By अनन्या मिश्रा | Aug 26, 2023
भले ही मदर टेरेसा जीते जी संत घोषित नहीं हुई थीं। लेकिन उनका पूरा जीवन एक संत की तरह था। मदर टेरेसा सभी से प्रेम से मुलाकात करती थी। उनमें करुणा का भाव कूट-कूटकर भरा था। उन्होंने मानव सेवा का जो जज्बा अपने अंदर पाला था। वह बेमिसाल था। बता दें कि आज यानी की 26 अगस्त के दिन मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने सेवा के संकल्प को पूरा करने के लिए अकेले संघर्ष करना शुरू कर दिया था। इस संघर्ष में कई साल गुजरते चले गए और वह दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ती चली गईं। इसी तरह एक दिन पूरी दुनिया उनकी कायल हो गई। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर मदर टेरेसा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
अल्बानिया में 26 अगस्त 1910 को मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। उनके जन्म के अगले दिन उनको ईसाई धर्म की दीक्षा मिल गई। जिसके कारण वह अपना जन्मदिन 27 अगस्त को मनाया करती थी। उनके बचपन का नाम एक्नेस था। साथ ही उन पर बचपन से ही मिशिनरी जीवन का काफी प्रभाव था। उन्होंने बंगाल के मिशिनरियों के सेवाकार्य के बारे में काफी कुछ सुना था। जिसके कारण उनके मन में भारत आने के विचार आने लगे थे।
सेवा धर्म का लिया फैसला
बता दें कि एक्नेस ने महज 18 साल की उम्र में अपना पूरा जीवन धर्म को समर्पित करने का फैसला कर लिया। इसके बाद वह आयरलैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी चली गईं। यहां पर उन्होंने अंग्रेजी सीखी। जिससे कि वह भारत जाने के सपने को पूरा कर सकें। भारत में सिस्टर्स ऑफ लोरेटों की निर्देश अंग्रेजी भाषा थी। इसके बाद एक्नेस ने अपने घर वालों को कभी नहीं देखा।
ऐसे बनीं मदर टेरेसा
साल 1929 में एक्नेस भारत पहुंची और फिर दार्जलिंग में रहकर वह बंगाली भाषा सीखने लगी। इसके अलावा उन्होंने कॉन्वेंट के पास शिक्षण कार्य भी शुरू किया। साल 1931 में एक्नेस ने अपनी पहली धर्म प्रतिज्ञा ली और अपना नाम मदर टेरेसा रख लिया। इसके बाद मदर टेरेसा ने कलकत्ता में करीब 20 साल कर एनटैले के लोरेट कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने का कार्य किया। लेकिन बार-बार उनका मन कलकत्ता में फैली गरीबी को देखकर द्रवित हो उठता था।
ईश्वर का आदेश
साल 1943 में बंगाल में आए अकाल और फिर इसके बाद साल 1946 में सांप्रदायिक हिंसा ने मदर टेरेसा को काफी ज्यादा परेशान कर दिया था। इस दौरान जब वह दार्जलिंग जा रही थीं। तब उनके अंदर के एक आवाज आई। उन्हें ऐसा लगा जैसे ईश्वर उनसे गरीबों की सेवा किए जाने का आदेश दे रहे हैं। उसी पल से मदर टेरेसा ने शिक्षण कार्य को पूरी तरह से छोड़ दिया और मानव सेवा करने का संकल्प ले लिया।
संघर्ष से की शुरुआत
इसके बाद मदर टेरेसा ने स्कूल छोड़ने की इजाजत ले ली। हालांकि उन्होंने साल 1948 से पूरी तरह से गरीबों के लिए मिशिनरी कार्य शुरू किया। वह दो साधारण सी कपास की साड़ी पहनती थीं, इन साड़ियों में नीली पट्टी थीं। वह गरीबों की झोपड़ी में जाकर रहने लगीं। जब उनको किसी प्रकार का सहयोग नहीं प्राप्त हुआ तो उन्होंने खुद को जिंदा रखने व अपने संकल्प को पूरा करने के लिए भीख तक मांगी। जबकि लोगों ने उनको संदेह के नजरिए से देखते हुए नजरअंदाज करने लगे।
बिना भेदभाव के सेवा
लेकिन अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति के आगे मदर टेरेसा कहां झुकने वाली थीं। धीरे-धीरे कुछ युवा महिलाएं उनके साथ जुड़ीं। इनकी मदद से पुअरेस्ट अमंग द पुअर नामक धार्मिक समुदाय बना। जहां पर वह बिना किसी भेदभाव के विशुद्ध मन से लोगों की सेवा करती थीं। उनके कार्य को देख अन्य लोग भी मदर टेरेसा का सहयोग करने लगे। बता दें कि मदर टेरेसा ने कोढ़ रोगियों के लिए कई विशेष कार्य किए। कोढ़ से पीड़ित व्यक्ति को समाज से बाहर कर दिया जाता था। लेकिन यह मदर टेरेसा का सेवाभाव ही था, जो उनको लोगों के साथ लाकर खड़ा कर देता था।
सम्मान
साल 1950 में मदर टेरेसा को वैटिकन से उनके मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्वीकृति मिली। अति गरीब लोगों की निस्वार्थ सेवा के लिए यह धार्मिक सिस्टर्स समूह पूरे मन से सेवाएं दे रहा था। धीरे-धीरे उनका काम हर जगह फैलता चला गया। साल 1979 में मदर टेरेसा के सेवा कार्यो को देखते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लेकिन इस दौरान उन्होंन प्राइज मनी लेने से इंकार कर दिया था। मदर टेरेसा ने प्राइज मनी को भारत के गरीबों में दान करने के लिए कहा था। इसके बाद मदर टेरेसा को साल 1980 में भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया।
मौत
बता दें कि भारत सहित दुनिया के कई देशों में दीन-दुखियों की सेवा में अपना पूरा जीवन लगाने वाली मदर टेरेसा को 5 सितंबर 1997 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन अनाथ, बीमार और गरीबों की सेवा में लगा दिया था।