पर्यटन खुशियां ही नहीं देता बल्कि देश के आर्थिक विकास में भूमिका निभाता है

By ललित गर्ग | Jan 25, 2022

कोरोना महामारी ने जीवन के मायने ही बदल दिये हैं, इस महाप्रकोप के समय में हर व्यक्ति किसी-ना-किसी परेशानी से घिरा हुआ है, भय और जीवनसंकट के इस दौर में ऐसा लगता है मानो खुशी एवं मुस्कान तो कहीं गुम हो गई है। बावजूद इन सबके हर व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ समय ऐसा जरूर निकालना चाहिए जिसमें खुशी, शांति एवं प्रसन्नता के पल जीवंत हो सके, इसका सशक्त माध्यम है पर्यटन। जब भी कोरोना महाप्रकोप से सुरक्षित हो जाये, खुशियों को फिर से गले लगाने के लिये पर्यटन पर जरूर निकलना चाहिए। जीवन में पर्यटन के सर्वाधिक महत्व के कारण ही हर साल 25 जनवरी को भारतीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है। भारत की विविधता और बहुसंस्कृतिवाद के कारण, यह दिन देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव, जीवन में खुशियां एवं मुस्कान देने वाले पर्यटन के महत्व को उजागर करने के लिए है।

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साल 1948 में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक पर्यटक यातायात समिति का गठन किया गया था। उसी के पहले क्षेत्रीय कार्यालय दिल्ली और मुंबई में स्थापित किए गए थे। तीन साल बाद, 1951 में, कोलकाता और चेन्नई में अधिक कार्यालय जोड़े गए। इस दिन का महत्व बेहद सीधा और सरल है- देश में पर्यटन की प्रमुखता को उजागर करना और यह भारत की आर्थिक संभावनाओं को प्रभावित करता है। देश में प्रत्येक क्षेत्र में एक समृद्ध इतिहास जुड़ा हुआ है जो विभिन्न तरीकों से स्मरण किया जाता है। पर्यटन यह सब उजागर करने का सबसे अच्छा तरीका है। इसके साथ ही, लोगों को इस बारे में शिक्षित किया जाता है कि यह देश में किस तरह की भूमिका निभाता है।


पर्यटन सिर्फ हमारे जीवन में खुशियों के पलों को वापस लाने में ही मदद नहीं करेगा बल्कि यह देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का माध्यम भी बनेगा। कोरोना के समय में जब समूची अर्थव्यवस्था अस्तव्यस्त हो गयी है, देश की पहली जरूरत अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है उसमें पर्यटन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था पर्यटन-उद्योग के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 


भारतीय पर्यटन दिवस वैश्विक पर्यटक को बढ़ावा देने के प्रयास हेतु मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है एवं इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सामाजिक विरासत को जीवंतता देना एवं उसके प्रति जन जागरूकता फैलाना है। भारत जैसे देशों के लिए पर्यटन का खास महत्व है। देश की पुरातात्विक विरासत या सांस्कृतिक धरोहर केवल दार्शनिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थल के लिए नहीं है बल्कि यह राजस्व प्राप्ति का भी स्रोत है। पर्यटन क्षेत्रों से कई लोगों की रोजी-रोटी भी जुड़ी है। आज भारत जैसे देशों को देखकर ही विश्व के लगभग सभी देशों में पुरानी और ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण, संवर्द्धन किया जाने लगा है।


भारत असंख्य पर्यटन अनुभवों और मोहक स्थलों का देश है। चाहे भव्य स्मारक हों, प्राचीन मंदिर या मकबरे हों, नदी-झरने, प्राकृतिक मनोरम स्थल हो, इसके चमकीले रंगों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रौद्योगिकी से चलने वाले इसके वर्तमान से अटूट संबंध है। केरल, शिमला, गोवा, आगरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मथुरा, काशी जैसी जगहें तो अपने विदेशी पर्यटकों के लिए हमेशा चर्चा में रहती हैं। हालही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या एवं काशी की कायाकल्प करके दुनियाभर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। भारत में अपने लोगों के साथ लाखों विदेशी लोग प्रतिवर्ष भारत घूमने आते हैं। भारत में पर्यटन की उपयुक्त क्षमता है। यहां सभी प्रकार के पर्यटकों को चाहे वे साहसिक यात्रा पर हों, सांस्कृतिक यात्रा पर या वह तीर्थयात्रा करने आए हों या खूबसूरत समुद्री-तटों की यात्रा पर निकले हों, सबके लिए खूबसूरत जगहें हैं। दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में तो लोगों को घूमते-घूमते महीना बीत जाते हैं।

