पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई से मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा

By अजय कुमार | Feb 27, 2019

मजबूत सरकार होने का क्या मतलब होता है, यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समझा दी है। 13 दिनों के भीतर पुलवामा में आतंकी हमले में मारे गए 41 जवानों की शहादत का बदला लेकर भारतीय सेना ने पूरी दुनिया को अपना लोहा मनवा दिया है। जिस पराक्रम के साथ वायु सेना के जवानों ने पाक की सीमा में घुस कर करीब 300 आतंकवादियों को जहन्नुम भेजा उससे जैश का जोश जमींदोज हो गया। सेना के साहसिक कारनामों का व्याख्यान करते समय शब्द छोटे पड़ जाते हैं। सेना ऐसा कर पाई इसके लिए उसके बाद किसी और को इसका श्रेय दिया जाए तो निश्चित ही इसमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम सबसे ऊपर है। मोदी ने सेना को छूट भी दी और विश्वास भी किया। बीजेपी के 'मोदी है तो मुमकिन है', नारे ने भी यह बात सार्थक कर दी है। ऐसी ही उम्मीद 26/11 (2008 में मुम्बई में हुआ आतंकवादी हमला) और 13 दिसंबर 2001 को संसद पर आत्मघाती हमले के बाद भी तत्कालीन सरकार से की जा रही थी, लेकिन तब ऐसा नहीं हो पाया था। देश की जनता खून का घूंट पीकर रह गई थी। इसका असर यह हुआ कि आतंकवादियों और उनको संरक्षण देने वालों की छाती चौड़ी हो गई। वह और ताकत के साथ भारत की बर्बादी का ख्वाब बुनने लगे थे। कई जगह उन्होंने आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया, लेकिन मोदी सरकार ने आते ही कह दिया था कि वह आतंकवाद पर जीरो टालरेंस की नीति पर चलेगी। आतंकवादियों को पालने−पोसने वाले पाकिस्तान से यह कहते हुए बातचीत बंद कर दी गई कि गोली−बारूद के शोर के बीच बातचीत नहीं हो सकती है, लेकिन पाकिस्तान और वहां बैठे आतंकवादी बाज नहीं आए, जिसकी इन्हें कीमत चुकानी पड़ी।

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जम्मू−कश्मीर के उरी में आतंकी हमले के बाद थल सेना ने सर्जिकल और पुलवामा आतंकी हमले के दो हफ्ते के भीतर वायु सेना ने एयर स्ट्राइक करके अपना वह दमखम दिखा दिया जिसका पूरा देश दो हफ्ते से इंतजार कर रहा था। इससे एक तरफ पाकिस्तान और उसके शासकों एवं आम जनता के दिलों में भारत का खौफ नजर आया तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित तमाम विपक्षी नेताओं का मुंह भी बंद हो गया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, राजद के तेजस्वी यादव जैसे तमाम नेताओं ने एक सुर में सेना को पूरा श्रेय देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली।

 

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में पाकिस्तान की शह पर आतंकी संगठन जैश−ए−मोहम्मद की कायराना करतूत के बाद पूरे देश में गम और आक्रोश का माहौल बना हुआ है। इसका राजनीतिक फायदा उठाने के लिए विपक्षी दलों ने कमर कस रखी थी। इसी संदर्भ में 27 फरवरी को सभी विपक्षी दलों की एक बैठक भी बुलाई गई थी। लेकिन पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को वायुसेना द्वारा तबाह किए जाने के बाद इस बैठक में पुलवामा पर चर्चा का रास्ता भी बंद हो गया।

 

खैर, बात सैन्य कार्रवाई की कि जाए तो जैश−ए−मोहम्मद के आतंकी ठिकानों को तबाह करने के लिए भारतीय सेना ने प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलहाकार अजित डोभाल के दिशा−निर्देश में पूरी रणनीति बनाई थी। इसी के तहत जल थल और वायु तीनों तरफ से पाकिस्तान की घेराबंदी की गई। एनएसए, आईबी और रॉ जैसी खुफिया संस्थाओं ने सेना को पांच प्वांइट हमले के लिए दिए थे, जिस पर सर्जिकल स्ट्राइक कर रही टीम ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेना को साफ कहा था कि सिर्फ मानवता के दुश्मन आतंकवादियों और उनके ठिकानों को ही निशाना बनाया जाए। पाक की आम जनता को नुकसान पहुंचा कर मोदी मानवता को शर्मशार नहीं करना चाहते थे। आतंकियों को मार कर मोदी ने पाक सेना को यह सबक तो दे दिया कि वह भी आतंकवादियों को नहीं बचा सकते हैं, लेकिस सीधे तौर पर पाक सेना को निशाना नहीं बनाया गया।

