NASA के अंतरिक्ष यान ने भारत के Chandrayaan 3 के लैंडर का चंद्रमा की सतह पर पता लगाया

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 22, 2024

नयी दिल्ली। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के, चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगा रहे अंतरिक्ष यान ने भारत के चंद्रयान-3 मिशन के तहत भेजे गए विक्रम लैंडर की चंद्रमा पर स्थिति का सफलतापूर्वक पता लगा लिया है। अमेरिकी एजेंसी ने यह जानकारी दी। नासा ने बताया कि लेजर रोशनी को लूनर रेकॉनिसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) और विक्रम लैंडर पर एक छोटे रेट्रोरिफ्लेक्टर के बीच प्रसारित और परावर्तित किया गया, जिससे चंद्रमा की सतह पर लक्ष्य का सटीकता के साथ पता लगाने की एक नई शैली का तरीका मिल गया। 


लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में मंज़िनस क्रेटर के पास एलआरओ से 100 किलोमीटर दूरथा, जब एलआरओ ने पिछले साल 12 दिसंबर को इसकी ओर लेजर तरंगें भेजीं। ऑर्बिटर ने विक्रम पर लगे एक छोटे रेट्रोरिफ्लेक्टर से वापस लौटकर आई रोशनी दर्ज की जिसके बाद नासा के वैज्ञानिकों को पता चला कि उनकी तकनीक काम कर गई है। किसी वस्तु की ओर लेजर तरंगों को भेजना और प्रकाश को वापस लौटने में लगने वाले समय की माप, जमीन से पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों के स्थानों का पता लगाने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है। 


वैज्ञानिकों ने बताया कि चंद्रमा पर ‘रिवर्स तकनीक’ का उपयोग करने के कई लाभ हैं। इस तकनीक में एक गतिमान अंतरिक्ष यान से लेजर तंरगों को, लक्ष्य के सटीक स्थान को निर्धारित करने के लिए एक स्थिर अंतरिक्ष यान में भेजा जाता है। नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में टीम का नेतृत्व करने वाले जियाओली सन ने कहा, ‘‘हमने प्रदर्शित किया है कि हम चंद्रमा की कक्षा से सतह पर अपने रेट्रोरिफ्लेक्टर का पता लगा सकते हैं।’’ रेट्रोरिफ्लेक्टर बताता है कि रोशनी स्रोत की ओर परावर्तित होती है जिससे वस्तु का पता लगाया जा सकता है। नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की साझेदारी के तहत विक्रम पर लगे रेट्रोरिफ्लेक्टर विकसित किए गए। 

 

इसे भी पढ़ें: राहुल की न्याय यात्रा पर बोलीं स्मृति ईरानी, बरसाती मेंढक से की पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष की तुलना


नासा के एक बयान में सन ने कहा, ‘‘अगला कदम तकनीक में सुधार करना है ताकि इनका नियमित तौर पर उपयोग उन मिशन में किया जा सके जो भविष्य में इन रेट्रोरिफ्लेक्टर का उपयोग करना चाहते हैं।’’ केवल दो इंच या पांच सेंटीमीटर चौड़े, नासा के छोटे लेकिन शक्तिशाली रेट्रोरिफ्लेक्टर में आठ क्वार्ट्ज-कोणीय-क्यूब प्रिज्म हैं जो एक गुंबद के आकार के एल्यूमीनियम फ्रेम में स्थापित हैं। इसे लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे भी कहा जाता है। नासा ने वैज्ञानिकों के हवाले से बताया कि यह उपकरण सरल और टिकाऊ है। इसके लिए बिजली या रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती और यह दशकों तक काम कर सकता है। 

 

इसे भी पढ़ें: Rajasthan में नहीं थम रहा ठण्ड का कहर, सीकर जिले में न्यूनतम तापमान 1.6 डिग्री पंहुचा


नासा ने कहा कि इसका विन्यास रेट्रोरिफ्लेक्टर को किसी भी दिशा से आने वाले प्रकाश को वापस उसके स्रोत तक प्रतिबिंबित करने में समक्ष बनाता है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि सूटकेस के आकार के रेट्रोरिफ्लेक्टर ने पृथ्वी पर प्रकाश को प्रतिबिंबित करके खुलासा किया कि चंद्रमा प्रति वर्ष 3.8 सेंटीमीटर की दर से हमारे ग्रह से दूर जा रहा है। इस घटनाक्रम परप्रतिक्रिया देते हुए इसरो ने कहा कि चंद्रयान-3 लैंडर पर लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे (एलआरए) ने चंद्रमा पर संदर्भ के लिए सटीक रूप से स्थित एक मार्कर यानी‘फिडुशियल पॉइंट’ के रूप में काम करना शुरू कर दिया है।

प्रमुख खबरें

Shubhra Ranjan IAS Study पर CCPA ने लगाया 2 लाख का जुर्माना, भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने है आरोप

मुंबई कॉन्सर्ट में विक्की कौशल Karan Aujla की तारीफों के पुल बांध दिए, भावुक हुए औजला

गाजा में इजरायली हमलों में 20 लोगों की मौत

वाम शासन में पिछड़ा रहा Tripura, भाजपा ने किया विकास, राज्य में बसाये गए ब्रू आदिवासी गांव के दौरे के दौरान बोले Amit Shah