1 मई 1978 को जब संजय गांधी 30 दिन की सजा सुनाए जाने के बाद जेल ले जाए जा रहे थे तो इंदिरा गांधी ने उनसे कहा था कि दिल छोटा मत करो यह तुम्हारा पुनर्जन्म होगा। कहते हैं इतिहास खुद को कभी दोहराता नहीं न ही कभी दोबारा मौका देता है। लेकिन नेशनल हेराल्ड मामले ने इतिहास को दोहराव की दहलीज पर लाकर रख दिया। जवाहर लाल नेहरू जो कभी खुद सरकार कहलाते थे और कुछ सालों पहले तक जिस सोनिया गांधी के पास देश की सत्ता की चाबी हुआ करती थी वो ये कहती सुनाई दीं कि मैं इंदिरा गांधी की बहू हूं और किसी से नहीं डरती...
वैसे तो दिल्ली में हर वक्त गुलजार रहने वाले बहादुरशाह जफर मार्ग स्थित नेशनल हेराल्ड में अब लगभग सन्नाटा पसरा रहता है। पर इसको लेकर संसद से लेकर सड़क तक चले नाटकीय घटनाक्रम ने जैसे मूक पड़े इस भवन के प्रेत को जीवंत कर दिया और राजनीतिक गलियारों में एक ही सवाल पूछा जाने लगा कि देश पर पचास साल से भी ज्यादा समय तक राज करने वाले गांधी परिवार पर हेराल्ड अखबार तलवार बनकर लटक रहा है। आज हम 70 साल पुराने हेराल्ड अखबार की कहानी के साथ ही क्यों और कैसे ये केस गांधी परिवार के गले की फांस बना है इसकी भी चर्चा करेंगे।
पहले 6 लाइनों में जान लीजिए नेशनल हेराल्ड है क्या?
शुरु शुरु में अखबार में ये लाइने लिखा हुआ करती थीं Freedom is in Peril, Defend it with All Your Might यानी स्वतंत्रता खतरे में है और हमें इसकी रक्षा करनी है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इसके पहले संपादक थे। साल 1942 में अंग्रेजों ने इंडियन प्रेस पर हमला कर दिया था जिस वजह से इस अखबार को बंद करना पड़ा। साल 1942 से लेकर 1945 तक अखबार का एक भी अंक प्रकाशित नहीं हुआ। साल 1945 के खत्म होते होते इस अखबार को एक बार फिर से शुरु करने की कोशिश की गई। नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद अब केराम राव हेराल्ड के संपादक पद पर बैठे। साल 1946 में इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने अखबार का प्रबंधन संभाला। ये वो दौर था जब मानिकोंडा चलापति राव अखबार का संपादन कार्य कर रहे थे और इसके दो संस्करण दिल्ली और लखनऊ से छापे जा रहे थे।
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साल 1977 में एक बार फिर से इस अखबार को बंद करना पड़ा। इंदिरा गांधी की चुनाव में हार हुई। अब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अखबार की कमान संभालनी पड़ी। लखनऊ संस्करण को मजबूरन बंद करना पड़ा, सिर्फ दिल्ली का अंक ही प्रकाशित हो पाता था। खराब प्रिंटिंग और तकनीकी खामियों का हवाला देते हुए साल 2008 में इसके दिल्ली अंक को भी बंद करने का फैसला किया गया। उस वक्त अखबार के संपादक थे टीवी वेंकेटाचल्लम। साल 2008 में इस अखबार को पूरी तरह से बंद कर दिया गया। इस अखबार का मालिकाना हक एसोसिएट जर्नल्स को दे दिया गया। इस कंपनी ने कांग्रेस से बिना ब्याज के 90 करोड़ रुपए कर्जा लिया। लेकिन अखबार फिर भी शुरु नहीं हुआ। 26 अप्रैल 2012 को एक बार फिर से मालिकाना हक का स्थानांतरण हुआ। अब नेशनल हेराल्ड का मालिकाना हक यंग इंडिया को मिला। यंग इंडिया में 76 फीसदी शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास हैं। जानकारी के मुताबिक यंग इंडिया ने हेराल्ड की संपत्ति महज 50 लाख में हासिल की जिसकी कीमत करीब 1600 करोड़ के आस पास थी।
सारा मामला 2012 में सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाया था। स्वामी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस पार्टी ने अपने पार्टी के पैसे से सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कंपनी यंग इंडिया को 90 करोड़ रूपए उधार दिए। उस पैसे से राहुल सोनिया की कंपनी यंग इंडिया ने नेशनल हेराल्ड अखबार निकालने वाली कंपनी एसोसिएट जनरल को खरीद लिया और उस कंपनी की करीब 5 हजार करोड़ की संपत्ति गांधी परिवार के पास आज भी मौजूद है।
स्वामी ने क्या-क्या आरोप लगाए?
