By अंकित सिंह | Aug 23, 2021
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के एक प्रतिनिधिमंडल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात काफी अहम मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि बिहार की सियासत के हिसाब से देखें तो यह मुलाकात अपने आप में कई मायने में महत्वपूर्ण है। इस मुलाकात के कई सियासी संकेत सामने आ सकते हैं जिसका असर दूर तक देखने को मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली प्रतिनिधिमंडल के मुलाकात 11:00 बजे के आसपास हो सकती है। यह मुलाकात बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर है। खास बात है कि नीतीश कुमार के इस प्रतिनिधिमंडल में भाजपा के नेता और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी शामिल रहेंगे। इस मुलाकात के बाद बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर सियासत और तेज हो सकती है। साथ ही साथ इसका असर भी देखने को मिलेगा।
भले ही केंद्र की भाजपा सरकार ने जाति आधारित जनगणना की मांग से इंकार कर दिया है। लेकिन नीतीश कुमार के इस प्रतिनिधिमंडल में भाजपा के नेता भी शामिल है। भाजपा किसी भी हाल में खुद को इस प्रतिनिधिमंडल से अलग दिखाकर गलत राजनीतिक संकेत नहीं देना चाहती है। भाजपा को यह भी पता है कि बिहार में सवर्ण उसका कोर वोटर जरूर है पर अपेक्षाकृत उसकी आबादी भी कम है। ऐसे में उसे ओबीसी का साथ जरूर चाहिए। यही कारण है कि बिहार भाजपा फिलहाल जनगणना की मांग को लेकर नरम रुख अख्तियार किए हुए है। इसके साथ ही वह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल है। नीतीश कुमार के प्रतिनिधिमंडल में भाजपा की ओर से खनन एवं भूतत्व मंत्री जनक राम शामिल हैं।
बिहार विधानसभा में जाति आधारित जनगणना से जुड़े बिल का बीजेपी ने भी सपोर्ट किया था। जाति आधारित जनगणना की मांग से दूरी बनाकर बिहार में भाजपा किसी नए सियासी समीकरण को जन्म नहीं देना चाहती। भाजपा को पता है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव फिलहाल एक ही सियासी पिच पर खेल रहे हैं। ऐसे में पार्टी को नुकसान हो सकता है। 2015 बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इसी मसले पर नीतीश कुमार और लालू यादव एक साथ आए थे। यही कारण है कि नीतीश कुमार की जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर बिहार भाजपा के समर्थन कर रही है। हालांकि 2020 में चुनाव जीतने के बाद ऐसे कई मसले रहे हैं जहां भाजपा और जदयू के बीच मतभेद की खबरें आई। दोनों दलों के नेताओं के बीच जुबानी जंग भी होती रही। पिछले कई वर्षों से बिहार में हमने देखा कि सवर्ण वोट भाजपा के लिए पूरी तरह से एकमुश्त है। लेकिन सिर्फ सवर्ण वोट पर पार्टी नहीं जीत सकती और यही कारण है कि जाति आधारित जनगणना की मांग वाली प्रतिनिधिमंडल में भाजपा को शामिल होना पड़ रहा है।