By शुभा दुबे | Oct 14, 2020
दुर्गा जी की पूजा ऋतु परिवर्तन के दिनों में निश्चित की गयी है। ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति और शीत ऋतु के आगमन के समय आश्विन मास में नवरात्र तक दुर्गा माँ का व्रत और पूजा की जा सकती है। इसी तरह शीत ऋतु के समापन के साथ ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ के साथ चैत्र मास में नवरात्र में दुर्गा माँ के व्रत और पूजा की प्राचीन परम्परा है। आराधक को देवी का व्रत और पूजा करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए- 'हे देवी माँ, आप ही सब प्राणियों में शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, स्मृति और क्षमा के रूप में स्थित हैं। हम आपको बार-बार प्रणाम करते हैं। आपकी विधि-विधान से पूजा कर रहे हैं। देवी भवानी, दुर्गा, अम्बिका हम पर अनुकम्पा करें।
दुर्गा पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
श्री दुर्गा जी की सुंदर प्रतिमा या चित्र, सिंदूर, केसर, कपूर, धूप, अबीर, चोटी, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, आलता, सुगंधित तेल, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, पंचपल्लव, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, मधु, घृत, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, जावित्री, नारियल, आसन, रेत, मिट्टी, पान, लौंग, इलायची, यज्ञोपवीत, कलश मिट्टी या पीतल का, हवन सामग्री, पूजन के लिए थाली, श्वेत वस्त्र, दूध, दही, ऋतुफल, गेहूं का आटा, उड़द साबुत, मूंग साबुत, सरसों सफेद और पीली, गंगाजल और नवग्रह पूजन के लिए सभी रंग के फूल भी अवश्य रखें।
कलश पूजन
सभी प्राचीन ग्रंथों में पूजन के समय कलश स्थापना का विशेष महत्व वर्णित किया गया है। सभी मांगलिक कार्यों में कलश अनिवार्य पात्र है। दुर्गा पूजन में कलश की स्थापना करने के लिए कलश पर रोली से स्वास्तिक और त्रिशूल अंकित करना चाहिए। फिर कलश के गले पर मौली लपेट दें। जिस स्थान पर कलश स्थापित किया जाता है पहले उस स्थान पर रोली और कुमकुम से अष्टदल कमल बनाकर पृथ्वी का स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ओम भूरसि रस्यादितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धात्रीं।
पृथिवीं यच्छ पृथिवी दृह पृथ्वीं माहिसीः।।
ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्तिवन्दवः।
पुनरूर्जानि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा
पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
इसके बाद कलश में गंगाजल मिश्रित शुद्ध जल भरते हुए वरुण देवता का ध्यान करते हुए कहें- हे वरुण देवता के प्रतीक कलश आप मेरे इस मांगलिक कार्य को सफल बनाएं। इसके बाद कलश में सुगंधित द्रव्य, चंदन, सर्वोषधि, दूर्वा, पंचपल्लव और सप्तमृत्तिका भी डालनी चाहिए। सप्तमृत्तिका यदि नहीं मिले तो पंचरत्न, द्रव्य और सुपारी डालनी चाहिए। कलश के मुँह पर चावलों से भरा एक पात्र अवश्य रखना चाहिए। चावल के इस पात्र पर नारियल रखने से पहले उस पर स्वास्तिक बनाएं और फिर नारियल को लाल चुन्नी या नये लाल कपड़े में लपेट लें। इसके बाद वरुण देवता का आह्वान हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर करें। इसके बाद दूसरे देवी-देवताओं का आह्वान करें। कलश एक साधारण जलपात्र नहीं है। कलश में सृष्टि के संचालक ब्रह्मा, विष्णु और शिव विद्यमान हैं। कलश सृष्टि का मूल आधार है। कलश की पूजा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा होती है।
भैरव पूजन
दुष्टों का संहार करने वाली माँ दुर्गा की पूजा के पहले भैरव बाबा की पूजा की जाती है। ग्रंथों और पुराणों में वर्णन मिलता है कि सभी मंदिरों में दुर्गा की सेवा में भैरव की उपस्थिति अनिवार्य होती है। मान्यता है कि भैरव की पूजा के बिना दुर्गा पूजा सम्पन्न नहीं होती है। सिद्धपीठों में हालाँकि दुर्गा पूजन के बाद ही भैरव की पूजा की जाती है। नवरात्रि पूजन के समय हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर भैरव का स्मरण करते हुए सभी सामग्री से पूजा करनी चाहिए और उनसे आग्रह करना चाहिए- हे भैरव बाबा! हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमारी पूजा अर्चना को सफल बनाएँ।
भैरव पूजन के बाद इष्ट देवी दुर्गा का षोड्शोपचार पूजन करें। मन में माँ दुर्गा का स्मरण करते हुए उनका आह्वान करें। विधिपूर्वक मां भगवती का पूजन कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। माता की पूजा करने के बाद दुर्गा देवी की जय हो का उच्चारण कर कथा अवश्य सुनें।
-शुभा दुबे