By अभिनय आकाश | Jul 01, 2022
अमरनाथ यात्रा का पहला जत्था रवाना हो चुका है। बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए यात्रियों का ये पहला जत्था पहलगाम और बालटाल दो जगहों से रवाना हुआ है। ये जत्था कठिन रास्ता तय करके पवित्र अमरनाथ गुफा तक पहुंचेगा। पहलगाम से 2750 श्रद्धालुओं का पहला जत्था बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए रवाना हुआ। कोरोना महामारी की वजह से ये यात्रा पिछले दो साल से बंद थी। जम्मू कश्मीर के उप राज्य पाल मनोज सिन्हा ने जम्मू से यात्रियों के जत्थे को रवाना किया था। यात्रा के लिए इस बार सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए यात्रियों को ले जाने वाली गाड़ियों पर रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन टैग लगाया गया है। इस साल अमरनाथ यात्रा 11 अगस्त यानी कि रक्षा बंधन तक चलेगी। इस साल आतंकवादियों से अधिक संभावित खतरे के आलोक में यात्रा के आसपास सुरक्षा कर्मियों की सामान्य संख्या से लगभग 3-4 गुना अधिक तैनात किया गया है। इस साल की अमरनाथ यात्रा "ऐतिहासिक" होगी। केंद्रीय सूचना और प्रसारण सचिव अपूर्व चंद ने अप्रैल में कहा था - कुछ 6-8 लाख तीर्थयात्री मंदिर का दौरा करेंगे। 2019 में पिछली बार यात्रा आयोजित की गई थी। सरकार ने जम्मू और कश्मीर के पूर्ववर्ती राज्य में संवैधानिक परिवर्तनों से पहले तीर्थयात्रा को बीच में ही रद्द कर दिया था।
अमरनाथ का मूल मिथक
हिमालय की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव की गुफा की अमरनाथ यात्रा को देश के सबसे प्रतिष्ठित तीर्थों में से एक माना जाता है। हर साल, सैकड़ों हजारों तीर्थयात्री तीर्थ यात्रा करते हैं। एक पौराणिक कथा के आधार पर, जब भगवान शिव ने पार्वती को अपनी अमरता (अमर कथा) का रहस्य बताने का फैसला किया, तो उन्होंने दक्षिण कश्मीर में हिमालय के अंदर स्थित अमरनाथ गुफा को चुना। मान्यता है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरत्व की कथा सुनाई थी, जिसे सुनकर उसी समय जन्मे शुक शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। ऐसी कथायें भी प्रचलित हैं कि जिन भक्तों पर शिव पार्वती प्रसन्न होते हैं उन्हें कबूतरों के जोड़े के रूप में प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होते हैं। गुफा की खोज 1850 में बूटा मलिक नाम के एक मुस्लिम चरवाहे ने की थी। मलिक अपने जानवरों के झुंड के साथ पहाड़ों में थे, जब एक सूफी संत ने उन्हें कोयले का एक थैला दिया। घर लौटने के बाद, मलिक ने बैग खोला, और उसे सोने से भरा हुआ पाया। हर्षित चरवाहा संत को धन्यवाद देने के लिए पहाड़ों की ओर दौड़ा, लेकिन वह उसे नहीं मिले। इसके बजाय, उन्होंने गुफा और उसके प्रसिद्ध बर्फ लिंगम को पाया। जब उसने उस गुफा में प्रवेश किया, तो वह हैरान रह गया उस गुफा में बर्फ का शिवलिंग था। गडरिये ने सभी को इसके बारे में बताया। इसी गुफा को अमरनाथ की गुफा कहा जाता है। धीरे- धीरे जब लोगों को इस गुफा और बाबा बर्फानी के बारे में पता चला, तो दूर- दराज से वे इसके दर्शन के लिए आने लगे। अब हर साल अमरनाथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते हुए कई छोटी- छोटी गुफाएं हैं, जो सभी बर्फ से ढकी हैं।
यात्रा मार्ग
अमरनाथ गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां केवल पैदल या टट्टू द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। हिमालय के अंदर गुफा मंदिर तक काजीगुंड-अनंतनाग-पहलगाम अक्ष और काजीगुंड-अनंतनाग-पुलवामा-श्रीनगर-बांदीपुर-गांदरबल-सोनमर्ग-बालटाल अक्ष के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। दो मार्ग हैं जिनसे तीर्थयात्री पवित्र स्थल की यात्रा कर सकते हैं। अधिकांश लोग बालटाल मार्ग का उपयोग करते हैं, जो कि बालटाल से 16 किमी की छोटी ट्रेक है जो एक खड़ी, घुमावदार पहाड़ी रास्ते के साथ मंदिर तक जाती है। इस मार्ग में तीर्थयात्रियों को 1-2 दिन लगते हैं। दूसरा पहलगाम मार्ग है, जो गुफा से लगभग 36-48 किमी दूर है और इसे तय करने में 3-5 दिन लगते हैं। जबकि यह एक लंबी यात्रा है, यह थोड़ी आसान और कम खड़ी है।
