By नीरज कुमार दुबे | Apr 24, 2019
लोकसभा चुनावों के लिए तीन चरण का मतदान संपन्न हो चुका है और अब तक के रुझानों को देखते हुए यह बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि मतदाता देश में एक बार फिर स्थिर और मजबूत सरकार के लिए ही मतदान कर रहा है। विपक्ष ने लोकसभा चुनावों के लिए पहले राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने का प्रयास किया लेकिन जब यह रंग नहीं लाया तो राज्यों में यह प्रयास हुए। कुछ राज्यों में महागठबंधन बन तो गया लेकिन सीटों के लिए हुई मारामारी ने इन दलों की एकता की पोल चुनावों से पहले ही खोल दी। देखा जाये तो विपक्ष ने एकजुट होकर जिस तरह नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक मंच बना कर अपनी ताकत प्रदर्शित की वह असल में नरेंद्र मोदी के लिए लाभ का सौदा सिद्ध हो रही है। देश की जनता आज खुद मीडिया से सवाल पूछती है कि क्यों यह सारे लोग एक व्यक्ति (मोदी) के खिलाफ खड़े हो गये हैं ?
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मोदी लहर की वास्तविकता
जिन लोगों को इस बार के चुनावों में मोदी लहर नहीं दिखाई दे रही है उन्हें अपने एसी कमरों से बाहर निकल कर और सोशल मीडिया पर चलने वाली फर्जी खबरों से नजरें हटा कर देश के गाँवों/शहरों का दौरा करना चाहिए। यदि ऐसा करेंगे तो हकीकत सामने आ जायेगी। उत्तर भारत में चले जाइये, पश्चिम में चले जाइये, पूरब में चले जाइये या दक्षिण की सैर कर लीजिये, आपको यही दिखेगा कि देश में मजूबत इरादों वाले प्रधानमंत्री के लिए जनता इस बार वोट कर रही है या करने वाली है। इसके अलावा विकास की जो परियोजनाएं पांच साल में आईं या जिन पर अभी भी काम चल रहा है उसके बारे में भी लोग बताते हैं कि जो वर्षों में नहीं हुआ वह अब हो गया।
भाजपा ने बदल दी चुनावी दिशा
भाजपा की यह बड़ी रणनीतिक सफलता दिख रही है कि उसने इन चुनावों को ऐसा रूप दे दिया है कि लोग इस बार जब मत डालने जा रहे हैं तो अपने क्षेत्र के उम्मीदवार को देखने की बजाय प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इस आधार पर फैसला कर रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी सभाओं में कह रहे हैं कि आप जो वोट डालने वाले हैं वो सीधा मुझे मिलने वाला है। प्रधानमंत्री के ऐसा कहने के पीछे दो आशय हैं। पहला- भाजपा जानती है कि ऐसी कई लोकसभा सीटें हैं जहां उसके वर्तमान सांसदों के खिलाफ नाराजगी है इसलिए जनता को बताया जा रहा है कि नरेंद्र मोदी को वापस लाने के लिए उस सांसद से नाराजगी छोड़कर भाजपा को वोट दीजिये। दूसरा- भाजपा ने जो संसदीय सीटें अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ी हैं वह सीटें भी राजग के खेमे में आएंगी तो भाजपा को समय पड़ने पर यह कहने का मौका मिलेगा कि मोदी के कारण आपको इस सीट पर जीत मिली। नरेंद्र मोदी की देशभर में धुंआधार रैलियों के बाद ऐसा माहौल बन गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भले दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हों लेकिन इस बार के चुनावों को आप समझेंगे तो पाएंगे कि नरेंद्र मोदी तो सभी 543 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि हर जगह सिर्फ उनके नेतृत्व की सफलता या असफलता ही सबसे बड़ा मुद्दा है।
जरा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की बात भी कर ली जाये
