भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये आदतों में बदलाव जरूरी: राजनाथ

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 27, 2018

नयी दिल्ली। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये सिर्फ प्रक्रियागत सुधार काफी नहीं है, बल्कि इस समस्या को खत्म करने के लिये लोगों को अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा। ‘ऑन द ट्रेल ऑफ द ब्लैक’ नामक पुस्तक का विमोचन करते हुए उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार पर नरेंद्र मोदी सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है और देश से इसे उखाड़ फेंकने के लिये प्रधानमंत्री पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।

 

सिंह ने कहा, ‘‘आपसी बातचीत में प्रधानमंत्री हमेशा इस बात पर जोर देते हैं कि जब तक भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जाता तब तक हम कैसे गरीबी और अन्य मुद्दों से लड़ सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस सरकार की पहली मंत्रिमंडलीय बैठक में प्रधानमंत्री का फैसला था- कालाधन को वापस लाने के लिये एसआईटी का गठन, जो भ्रष्टाचार खत्म करने की दिशा में उनकी मंशा को दर्शाता है।

 

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, ‘‘यह सच है कि जब तक भ्रष्टाचार मौजूद है, तब तक विकास का जो लक्ष्य हमने तय किया है उसे हासिल कर पाना संभव नहीं है। हमें इस हकीकत को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि जब आय का अंतर बढ़ता है तो सामाजिक अशांति बढ़ जाती है, जो हम सभी के लिये चिंता का विषय है।’’ मोदी सरकार बेनामी संपत्ति अधिनियम के माध्यम से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है और केंद्र ने डीबीटी शुरू कर 65,000 करोड़ रुपये बचाये हैं। ई-टेंडरिंग और ई-खरीद को भी लागू किया गया।

 

डिजिटाइजेशन और प्रक्रियागत बदलावों को लेकर चर्चा पर उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि जहां तक संभव होगा भ्रष्टाचार कम करने के लिये हम प्रक्रियागत सुधार करेंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मैं यह नहीं मानता कि सिर्फ सुधार या प्रकियाओं में बदलाव लाकर भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। प्रक्रियागत सुधारों के अलावा प्रवृत्ति में बदलाव लाने की आवश्यकता है।’ सिंह ने कहा कि मानसिकता में बदलाव शिक्षा एवं उन शख्सियतों के जरिये लायी जा सकती है, जो लोगों के लिये प्रेरणा बन सकते हैं। इस अवसर पर मौजूद नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत एवं अन्य से उन्होंने अनुरोध किया कि वे सभी लोगों की आदतों में बदलाव लाने के लिये काम करें।

 

सिंह ने कहा कि कुछ संस्थान नैतिक शिक्षा का अध्यापन कर रहे हैं। बहरहाल उन्होंने यह भी माना कि यह व्यक्ति के चरित्र एवं नैतिकता में अधिक बदलाव नहीं ला पाया। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार की कोई ‘‘निश्चित परिभाषा’’ नहीं हो सकती है। अपने विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) किशोर देसाई के साथ पुस्तक का संपादन करने वाले प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने पैनल चर्चा का संचालन किया। नेहरू स्मारक संग्रहालय पुस्तकालय के निदेशक शक्ति सिन्हा, स्वदेशी जागरण मंच नेशनल्स के सह-संयोजक अश्विनी महाजन, नीति आयोग में ओएसडी धीरज नैयर और नीति आयोग की अधिकारी भावना कोहली ने भी इस चर्चा में हिस्सा लिया।

 

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