इस्लामाबाद। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की ओर से 3-2 से दिए गए एक बंटे हुए फैसले के कारण प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपनी कुर्सी बचाने में आज कामयाब रहे। पीठ ने कहा कि शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाने के ‘‘नाकाफी सबूत’’ हैं। हालांकि, पीठ ने एक हफ्ते के भीतर एक संयुक्त जांच टीम (जेआईटी) गठित करने का आदेश दिया ताकि शरीफ के परिवार के खिलाफ धनशोधन के आरोपों की जांच की जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 67 साल के शरीफ और उनके दो बेटे- हसन एवं हुसैन जेआईटी के सामने पेश हों।
जेआईटी में फेडरल जांच एजेंसी (एफआईए), राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी), पाकिस्तान सुरक्षा एवं विनिमय आयोग (एसईसीपी), इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) और मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) के अधिकारी शामिल किए जाएंगे। जेआईटी को जांच पूरी करने के लिए दो महीने का वक्त दिया गया है। हर दो हफ्ते के बाद जेआईटी पीठ के समक्ष अपनी रिपोर्ट देगी और 60 दिनों में अपना काम पूरा करेगी।
न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा, न्यायमूर्ति गुलजार अहमद, न्यायमूर्ति एजाज अफजल खान, न्यायमूर्ति अजमत सईद और न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन की पांच सदस्यीय पीठ ने सुनवाई संपन्न करने के 57 दिन बाद 547 पन्नों का ऐतिहासिक फैसला जारी किया। न्यायमूर्ति एजाज अफजल, न्यायमूर्ति अजमत सईद और न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन ने बहुमत वाला फैसला लिखा जबकि न्यायमूर्ति गुलजार एवं न्यायमूर्ति खोसा ने अपनी असहमति के नोट में कहा कि वे याचिकाकर्ताओं की मांग के मुताबिक प्रधानमंत्री को हटाना चाहते हैं। यह मामला तीन नवंबर को शुरू हुआ था और कोर्ट ने 23 फरवरी को कार्यवाही खत्म करने से पहले 35 सुनवाई की। यह मामला शरीफ की ओर से 1990 के दशक में कथित धनशोधन से जुड़ा है, जब वह दो बार प्रधानमंत्री के तौर पर सेवाएं दे चुके थे।
शरीफ की लंदन वाली संपत्ति उस वक्त सामने आई जब पनामा पेपर्स में पिछले साल दिखाया गया कि शरीफ के बेटों की मालिकाना हक वाली विदेशी कंपनियों के जरिए इनका प्रबंधन किया जाता था। विभिन्न याचिकाकर्ताओं- पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख इमरान खान, जमात-ए-इस्लामी अमीर सिराजुल हक और शेख राशिद अहमद ने पांच अप्रैल को उनकी ओर से राष्ट्र को संबोधित किए जाने के दौरान और 16 मई 2016 को नेशनल असेंबली के समक्ष उनकी ओर से दिए गए भाषण में कथित गलतबयानी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री पद से उन्हें अयोग्य करार देने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री ने विदेशी कंपनियों में अपने बच्चों की ओर से किए गए निवेश, जिससे लंदन के पार्क लेन में उन्होंने चार अपार्टमेंट खरीदे, के बारे में झूठ बोला। कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि इस बात की जांच करना अहम है कि पैसे कतर कैसे भेजे गए। अपने फैसले में पीठ ने कहा कि एनएबी के अध्यक्ष जांच में सहयोग करने में नाकाम रहे हैं और एफआईए के डीजी सफेदपोश गुनाहों पर शिकंजा कसने में नाकाम रहे हैं, जिससे जेआईटी के गठन की जरूरत पड़ रही है। शरीफ के समर्थकों ने कोर्ट के फैसले को इंसाफ की जीत करार दिया।
रक्षा मंत्री और शरीफ के करीबी माने जाने वाले ख्वाजा आसिफ ने कहा, ‘‘हमारा रूख सही साबित हुआ है, क्योंकि प्रधानमंत्री ने पिछले साल पनामा लीक कांड की जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने के आदेश दिए थे।’’ टीवी फुटेज में दिखाया गया कि शरीफ अपने छोटे भाई और पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ को गले लगा रहे हैं। विपक्षी नेताओं और वकीलों ने कोर्ट के फैसले को शरीफ को अभ्यारोपित किया जाना करार दिया और उनके इस्तीफे की मांग की। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के नेता फवाद चौधरी ने कहा कि शरीफ को इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि सभी न्यायाधीशों ने स्वीकार किया है कि पैसे अवैध तरीके से देश के बाहर भेजे गए।
उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारी जीत है और शरीफ को महज 60 दिनों की राहत दी गई है, जब जेआईटी अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।’’ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के इमरान इस्माइल ने फैसले के बाद कहा, ‘‘कोर्ट ने उन्हें 60 दिन दिए हैं और फिर उन्हें हटा दिया जाएगा, क्योंकि जेआईटी उन्हें दोषी पाएगी।’’ इससे पहले, इस्लामाबाद के रेड जोन स्थित सुप्रीम कोर्ट के इलाके में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया था। सुरक्षा और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए करीब 1500 सुरक्षा बलों की तैनाती की गई थी।