नेफेड निदेशक का साक्षात्कारः 'मंडियों की दलाली खत्म होने पर हो रहा है बवाल'

By डॉ. रमेश ठाकुर | Oct 19, 2020

सरकारी संस्था ‘नेफेड’ यानी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ जिसका गठन दशकों पहले गठन केंद्र सरकार द्वारा किया गया था। मकसद, कृषि उत्पादों के सहकारी विपणन को बढ़ाना और किसानों को उनके फसली दामों का उचित मूल्य दिलवाने के साथ-साथ खेती-किसानी संबंधित समस्याओं को मॉनीटिर करना है। ये संस्था इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इनके कार्य करने का वास्ता सीधे अन्नदाताओं से जुड़ा है। फसल के मूल्य, मंडियों का भाव, एफसीआई का खाद्यान्न सभी की जिम्मेदारियां इस संस्था के ज़िम्मे होती हैं। इस वक्त कृषि से संबंधित तीन विधयकों को लेकर देशभर में माहौल गर्म है उस माहौल में नरमी लाने की ज़िम्मेदारी भी इसी संस्था की है। संस्था के निदेशक अशोक ठाकुर से विभिन्न मसलों पर डॉ0 रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

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प्रश्न- अन्नदाताओं को फसलों का उचित दाम नहीं मिल पाता, ऐसे में नेफेड संस्था किस तरह की भूमिका निभाती है?


उत्तर- देखिए, नेफेड का मकसद हमेशा से कृषि उत्पादों को बढ़ाने पर रहा है। इसके लिए हमारी केंद्रीय परामर्श टीम देश के विभिन्न राज्यों और विभिन्न हिस्सों में जाकर अन्नदाताओं से विमर्श करती है। कौन-कौन-सी फसलें खेतों में लगती हैं और उनमें कितनी लागतें आती हैं। उस हिसाब से हम फसलों पर मूल्यों का निर्धारण करके केंद्र सरकार को प्रस्तुत करते हैं। उसके बाद कृषि मंत्रालय अनाज की कीमत तय करता है। कुछ फसलें जैसे दालों को उगाने में किसानों को ज्यादा लागत लगानी पड़ती है उसका रेट दूसरी फसलों से ज्यादा रखा जाता है। फसलों का रेट प्रति छमाही बदला जाता है। बढ़ता ही है, कम नहीं होता। मैं संस्था का चैयरमेन होने से पहले एक किसान हूं, इसलिए किसानों की समस्याओं को भलीभांति समझता भी हूं।


प्रश्न- किसानों का आरोप है कि सरकारें फसलों के मूल्यों पर एमएसपी अपने हिसाब से लागू करती हैं, जबकि भागीदारी उनकी भी होनी चाहिए?


उत्तर- जिन आरोपों की आप बात कर रहे हैं, वह आरोप उनके नहीं, बल्कि विपक्षी दलों के हैं। विपक्षी पार्टियाँ किसानों को मोहरा बनाकर अपनी सियासत चमकाती हैं। पर, भोलाभाला किसान उनकी चालाकी को समझ नहीं पाता। इस वक्त भी किसानों को वह गुमराह कर रहे हैं। संसद में कृषि के जो तीन बिल पास हुए हैं वह पूर्णतः किसान हित में हैं। उससे निश्चित रूप से किसानों को ही फायदा होगा। फसली मूल्यों का सीधा पैसा उनके पास पहुँचेगा, ऐसा प्रावधान बिल में किया गया है। लेकिन किसान समझने को राजी नहीं हैं। विपक्षी दल उन्हें लगातार गुमराह कर रहे हैं।

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प्रश्न- नेफेड का मौजूदा कृषि बिलों पर क्या तर्क है?


उत्तर- तर्क पानी की तरह साफ है। बिलों का असर अभी नहीं कुछ वर्षों बाद दिखाई पड़ेगा, जब किसानों को प्रत्यक्ष रूप से फायदा होने लगेगा। संस्था कृषि से संबंधित तमाम समितियों के उन्नयन एवं कृषि के लिए फसल उत्पादन में सहायता और तकनीकी परामर्श देने का कार्य करती है, ताकि खेती की उत्पादन क्षमता बढ़ सके। हमारी संस्था का सीधा और साफ मकसद है कि किसानों को खेतीबाडी से लाभ मिले। संस्था का मुख्य उद्देश्य कृषि, उद्यम कृषि एवं वन उत्पाद का विपणन, संसाधन, भण्डारण की व्यवस्था करना, उन्नयन और विकास करना है। इसके अलावा कृषि यंत्रों, उपकरणों एवं अन्य प्रकार के उपकरणों का वितरण करना और अंतर्राज्यीय, राज्यांतर्गत, यथास्थिति थोक या खुदरा आयात-निर्यात व्यापार करना है।


प्रश्न- केंद्र सरकार ने 22 फसलों पर एमएसपी लागू किया है, दूसरी फसलों पर क्यों नहीं?


उत्तर- ये गनीमत समझो कि यह आंकड़ा 22 तक पहुंचा। वरना कांग्रेस शासन में मात्र तीन-चार फसलों पर ही एमएसपी लागू था। सन् 2014 के बाद दूसरी फसलों को ही एमएसपी में लाया गया। तभी ये आंकड़ा इतना पहुंचा। लेकिन आपका सवाल वैसे वाजिब है, अन्य फसलों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इस मसले पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। 


प्रश्न- मंडियों में बिचौलियों का बोलबाला रहता है हमेशा, कैसे खत्म होगी ये प्रथा?


उत्तर- इस तरह की जब शिकायतें संस्था को मिलती हैं, तो हम समय-समय पर छापेमारी करते हैं। लेकिन ये पूर्ण रूप से सच है कि किसानों को मिलने वाले फसली मूल्यों पर मंडियों के दलालों का जबरन कब्ज़ा हुआ करता था। बिलों में इसी तंत्र को भेदने का तोड़ है। किसान जब मंडी में अपना अनाज बेचेंगे, तो उसका पैसा सीधे उनके जेब में जाएगा। बिचैलियों का खेल तकरीबन खत्म होगा। मंडी के दलालों की सिवाए स्थानीय प्रशासन से जुड़े अधिकारियों की भी भूमिका इस खेल में होती थी। सभी की कमीशन खोरी को खत्म करने का आखिरी दांव केंद्र सरकार ने खेल दिया है।


प्रश्न- किसान नेताओं को फिर क्यों परेशानियां हो रही हैं?


उत्तर- जाहिर-सी बात है परेशानियां तो होंगी ही, क्यों नहीं होंगी? उनके पेट पर लात जो मारी जा रही है। पेट के अलावा उनकी किसानों की आड़ में होने वाली नेतागिरी भी खत्म हो रही है। जब किसान खुशहाल होगा, उसे उचित दाम मिलेगा, फिर अन्नदाता किसान नेताओं के झांसे में नहीं आएंगे। वह उनके नाम पर राजनीति भी नहीं कर पाएंगे। इसी बात की उनमें बिलबिलाहट है। तभी तो पुराने ट्रैक्टरों को जलाकर अपनी टीस निकाल रहे हैं। उनका यह ड्रामा भी और चलेगा। 


-बातचीत के दौरान जैसा नेफेड चैयरमेन अशोक ठाकुर ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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