‘मदर इंडिया’ की नर्गिस से लेकर ‘द स्काई इज पिंक’ में प्रियंका चोपड़ा तक, बॉलीवुड में बदला मां का रूप

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 10, 2020

क्रांतिकारी फिल्म ‘मदर इंडिया’ की नर्गिस, मदर ऑफ बॉलीवुड’निरूपा रॉय से लेकर ‘हेलिकॉप्टर ईला’में काजोल और फ़िल्म ‘‘द स्काई इज पिंक’’ में प्रियंका चोपड़ा द्वारा निभाया गया माँ का किरदार यही बताता है कि बॉलीवुड में समय के साथ-साथ माताओं का चित्रण भी बदलता गया। नये जमाने की फिल्मों में अब माँ के यथार्थ चित्रण पर अधिक जोर दिया जा रहा है। बॉलीवुड इसको लेकर अब पहले से कहीं ज्यादा सजग है। 45 साल बाद भी, सलीम-जावेद द्वारा लिखी फिल्म ‘‘दीवार’’ का संवाद- ‘‘मेरे पास माँ है’’ बेहद लोकप्रिय है।

फिल्म में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के बीच का वह दृश्य आज भी लोगों को याद है, जिसमें आपस में लड़ते बेटों के बीच एक बेबस माँ को दिखाया गया है, जिसमें मां का किरदार निरूपा रॉय ने निभाया है। एक समय था जब मां सामाजिक उलझनों, घर की चार दीवारी में ही उलझी नजर आती थीं, फिल्मों में बस उन्हें भावुकता से जोड़कर ही दिखाया जाता था, लेकिन आज के समय की मां का किरदार एकदम हटकर देखने को मिल रहा है।बदलते दौर में फिल्मों मेंमांखिलाड़ी, वैज्ञानिक, इंजीनियर, बिजनसमैन और सामाजिक सरोकार से संबंध रखने वाली महिला के तौर सामने आयी है। वह घर के कामकाज के साथ साथ परिवार और उनकी जिम्मेदारी भी उठाती नजर आई और समाज में भी खुद को सशक्त बनाती दिखीं।

प्रौद्योगिकी के इस युग में पुरुषों के साथ खड़ी नजर आती हैं, बिजनेस में पति का साथ देती हुई दिखाई देती हैं। जैसे फिल्म ‘मिशन मंगल’ में विद्या बालन का निभाया एक वैज्ञानिक का किरदार। महबूब ख़ान द्वारा लिखी और निर्देशित फिल्म ‘मदर इंडिया’ हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई। फिल्म में मां का किरदर नर्गिस ने निभाया। राधा के तौर पर मां की भूमिका में वह महिलाओं की दुर्दशा, भेद-भाव जैसे कई विषयों के साथ जूझती नजर आती हैं। लेकिन आज की फिल्मों में अगर सांड की आंख में तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर की भूमिकाओं को देखा जाए तो, ये गांव से जुड़ी दो महिलाओं कीसच्ची कहानी को दर्शाती है। कैसे इन दोनों किरदारों ने सामाजिक व गांव के तमाम बंधनों को तोड़कर अपना सपना मुकम्मल किया।

इस मातृ दिवस पर, लेखक मृण्मयी लागू वायकुल, जूही चतुर्वेदी, अभिनेत्री सीमा पाहवा, लेखक-निर्देशक नूपुर अस्थाना और फिल्मकार प्रदीप सरकार ने बताया कि कैसे हिंदी सिनेमा में माताओं का चित्रण बदला है। फिल्म ‘थप्पड़ की सह-लेखिका वायकुल, का मानना ​​है कि माताओं को अक्सर एक कहानी में भावनात्मक अपील को बाहर लाने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। उन्होंने पीटीआई-से कहा, ‘‘एक माँ का चित्रण इस बात पर निर्भर करता है कि फिल्म में उसे किस रूप में दिखाने की कोशिश हो रही है।

लेखक के रूप में हमें समाज में जो चल रहा है, उसे चित्रित करना चाहिए और फिर इसे प्रेरणादायक बनाने की कोशिश करनी चाहिए या शायद हकीकत दिखानी चाहिए।’’ ‘‘बरेली की बर्फी’’ और ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ जैसी कई फिल्मों में मध्यम वर्ग का शिक्षित मां की भूमिका निभाने वाली सीमा पाहवा ने कहा कि बॉलीवुड की मां प्रगतिशील हो गई है। पाहवा ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘पात्रों के रूप में माँ का स्वरूप वही हो सकता है जैसी वर्षों से था, लेकिन इसमें नई बात यह है कि वे समाज में होने वाले परिवर्तनों के प्रति अधिक स्वीकार्य हो रही हैं।’’ उन्होंने कहा कि माँ को परंपरागत छवि से निकालकर अब उन्हें ढंग से फिल्म में चित्रित किया जा रहा है। तो वहीं, लेखिका जूही चतुर्वेदी ने हिंदी सिनेमा को एक जमाने की माँ दी है। लेखिका ने कहा, ‘‘आपको हर बार मदर इंडिया की माँ या निरूपा रॉय या लीला चिटनिस द्वारा निभाए गए मां के किरदार या माँ को किसी देवी की छवि के तौर पर पर्दे पर दिखाने की ज़रूरत नहीं है। पर्दे पर वह भी किसी इंसान की ही तरह दिखती है।

यह प्रत्येक लेखक के ऊपर है कि वह क्या दिखाना चाहते हैं।’’ पटकथा लेखिका वायकुल का कहना हैं, ‘‘बहुत कम ही हमने स्क्रीन पर एकल माताओं को काम करते देखा है, पहले के समय में आमतौर पर वह कुछ गतिविधियां ही करती हुईं दिखती थीं, जैसे कि भोजन बनाना या कपड़े सिलनावगैरह, लेकिन अब माँ को अच्छी नौकरी करते हुये दिखाया जाता है।’’। अमेजन प्राइम वीडियो की वेब सीरीज़ ‘‘फोर मोर शॉट्स प्लीज!’’ की सह-निर्देशक नूपुर अस्थाना ने कहा कि समाज कला को दर्शाता है और कला समाज को दर्शाती है।

अस्थाना ने कहा, ‘‘समाज विकसित हुआ है, नए जमाने के माता-पिता हैं और यह कला जगत में भी परिलक्षित हो रहा है।’’ ‘हेलिकॉप्टर ईला’ में आधुनिक माँ को दिखाने वाले निर्देशक प्रदीप सरकार ने कहा, ‘‘एक माँ और बच्चे का रिश्ता पुराना या नया नहीं हो सकता है। यह हमेशा प्यार और देखभाल से जुड़ा होता है। सिनेमा में इसे दिखाने का ढंग अलग-अलग हो सकता है, लेकिन उन सब में यही बुनियादी भावनाएं होती हैं।’’ खैर इस बदलते दौर में अब तो यह कहा ही जा सकता है कि अब मां हर रूप में सशक्त हुई हैं।

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