स्वामी ने कहा कि कांग्रेस ने पहले तो 90 करोड़ का लोन दिया। फिर अकाउंट बुक्स में हेर-फेर करके उस रकम को 50 लाख दिखा दिया। यानी 89 करोड़ 50 लाख रुपए यहीं माफ कर दिए गए।
अखबार छपना बंद होने के बाद असोसिएटेड जर्नल ने प्रॉपर्टी का काम शुरू कर दिया यानी वो रियल एस्टेट फर्म बन गई, जो दिल्ली, लखनऊ और मुंबई में बिजनेस कर रही थी।
स्वामी का आरोप है कि इस रियल एस्टेट फर्म के हिस्से जो भी प्रॉपर्टी थीं, वो भी कांग्रेस के नेताओं ने अपने नाम कर लीं, क्योंकि असोसिएटेड जर्नल को यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड खरीद चुकी थी।
अब आगे क्या?
नेशनल हेराल्ड से जुड़े आयकर मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 17 मार्च को सुनवाई होनी है। मामले में राहुल गांधी, सोनिया गांधी व ऑस्कर फर्नांडीस ने याचिका दाखिल की है। बता दें कि कोर्ट की ओर से सोनिया गांधी व राहुल गांधी के कर आकलन को जारी रखने के लिए आयकर विभाग को मंजूरी दी जा चुकी है। कोर्ट ने कहा था कि अगले आदेश तक आयकर विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। इसमें आयकर विभाग ने 2011-12 की टैक्स जांच के लिए तीनों (राहुल, सोनिया, फर्नांडीस) को नोटिस दिया था। जिसकी वैधता के खिलाफ तीनों नेताओं ने याचिका दाखिल की थी। मामले में सोनिया और राहुल गांधी फिलहाल जमानत पर चल रहे हैं।
गांधी परिवार के अदालती चक्कर
वैसे तो गांधी परिवार में ऐसे मौके इतिहास में बहुत कम आए हैं जब कोई अदालत में पेश हुआ हो। कांगेस ने इस देश पर 54 वर्षों तक राज किया और आजादी के 73 साल के इतिहास में इक्के-दुक्के मौकों पर ही नेहरू-गांधी परिवार के लोगों को अदालत में पेश होना पड़ा था। 18 मार्च 1975 को इंदिरा गांधी अदालत में पेश होने वाली पहली प्रधानमंत्री बनी थीं। इंदिरा इलाहाबाद हाई कोट में जस्टिस जगमोहन लालसेना की अदालत में पेश हुई थीं और उनसे वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने चार घंटे और बीस मिनट तक पूछताछ की थी। इंदिरा गांधी पर जनप्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का आरोप था।
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संजय गांधी भी पॉलिमिक्स केस में 24 अगस्त 1977 को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में पेश हुए थे। हालांकि जज ने उन्हें उसी वक्त जमानत दे दी थी। अगले ही दिन 25 अगस्त 1977 को संजय गांधी और वीसी शुक्ल इमरजेंसी पर बनी फिल्म के केस में अदालत में पेश हुए थे। इस फिल्म का नाम किस्सा कुर्सी का था। राहुल गांधी का तो अदालती चक्कर कुछ ज्यादा ही रहा है। चाहे वो भिवंडी कोर्ट में मानहानि का मुकदमा रहा हो या शिवडी, मझगांव कोर्ट या फिर पटना कोर्ट। राहुल लगातार कोर्ट के चक्कर लगाते रहे हैं।
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बहरहाल, कानून के सामने सब बराबर हैं। कोई भी उससे ऊपर नहीं है और भारत में यह परंपरा नहीं रही कि महारानी कानून के सामने उत्तरदायी नहीं हैं। ऐसे में 17 मार्च को देश की सबसे बड़ी अदालत ने अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। जिसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है।
-अभिनय आकाश