मेरा संदेश रहता है कि ‘बुरा मत टाइप करो’, बुरा मत लाइक करो और बुरा न शेयर करो’। मेरा मानना है कि नई पीढ़ी के बच्चे अपने स्वजनों का ज्यादा ख्याल रखते हैं, फिर भी हमें बच्चों पर विशेष ध्यान देना होगा। उनके व्यक्तित्व निर्माण पर फोकस करना होगा। नई शिक्षा नीति में भी नैतिक मूल्यों पर ध्यान दिया गया है। हमें मूल्य निष्ठ पत्रकारिता को बढ़ावा देना होगा। सांस्कृतिक जड़ों से जुड़कर रिश्तों में निवेश करना होगा।
सांची यूनिवर्सिटी ऑफ बुद्धिष्ट-इंडिक स्टडीज की कुलपति प्रो. नीरजा ए. गुप्ता ने कहा कि बच्चे हमारी प्रसन्नता हैं, वे हमारी समस्या हो ही नहीं सकते। बच्चों को हम पारम्परिक खेलों से जोड़कर उन्हें हिंसा से दूर रख सकते हैं। बच्चों का गुस्सा शब्दों में कम और व्यवहार में अधिक दिखता है। यदि हम दीवारों को तोड़कर संवेदनाओं का सेतु नहीं बना सकते तो बच्चों के अधिकारों की बात करना बेमानी है। बच्चों के विकास के लिए जरूरी है कि हम दूरी और व्यस्तता के बावजूद अपनी निकटता और उपलब्धता सुनिश्चित करें।
अमर उजाला डिजिटल के सम्पादक जयदीप कर्णिक ने कहा कि देश के विकास के लिए आज हमें बच्चों में निवेश करने की आवश्यकता है। इससे ही बच्चों के समग्र विकास की संकल्पना को साकार कर सकते हैं। कोविड महामारी में डिजिटल मीडिया ने बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। मीडिया में बच्चों की सामग्री और कार्यक्रम की बेहद कमी है इसके लिए मीडिया को पहल करनी होगी। प्रजापिता ब्रह्म कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की डॉ. बी.के. रीना ने कहा कि बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की जरूरत है। पारिवारिक कलह का बच्चों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इसलिए घर में खुशनुमा माहौल रखना चाहिए। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए मूल्यनिष्ठ शिक्षा के साथ साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी प्रदान करनी होगी। इससे हम बच्चों के मन एवं आत्मा को सशक्त बनाकर स्वर्णिम भारत का सपना साकार कर सकते हैं।
कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। यूनीसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी और बाल संरक्षण अधिकारी अद्वैता मराठे ने यूनिसेफ की गतिविधियों से अवगत कराया। संगोष्ठी का संचालन आईआईएमसी के अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. प्रमोद कुमार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक प्रो. अनिल सौमित्र ने किया। कार्यक्रम के संयोजन में डॉ. पवन कौंडल एवं डॉ. राजेश सिंह कुशवाहा की सक्रिय सहभागिता रही। संगोष्ठी में पूर्व आईएएस अधिकारी आलोक अवस्थी, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रो. श्रीकांत सिंह, परीक्षा नियंत्रक डॉ. राजेश पाठक, श्री प्रदीप डेहरिया, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. आर.एच. लता, वरिष्ठ पत्रकार राकेश दुबे, पंकज पाठक, मनोज कुमार, रूबी सरकार, अजीत द्विवेदी, सुरेश शर्मा, डॉ. मयंक चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।