अपशिष्ट जल में नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व पाये जाते हैं, जिनकी आवश्यकता पौधों को विकसित होने के लिए होती है। फर्टिलाइजर-अपशिष्ट खेतों से बहकर नदियों-तालाबों जैसे जलस्रोतों में पहुँच जाते हैं, और वहाँ पाये जाने वाले पादप समूह के लिए पोषक-तत्व का काम करते हैं।
ये पोषक तत्व प्रायः जलस्रोतों की सतह पर शैवाल जैसी अवांछित पादप वृद्धि को भी प्रोत्साहित करने के लिए जाने जाते हैं। इससे जल की सतह के नीचे फाइटोप्लैंकटन की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया बाधित होती है। इसके साथ ही, कुछ शैवाल विषैले तत्व भी उत्सर्जित करते हैं। बैक्टीरिया द्वारा विघटित मृत शैवाल पानी की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं, जिससे दुर्गंध पैदा होती है। कुछ बैक्टीरिया; मीथेन, जो एक ग्रीनहाउस गैस है, भी पैदा करते हैं।
भारतीय शोधकर्ताओं ने इस समस्या से निपटने के लिए एक पर्यावरण-हितैषी तरीका खोज निकाला है। उन्होंने कटहल के छिलके पर आधारित नैनो-कम्पोजिट विकसित किए हैं। उनका कहना है कि ये नैनो-कम्पोजिट अपशिष्ट जल से नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों को अलग करने में मददगार हो सकते हैं। यह अध्ययन देहरादून स्थित ग्राफिक इरा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
नैनो-कम्पोजिट तैयार करने के लिए उन्होंने सूखे कटहल के छिलके को गर्म करके उसका पाउडर बनाया है। शोधकर्ताओं का तर्क है कि पॉलीसेकेराइड-युक्त कटहल के छिलके के पाउडर से बने नैनो-कम्पोजिट में, सोखने की बेहतर क्षमता के लिए आवश्यक उच्च छिद्र व्यास और सतह क्षेत्र होता है। उन्होंने मशरूम से पॉलीसेकेराइड निकाले और उन्हें कटहल के छिलके के पाउडर पर चुंबकीय रूप से लगाया।
परीक्षण किया गया तो नैनो-कम्पोजिट ने पीएच-4 से पीएच-6 पर अधिकतम पोषक तत्व हटाने की दक्षता दिखायी। इस स्थिति में, प्रयोगशाला में किए गए परीक्षणों में शोधकर्ताओं ने पाया कि ये नैनो-कम्पोजिट 99% फॉस्फेट और नाइट्रेट को पानी से हटा सकते हैं। इसके बाद शोधकर्ताओं ने लगातार बहने वाले अपशिष्ट जल प्रणाली में नैनो-कम्पोजिट का परीक्षण किया। इसने अपशिष्ट जल से 96% तक फॉस्फेट और नाइट्रेट्स को हटा दिया।
ग्राफिक इरा यूनिवर्सिटी, देहरादून के शोधकर्ता बृज भूषण कहते हैं कि "कटहल के छिलके पर आधारित नैनो-कम्पोजिट ने चुनिंदा आयनों की उपस्थिति में भी अपशिष्ट जल से फॉस्फेट और नाइट्रेट्स को हटाने में अपनी क्षमता प्रदर्शित की है।"
उनकी सहयोगी अरुणिमा नायक कहती हैं, 'छह चक्रों के पुन: उपयोग के बाद भी नैनो-कम्पोजिट में पोषक तत्वों को हटाने की क्षमता में केवल 10 प्रतिशत कमी देखी गई है। इसका अर्थ है कि इस कम्पोजिट का पुनः उपयोग संभव है। पर्यावरण के अनुकूल नैनो-कम्पोजिट पानी से पोषक तत्वों को अलग करने का एक सस्ता तरीका है, जो जल प्रदूषण को कम कर सकता है।
यह अध्ययन जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल ऐंड इंजीनियरिंग केमिस्ट्री में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में बृज भूषण और अरुणिमा नायक के अलावा वर्तिका गुप्ता एवं श्रेया कोटनाला शामिल हैं।
(इंडिया साइंस वायर)