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भारत अपनी सुंदरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारत में विभिन्न संप्रदाय-धर्म और जाति के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। अपनी समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक धरोहर के कारण भारत दुनिया के प्रमुख पर्यटन देशों में शुमार होता है। यहां के हर राज्य की अलौकिक और विलक्षण विशिष्टताएं हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। उन पर्यटकों के लिए भारत-यात्रा का विशेष आकर्षण है जो शांत, जादुई, सौंदर्य और रोमांच की तलाश में रहते हैं। इन पर्यटकों के लिये भारत में विपुल यात्रा साहित्य अपनी एक विशेष पहचान और उपयोगिता को लेकर प्रस्तुत होता रहा है। अब तक यात्रा साहित्य की दृष्टि से राहुल सांकृत्यायन का ‘मेरी तिब्बत यात्रा’, डॉ. भगवतीशरण उपाध्याय का ‘सागर की लहरों पर’, कपूरचंद कुलिश का ‘मैं देखता चला गया’, धर्मवीर भारती का ‘ढेले पर हिमालय’ तथा नेहरू का ‘आंखों देखा रूस’, रामेश्वर टांटिया का ‘विश्व यात्रा के संस्मरण’, आचार्य तुलसी का यात्रा साहित्य की ही भांति मेरे मित्र श्री पुखराज सेठिया का ‘आओ घूमे अपना देश’ एक मार्मिक और रोचक यात्रा-वृतांत है। इन ग्रंथों में तथ्यपरकता, भौगोलिकता, रोचकता, सरसता और सहजता आदि यात्रा-वृत्त के सभी गुण समाहित हैं। इन ग्रंथों के कारण देश की इन विविधताओं ने ही देश एवं दुनिया के अनेक यायावरी लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। इन यायावरी पुरुषों के जीवन का लक्ष्य जीवन की आपाधापी, भागदौड़ से हटकर प्रमुख पर्यटन स्थलों के बीच जीवन के मायने ढूंढ़ना रहा है। इसी सत्य की खोज ने उन्हें ऐसे-ऐसे ऐतिहासिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्थलों से साक्षात्कार करवाया है। भारतीय पर्यटन दिवस मनाते हुए सेठिया की पुस्तक ‘आओ घूमे अपना देश’ एक सार्थक एवं उपयोगी पुस्तक है, जिसमें उनकी भारत की यात्राओं के दौरान अनुभूत तथ्यों का प्रभावी एवं जीवंत चित्रण किया है। जो अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण सामग्री एवं मौलिक तथ्यों को पर्यटकों के सम्मुख प्रस्तुत करता है। इन यात्रा-ग्रंथों में केवल प्रमुख दर्शनीय स्थलों का वर्णन नहीं है बल्कि वहां के लोगों, वहां के खान-पान, वहां की जीवनशैली, वहां के सांस्कृतिक मूल्य, वहां के ऐतिहासिक तथ्य का भी जीवंत प्रस्तुतीकरण है।

 

यह भारत पल-पल परिवर्तित, नितनूतन, बहुआयामी और इन्द्रजाल की हद तक चमत्कारी यथार्थ से परिपूर्ण है। इस भारत की समग्र विविधताओं, नित नवीनताओं और अंतर्विरोधों से साक्षात्कार करना सचमुच अलौकिक एवं विलक्षण अनुभव है। जिससे इस बहुरूपी भारत को उसके बहुआयामी और निहंग वास्तविक रूप में देखा जा सके और ऊबड़-खाबड़ अनगढ़ता की परतों में छिपी सुंदरता को उद्घाटित किया जा सके। हम भारत को एक गुलदस्ते की भांति अनुभव करते हैं, एक ऐसा गुलदस्ता जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्प सुसज्जित हैं। किसी फूल में कश्मीर की लालिमा है तो किसी में कामरूप का जादू। कोई फूल पंजाब की कली संजोए हैं, तो किसी में तमिलनाडु की किसी श्यामा का तरन्नुम। किसी में राजस्थान के बलिदान की गाथाएं है तो किसी में उत्तरप्रदेश की धार्मिकता। महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और अन्य प्रदेशों में तो विविधता में सांस्कृतिक एकता के दर्शन होते हैं। इसी भांति जैसलमेर में पर्यटन से हटकर वहां संग्रहीत प्राचीन पांडुलिपियों की विशद् जानकारी, स्थापत्य कला एवं जैन दर्शनीय स्थलों का अनुभव भी अनूठा है। 

भारत में प्राचीन समय से पर्यटन की व्यापक संभावनाएं एवं स्थितियां रही है, लेकिन एक समय ऐसा आया जब भारत के पर्यटन स्थल खतरे में नजर आने लगे और लगने लगा कि शायद अब भारत पर्यटक स्थल के नाम पर पर्यटकों की पहली पसंद नहीं रहेगा। दुनिया में आई आर्थिक मंदी और आतंकवाद के चलते ऐसा लगने लगा कि पर्यटक अब भारत का रुख करना पसंद नहीं करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक सुन्दरता इतनी ज्यादा है कि पर्यटक ज्यादा समय तक यहां के सुन्दर नजारे देखने से दूर नहीं रह सके। यही वजह है कि भारत में विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न शहरों में अलग-अलग योजनाएं भी लागू की गयीं हैं। भारतीय पर्यटन विभाग ने ‘अतुल्य भारत’ नाम से अभियान चलाया था। इस अभियान का उद्देश्य भारतीय पर्यटन को वैश्विक मंच पर प्रोत्साहित करना था जो काफी हद तक सफल हुआ। इसी तरह राजस्थान पर्यटन विकास निगम ने रेलगाड़ी की शाही सवारी कराने के माध्यम से लोगों को पर्यटन का लुत्फ उठाने का मौका दिया। जिसे ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ नाम दिया गया। देश के द्वार विदेशी सैलानियों के लिए खोलने का काम यदि सही और सटीक विपणन ने किया तो हवाई अड्डों से पर्यटन स्थलों के सीधे जुड़ाव ने पर्यटन क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज नरेन्द्र मोदी सरकार भारतीय पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिये उल्लेखनीय कार्य कर रही है, जिनमें भारतीय रेल की महत्वपूर्ण भूमिका है, ताकि सैलानी पर्यटन के लिहाज से सुदूर स्थलों की सैर भी आसानी से कर सकते हैं। सिमटती दूरियों के बीच लोग बाहरी दुनिया के बारे में भी जानने के उत्सुक रहते हैं। यही कारण है कि आज भारत में टूरिज्म एक फलता फूलता उद्योग बन चुका है। कोरोना महामारी से निजात पाने के बाद यही उद्योग जीवन में खुशहाली का माध्यम बनेगा एवं अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने का सशक्त माध्यम सिद्ध होगा। 


- ललित गर्ग

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