By नीरज कुमार दुबे | Jan 03, 2024
संशोधित नागरिकता कानून के नियमों को जल्द ही अधिसूचित किये जाने के सरकारी ऐलान से राजनीतिक पारा एक बार फिर चढ़ गया है। देखा जाये तो मोदी सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनावों में सीएए लाने का वादा किया था। इस वादे को पूरा भी किया गया लेकिन इसके विरोध में हिंसक प्रदर्शन और दंगे हुए। कानून को अदालत में चुनौती भी दी गयी इसलिए सरकार ने हालात को देखते हुए नियमों को अधिसूचित करने में ढिलाई बरती लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव एकदम दहलीज पर हैं तब सरकार की ओर से कह दिया गया है कि जल्द ही संशोधित नागरिकता कानून के नियम अधिसूचित होंगे। देखा जाये तो इस ऐलान के बाद राजनीतिक ध्रुवीकरण होना तय है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की जो प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं वह दर्शा रही हैं कि जल्द ही इस मुद्दे पर देश में राजनीतिक घमासान होगा।
जहां तक सरकार की ओर से किये गये ऐलान की बात है तो आपको बता दें कि एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा है कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), 2019 के नियमों को लोकसभा चुनाव की घोषणा से "काफी पहले" अधिसूचित कर दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने की संभावना है। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए सीएए के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए प्रताड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान की जाएगी। हम आपको याद दिला दें कि संसद ने दिसंबर 2019 में संबंधित विधेयक को मंजूरी दी थी और बाद में राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद इसके विरोध में देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। सीएए के विरोध प्रदर्शन के दौरान या पुलिस कार्रवाई में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
अब एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा है, "हम जल्द ही सीएए के नियम जारी करने जा रहे हैं। नियम जारी होने के बाद, कानून लागू किया जा सकता है और पात्र लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है।" यह पूछे जाने पर कि क्या कानून के नियम अगले लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले अधिसूचित किए जाएंगे, अधिकारी ने कहा, "हां, उससे काफी पहले।" उन्होंने कहा, "नियम तैयार हैं और ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार है तथा पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। आवेदकों को उस वर्ष की घोषणा करनी होगी, जब उन्होंने यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था। आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा।" देखा जाये तो इस कानून में चार साल से अधिक की देरी हो चुकी है और कानून लागू होने के लिए नियम जरूरी हैं। संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के अनुसार, किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए या लोकसभा और राज्यसभा में अधीनस्थ विधायी समितियों से विस्तार का अनुरोध किया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए 2020 से संसदीय समितियों से नियमित अंतराल पर विस्तार ले रहा है।
अमित शाह का बयान
हम आपको याद दिला दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 27 दिसंबर को कहा था कि सीएए के कार्यान्वयन को कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि यह देश का कानून है। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर इस मुद्दे को लेकर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया था। अमित शाह ने कोलकाता में पार्टी की एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि सीएए लागू करना भाजपा की प्रतिबद्धता है। पश्चिम बंगाल में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सीएए लागू करने का वादा भाजपा का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था।
टीएमसी का विरोध
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सीएए का विरोध कर रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर राजनीतिक लाभ के लिए नागरिकता मुद्दे का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि यदि सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पास नागरिकता नहीं है, तो वे राज्य और केंद्र की विकास योजनाओं का लाभ कैसे उठा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा नागरिकता के मुद्दे का इस्तेमाल अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए कर रही है। भाजपा इस मुद्दे पर लोगों को गुमराह कर रही है। पहले, जिलाधिकारी नागरिकता से जुड़े मामलों का फैसला करते थे, लेकिन अब राजनीति के लिए उनसे ये शक्तियां छीन ली गई हैं।’’ ममता ने आरोप लगाया कि नागरिकता का मुद्दा उठाने के पीछे भाजपा का एजेंडा धार्मिक आधार पर लोगों को बांटना है। टीएमसी सुप्रीमो ने कहा, ‘‘वे लोगों को बांटना चाहते हैं। वे किसी को नागरिकता देना चाहते हैं और किसी को नागरिकता नहीं देना चाहते। अगर एक समुदाय को नागरिकता मिल रही है तो दूसरे समुदाय को भी मिलनी चाहिए। ये भेदभाव गलत है। हम इस भेदभाव के खिलाफ हैं।’’ ममता बनर्जी ने 1971 और उसके बाद बांग्लादेश से आए लोगों को भूमि का स्वामित्व अधिकार देने की टीएमसी सरकार की पहल का भी उल्लेख किया। उन्होंने शरणार्थी कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को यह अधिकार प्रदान करने के महत्व पर जोर दिया ताकि वे शरणार्थियों के रूप में न रहें।