By दिव्यांशी भदौरिया | May 11, 2024
वो भी क्या दिन थे जब बचपन में स्कूल से घर लौटकर, सबसे पहले हम सभी 'मां' को ही ढूंढते थे। लेकिन आज भी कुछ लोगों की यहीं आदत है जो बदली नही है। ऑफिस से घर आकर, सबसे पहले मां को ही आवाज लगाते है। चाहे 90 के दशक में पैदा हुए बच्चे, अब बड़े हो चुके हैं और बचपन बस हमारी यादों में रह गया है। आज के बच्चों के लिए मां और उनका रिश्ता, बेशक थोड़ा ज्यादा मॉर्डन और डिफरेंट है, लेकिन हम 90's किड्स के लिए ये थोड़ा अलग है। मदर्स डे आ चुका है, तो चलिए आपको इस खास मौके पर फ्लैश बैक में जरुर ले जाए। अगर आप भी 90 के दशक में पैदा हुए है तो सचमुच ये आर्टिकल आपको यादों के गलियारों में ले जाएगा।
स्कूल से आकर मां को सब कुछ बताना
स्कूल में क्लास टीचर ने क्या कहा.. किसी टीचर ने शाबासी दी या नहीं... गेम्स पीरियड में क्या हुआ... लंच किस किसके साथ खाया और बेस्ट फ्रेंड स्कूल आई थी या नहीं, ये सब बातें स्कूल से घर आकर, अपनी मां को जरुर बताते थे। आज भी कुछ नहीं बदला ऑफिस की सारी बातें मां को बताते हैं।
सुबह स्कूल जाने के लिए मां का प्यार से उठाना
सुबह सिर पर हाथ फेरते हुए, मां का स्कूल जाने के लिए उठाना भी हर किसी को याद होगा। उस समय कुछ बच्चे स्कूल जाने के लिए ना-नुकुर करते थे, वहीं कुछ सुबह की नींद को बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहते थे। लेकिन, मां कभी प्यार से तो कभी डांटकर, हमें रोज तय समय पर स्कूल भेजती ही थी।
मां के हाथ का चीनी का पराठा
आज के समय में ये पिज्जा, बर्गर, नूडल्स, मोमोज या फिर और कुछ भी इतने टेस्टी नहीं है, जो स्वाद मां के हाथ का बना चीनी के पराठा में हैं। 90 दशक के बच्चे उस समय चाऊमीन और बर्गर जैसे फैंसी फूड आइटम्स नहीं खाते थे और ऐसे में मां के हाथ का चीनी वाला पराठा, पेट ही नहीं, मन को भी खुश कर देता था।
मां का दोपहर में सुलाना
दोपहर के समय जब हम स्कूल से आकर खाना खा लेते थे... मां हमें बाहर तेज धूप में खेलने जाने से रोका करती थीं और फिर बड़े प्यार से अपने पास सुला लिया करती थीं। भागदौड़ भरी जिंदगी में नींद तो थक-हारकर आज भी आती है लेकिन उस दोपहर वाली नींद के बात ही अलग थी।