नासूर पक गया है। शल्य चिकित्सा जारी है। 70 वर्षों के घाव भरने में समय तो लगेगा ही। इसका कचरा साफ करने में भी दिक्कतें आयेंगी। यह माथे का घाव है न। पीड़ा भी बहुत देगा। अभी तक देश की देह इसी पीड़ा में तो थी। जब से शल्य कार्य प्रारम्भ हुआ है देह में फुर्ती आने लगी है। घाव भी थोड़ा ही रह गया है। अब सब काबू में है। यकीन मानिये कश्मीर समस्या मुक्त होन जा रहा है। कश्मीर की समस्या अब इतिहास का एक पन्ना ही रहेगा। वर्तमान का संघर्ष भविष्य में केसर की क्यारियों में तब्दील होने वाला है। 7 अगस्त को संसद का सत्र समाप्त होते ही गृह मंत्री कश्मीर पहुंच रहे हैं। यह भरोसे का संकेत है। मां भारती का मस्तक चमकने वाला है।
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पिछले एक सप्ताह में कश्मीर के हालात को लेकर कयासों का जो दौर चला है वह अब से पूर्व के कयासबाजी से थोड़ा अलग है। ऐसा पहली बार हुआ है कि कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती को देश ने कुछ बड़ा होने का संकेत माना है। इस कुछ बड़ा में क्या क्या संभव है इस पर आगे चर्चा करेंगे। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि नरेन्द्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिनको जम्मू‚ कश्मीर घाटी‚ लेह और स्पीति के सभी स्थलों का ठीक-ठीक पता है। वह यहां के भूगोल से तो परिचित हैं ही यहां के इतिहास और संस्कृति की भी पर्याप्त जानकारी रखते हैं। यहां तक कि कश्मीर के साथ जुड़ी एलओसी के उस पार की भौगोलिक और सांस्कृतिक प्रकृति पर भी मोदी की बहुत अच्छी पकड़ है। वह देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो इस पूरे क्षेत्र में अपने कार्यकाल के पहल दिन से ही खास उपस्थिति बनाये हुए हैं। ऐसा पिछले 70 वर्षों में किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया और न ही किसी ने सोचा। मोदी का मिशन कश्मीर समझने के लिये उनके पिछले कार्यकाल के पहले दिन से लेकर अब तक की भाव भंगिमाओं को विश्लेषित करना होगा।
अब यह तथ्य तो प्रमाणित है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर मोदी क्या करने वाले हैं इसकी जानकारी किसी को नहीं होती। इतना प्रभावशाली खुफिया तंत्र इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला। वर्ष 2014 से पूर्व भारत सरकार की हर रणनीति सार्वजनिक हो जाया करती थी या मीडिया में किसी न किसी रूप में आ जाती थी। वर्ष 2014 के बाद से अब तक इस मामले में मीडिया या अनुमान लगाने वाले समूह हवा में हैं। इसीलिये पिछले एक सप्ताह से कश्मीर में हो रही गतिविधियों को लेकर कोई भी व्यक्ति या समूह कुछ भी ठोस बताने की स्थिति में नहीं है। घाटी में इस समय लगभग 80 हजार अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती हो चुकी है। पवित्र अमरनाथ यात्रा को 13 दिन पहले ही स्थगित किया जा चुका है। यात्रियों के साथ–साथ सभी पर्यटकों और बाहरी नागरिकों को कश्मीर से बाहर निकल जाने की एडवाईजरी जारी की जा चुकी है। यहां तक कि लगभग साढ़े तीन लाख मजदूर भी अपने मूल राज्यों में वापस भेज दिये गये हैं।
ब्रिटेन‚ जर्मनी और आस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने अपने नागरिकों से तत्काल घाटी छोड़ने का निर्देश जारी कर दिया है। घाटी के अलगाववादी नेतओं को अलग-थलग किया जा चुका है। मुफ्ती और अब्दुल्ला खानदान के लोग पहली बार केन्द्र की अर्दब में दिख रहे हैं। गतिविधियां बहुत तेज हैं। एलओसी पर जमावड़ा बढ़ रहा है। घाटी का नजारा बदल रहा है। सख्त निर्देश है कि कोई भी मंत्री या अधिकारी किसी भी प्रकार के बयान जारी नहीं करेगा।
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इसी बीच पाक अधिकृत कश्मीर में 30 किलोमीटर भीतर स्थापित किये गये आतंकवादी कैम्पों पर भारतीय सेना द्वारा हमला कर उन्हें तहस–नहस कर दिये जाने की खबर है। पाकिस्तान की तरफ से भी अफवाहों का बाजार गर्म है और अलग अलग प्रकार की सूचनाएं प्रकाशित की जा रही हैं। पाकिस्तान सेना के इंटरसर्विस पब्लिक रिलेशन के एक प्रवक्ता ने दावा किया है कि पीओके के नीलम सेक्टर में 30 और 31 जुलाई की रात को भारतीय सेना ने क्लस्टर बम गिराये जिसमें उसके दो नागरिक मारे गये और 11 घाायल हुए। इसके जवाब में भारतीय सेना ने कहा कि हम क्लस्टर बमों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसी बीच एक खबर यह भी आ रही है कि अमरनाथ यात्रियों पर हमला करने के लिये एलओसी के उस पार से एक सुरंग बनाई गई थी। इसकी जानकारी लगते ही भारतीय तंत्र सक्रिय हुआ और उसके बाद से कश्मीर में सबकुछ बदलने लगा। बताया जा रहा है कि आतंकियों के इस सुरंग का इस्तेमाल कर भारतीय सेना ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की है‚ लेकिन इस प्रकरण पर औपचारिक रूप से कोई भी कुछ कहने को तैयार नहीं है।
फिर कयास लगने लगे कि कश्मीर में कुछ होने वाला है‚ कुछ बड़ा होने वाला है‚ क्या होने वाला है इसका सटीक उत्तर किसी के पास नहीं लेकिन गृहमंत्री की सक्रियता और प्रधानमंत्री की इस मुद्दे पर अब तक की खामोशी यह बता रही है कि कश्मीर निश्चित तौर पर काबू में आ चुका है। अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदान की बारूदी बयानबाजी अब घिघियाने की मुद्रा में है। इस मुद्रा को दुनिया देख भी रही है और समझ भी रही है।
-संजय तिवारी