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हमला क्यों किया गया, यह अन्य देशों को बताना जरूरी था। इसीलिये हमले के बाद हमले की वजह बताते हुए रक्षा से जुड़े सूत्रों ने साफ कहा कि जैश द्वारा बालाकोट में करीब दो दर्जन से अधिक आत्मघाती आतंकवादियों का दस्ता तैयार किया जा रहा था, जिन्हें जल्द भारत में दहशत फैलाने के लिए भेजा जाना था। इसलिये भारत को कार्रवाई करना जरूरी हो गया था। दुनिया में हिन्दुस्तान की साख न गिरे इसलिए मोदी सरकार ने अपनी सेना को साफ निर्देश दिया था कि न तो पाक सेना के ठिकानों और न ही वहां की जनता को किसी तरह का नुकसान हो। सेना ने लेजर गाइडेड बमों से बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हमला किया। 1962 के चीन युद्ध के बाद पहली बार भारत ने वायु सेना का इस्तेमाल हमले के लिए किया।

 

भारतीय सेना की कार्रवाई में करीब 300 आतंकी मारे जाने और जैश−ए−मोहम्मद का कंट्रोल रूम तबाह किए जाने की पुख्ता जानकारी है। हमले में मसूद अजहर के भाइयों, साले, बहनोई तथा पुलवामा हमले के मास्टर मांइड के भी मारे जाने की खबर है। हमले के बाद भारत ने अपने तमाम दोस्त देशों को भी हमले की फौरन जानकारी दी। बात सियासी मोर्चे की कि जाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने वायु स्ट्राइक के चंद घंटों के बाद राजस्थान के चुरू में होने वाली रैली में वायु सेना की कार्रवाई पर सीधे कुछ नहीं कहा। बस, वह यही बोले की आप निश्चिंत रहें कि देश सुरक्षित हाथों में है। उधर, विपक्ष सेना को तो बधाई दे रहा है, लेकिन वह मोदी सरकार की पीठ थपथपाने से बचता रहा।

 

पाकिस्तान न तो वायु सेना की सर्जिकल स्ट्राइक को निगल पा रहा है न उगल पा रहा है। अगर वह मानता है कि भारतीय सेना ने उसकी सीमा में घुस कर हमला बोला तो उसे बताना पड़ेगा कि इससे नुकसान क्या हुआ। कौन मारा गया। अगर वह कहेगा कि आतंकवादी मारे गए तो पूरी दुनिया में वह बेनकाब होगा। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने उसकी सीमा में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े आतंकी अड्डे पर हमला करके यह बता दिया कि भारत के सहने की एक सीमा है। यहां यह बताना भी बेहद जरूरी है कि बालाकोट पाकिस्तान के सैन्य मुख्यालय रावलपिंडी से ज्यादा दूर नहीं है।

 

 

बहरहाल, राजनैतिक पंडितों का भी कहना है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पाकिस्तान के खिलाफ यह कार्रवाई कर भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ काफी बढ़ गया है। पहले से ही आत्मविश्वास से सराबोर पीएम मोदी अब ताल ठोककर विपक्ष के हर हमले का जवाब दे सकेंगे। कुछ रक्षा विशेषज्ञ तो अभी भी यही मान रहे हैं कि अभी इस तरह की कुछ और स्ट्राइक भी आतंकवादियों के खिलाफ हो सकती हैं। पिछले कुछ दिनों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से पाकिस्तान को चेतावनी दे रहे थे और सेना को कार्रवाई की खुली छूट देने की बात कह रहे थे, उसमें देश की जनता का विश्वास बढ़ा था। विपक्ष के पास अब पुलवामा आतंकी हमले के बाद सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाने का मौका जाता रहा। इसके बाद भी अगर विपक्ष प्रधानमंत्री पर पुलवामा हमले के बाद की कार्रवाई को लेकर सवाल उठाता है तो इसे राजनीतिक बचकानापन ही कहा जाएगा।

 

-अजय कुमार

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