सुरक्षा की तैयारी
जम्मू-कश्मीर पुलिस पूरे केंद्र शासित प्रदेश के लोगों को अपने वाहनों और सामान की जांच करने की सलाह दे रही है। मई की शुरुआत में, पुलिस को जम्मू शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर कनाचक के कांटीवाला-दयारन गांव में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास प्लास्टिक के लंच बॉक्स में 3 चिपचिपे बमों का एक पैकेट मिला। इस तरह के छोटे चुंबकीय आईईडी फरवरी 2021 से नियमित अंतराल पर पाए गए हैं। नयी सुरक्षा चौकियां स्थापित की गई है ताकि कोई विध्वंसकारी तत्व यात्रा को बाधित नहीं कर सके। केवल सत्यापित तीर्थ यात्री ही यात्रा में शामिल हों, यह सुनिश्चित करने के लिए एसएएसबी ने अमरनाथ यात्रा के इच्छुक लोगों को आधार या अन्य बायोमेट्रिक सत्यापित दस्तावेज साथ रखने को कहा है। तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के लिए तीन स्तरीय सुरक्षा में ड्रोन और आरएफआईडी चिप भी हिस्सा हैं। जम्मू के एसएसपी चंदन कोहली ने कहा कि जम्मू में अतिरिक्त बलों को तैनात किया जा रहा है ताकि तीर्थयात्रियों के ठहरने वाले सभी स्थानों के अलावा उनके टोकन और पंजीकरण काउंटर को पूरी तरह सुरक्षित किया जा सके। उन्होंने कहा कि यात्रा के सुचारू संचालन के लिए पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को शामिल करते हुए बहुस्तरीय सुरक्षा उपाय किए जा रहे हैं।
कब-कब अमरनाथ यात्रा को आतंकियों ने बनाया निशाना
1980 के दशक में पाकिस्तान की शह पर जम्मू कश्मीर में आतंकवाद का उदय होना शुरू हो गया। साल 1993 में पहली बार अमरनाथ यात्री आतंकियों के निशाने पर आए। उस वक्त पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन हरकत उल अंसार और लश्कर ए तैय्यबा की लगातार धमकियों के बीच ये हमला हुआ था। दो हमलों में तीन लोगों ने जान गंवाई। अगले वर्ष 1994 में अमरनाथा यात्रा पर हुए हमले की वजह से दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। श्रद्धालुओं पर तीसरा बड़ा हमला 1995 में हुआ। हालांकि इसमें जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। साल 1996 में फिर अमरनाथ यात्रियों पर दो हमले हुए। लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ। जिसके बाद साल 2000 में अमरनाथ यात्रियों पर सबसे बड़ा हमला देखने को मिला जिसमें 32 श्रद्धालुओं को जान गंवानी पड़ गई। इस बर्बर आतंकी हमले में 60 से अधिक लोग घायल भी हुए। 20 जुलाई 2001 को पहलगाम बेस कैंप से आगे अमरनाथ यात्रियों के एक कैंप पर हथगोले फेंके गए। जिसमें 12 लोगों की मौत हुई और 15 घायल हो गए। जुलाई और अगस्त 2002 में दो बार अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाया गया, जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई। साल 2006 में आतंकियों ने अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाते हुए बस पर ग्रेनेड फेंका था जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। 2017 में श्रद्धालुओं की बस पर हमला हुआ था। अनंतनाग में आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों की बस पर अंधाधुंध फायरिंग की। जिसमें 7 अमरनाथ यात्रियों की मौत हो गई और 32 लोग घायल हुए। साल 2017 में सरकार ने लोकसभा को बताया कि 1990 के बाद से 27 वर्षों में वार्षिक अमरनाथ यात्रा पर 36 आतंकवादी हमलों में 53 तीर्थयात्री मारे गए और 167 घायल हुए।
- अभिनय आकाश