नरेंद्र मोदी- राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने में मोदी सफल रहे हैं। यही कारण है कि जब आप देश के विभिन्न इलाकों में जाते हैं तो लोग सबसे पहला मुद्दा देश की सुरक्षा बताते हैं साथ ही विकास के जो कार्य चल रहे हैं उसके बारे में भी बड़े गर्व से बताते हैं। मोदी सरकार ने देश-विदेश के मोर्चे पर क्या काम किये उनका उल्लेख तो सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड में कर रही है इसलिए यहाँ उसकी चर्चा क्या करें लेकिन आपको इस सरकार की सफलता के बारे में कुछ समझना है तो सबसे पहले देश के उन गाँवों में जाइये जहाँ नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में बिजली पहुँची वहां आपको लोगों के चेहरे पर एक अलग ही मुसकान मिलेगी, जरा उन गरीबों से एक बार मिल लीजिये जिनको आयुष्मान भारत योजना का लाभ मिला है, जरा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले पक्के घर में रह रहे लोगों से एक बार मिल लीजिये, जरा स्वच्छ भारत अभियान के चलते साफ हुए गरीबों के इलाकों में जाकर लोगों का हाल पूछ लीजिये, जरा उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के जीवन में आये बदलाव के बारे में उन लोगों से सुन लीजिये, निश्चित रूप से आप भावुक हो जाएंगे और चाहेंगे कि गरीबों की ऐसी चिंता करने वाली सरकार को एक और मौका मिलना ही चाहिए।
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राहुल गांधी- निश्चित रूप से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा को लोकसभा चुनावों में तगड़ी चुनौती देने का प्रयास किया है लेकिन अति उत्साह में वह कई बार सेल्फ गोल कर बैठे हैं। वह यह समझ ही नहीं रहे हैं कि जितना वह नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला कर रहे हैं उतना ही भाजपा को फायदा हो रहा है। 'चौकीदार चोर है' नारा उन्होंने हिट तो करवा दिया और टीवी पर भी यह खूब दिखता है लेकिन हकीकत जाननी है तो जरा जनता के बीच जाइये। लोग आपसे ही सवाल करेंगे कि नरेंद्र मोदी को चोरी करके क्या करना ? उनका कोई परिवार तो है नहीं जिसके लिए वह यह सब करेंगे ? जो लोग खुद जमानत पर हैं वह दूसरे को चोर कह रहे हैं ? राहुल गांधी राफेल को मुद्दा बनाने में सफल रहे थे लेकिन इसका लाभ वह गत वर्ष के अंत में हुए विधानसभा चुनावों में ले चुके हैं और एक ही मुद्दे को बार-बार भुनाया नहीं जा सकता। 'चौकीदार चोर है' टिप्पणी पर राहुल गांधी को उच्चतम न्यायालय में जो स्पष्टीकरण देना पड़ा है या फिर अपने नामांकन में नागरिकता के मुद्दे पर जो आलोचना झेलनी पड़ी है उससे भी जनता में अच्छा संदेश नहीं गया है। प्रियंका गांधी की राजनीति में सीधी एंट्री कराकर उन्होंने यह सोचा कि इससे कांग्रेस को बड़ा फायदा होगा लेकिन इसका उलटा असर होता नजर आ रहा है। जब आप लोगों से इस विषय में बात करते हैं तो यह सुनने को मिलता है कि वह अपने पति को बचाने के लिए राजनीति में आई हैं या फिर यह सुनने को मिलता है कि राहुल गांधी चल नहीं पा रहे इसलिए प्रियंका को लाया गया है।
नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की छवि की तुलना करें तो देश में आपको दो तरह के लोग मिलेंगे जो या तो मोदी के कट्टर समर्थक होंगे या कट्टर विरोधी दूसरी ओर राहुल गांधी के बारे में भी दो तरह की राय रखने वाले लोग हैं- या तो कांग्रेस समर्थक या उनका खुलकर मजाक उड़ाने वाले। राहुल गांधी ने गरीब परिवारों को 72 हजार रुपये सालाना देने की जो बात कही है उसके बारे में जब आप लोगों से पूछते हैं तो वह आपसे पलट कर सवाल करते हैं कि यह पैसा आएगा कहाँ से ? कांग्रेस ने 60 वर्ष से ज्यादा समय तक शासन किया तब क्यों नहीं दिये पैसे ? लोग पूछते हैं कि कहीं आज 100 रुपए किलो मिलने वाली दाल तब 200 रुपए किलो तो नहीं हो जायेगी ? लोग राजनीतिक रूप से कितने जागरूक हैं यह आपको गाँवों और कस्बों में जाकर पता लगता है। राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के बारे में पूछे जाने पर लोग कहते हैं- ''भैय्या अगर कांग्रेस जीती तो राहुल गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन कर एक बार फिर रिमोट कंट्रोल सरकार चलाएंगे।''
ममता बनर्जी- 'संविधान और लोकतंत्र बचाओ' का नारा बुलंद कर रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शासन में लोकतंत्र का क्या हाल है यह जानने के लिए आपको राज्य का दौरा करना होगा। हमारे देश में चुनाव एक राष्ट्रीय पर्व की तरह होते हैं जहां राजनीतिक दल उल्लास के साथ जोरशोर से अपना प्रचार करते हैं तो जनता चुनावी प्रक्रिया में उत्साह के साथ शामिल होती है। लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका उलटा है। यहाँ चुनाव आते ही लोग घबरा जाते हैं क्योंकि यह राज्य अब तक राजनीतिक हिंसा की घटनाओं से उबर नहीं पाया है। देश में शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा जहां ना चाहते हुए भी लोग सत्तारुढ़ पार्टी का झंडा अपने घर या दुकान पर भय के चलते लगाते हों, शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा जहां विपक्षी दलों के झंडे लगाने वालों के घर में तोड़फोड़ की जाती हो या फिर धमकी दी जाती हो, शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा जहाँ लोग चर्चाओं के दौरान अपना राजनीतिक मत व्यक्त करने से घबराते हों। ममता बनर्जी अगर अपनी छवि का निष्पक्ष आकलन कराएं तो उन्हें कुछ और ही हकीकत पता चलेगी। चिटफंड घोटाले के चलते जिन लोगों की मेहनत के पैसे डूबे हैं जरा एक बार उनसे मिल लीजिये, आपको पता चल जायेगा कि सरकार ने आरोपियों को बचाकर मेहनतकश गरीब लोगों के साथ कैसी निदर्यता की है। देश में लोकतंत्र को मजबूत करने की बात करने वाली तृणमूल कांग्रेस को पहले अपनी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र कायम करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि अभी सब कुछ एक ही जगह से केंद्रित हो रहा है। मोदी सरकार की कई योजनाओं को लागू नहीं करने की ममता बनर्जी की राजनीतिक मजबूरियों को समझा जा सकता है लेकिन 'स्वच्छ भारत' अभियान को तो लागू किया जा सकता था। बंगाल में जगह-जगह गंदगी देखकर ऐसा लगता है कि जैसे 'स्वच्छ भारत' अभियान का तगड़ा विरोध चल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के मतदाता कहते हैं कि केंद्रीय बलों की तैनाती यदि मतदान केंद्रों के अलावा गांवों में भी चुनावों के दौरान कर दी जाये तो मतदाताओं को धमकाया नहीं जा सकेगा।
अन्य उम्मीदवार- शरद पवार और मायावती भी लोकसभा चुनावों के ऐलान से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने हुए थे लेकिन चुनावों की घोषणा के बाद दोनों ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। राकांपा अध्यक्ष शरद पवार का प्रयास है कि कम से कम परिवार के लोग तो अपनी सीट जीत जाएं तो मायावती का पहला प्रयास रहेगा कि इस बार तो लोकसभा में उनकी पार्टी का खाता खुल जाये। अरविंद केजरीवाल भी प्रधानमंत्री पद की आकांक्षा रखते हैं और विपक्षी एकता की वकालत करते हैं लेकिन दिल्ली में गठबंधन के लिए वह कांग्रेस के सामने जिस तरह गिड़गिड़ाये उससे पार्टी की छवि एकदम खराब हो गयी है।
बहरहाल, एक बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि प्रधानमंत्री पद के दो ही ऐसे दावेदार नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी हैं जोकि देशभर में प्रचार कर रहे हैं। बाकी क्षेत्रीय नेताओं की आकाक्षाएं भले प्रधानमंत्री पद हासिल करने की हों लेकिन वह इसके लिए अपने राज्य के अलावा और कहीं मेहनत नहीं कर रहे और पूरी तरह से भाग्य के भरोसे बैठे हैं।
-नीरज कुमार दुबे