By अंकित सिंह | Sep 05, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार अपने 100 दिन पूरे कर रही है। इन 100 दिनों में केंद्र की सरकार के पास कई उपलब्धियां हैं तो विपक्ष कई मुद्दों पर लगातार सवाल पूछ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार जहां सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की बात कर रही है तो विपक्ष उन पर विरोधियों को डराने-धमकाने का आरोप लगा रहा है और यह कह रहा है कि वर्तमान सरकार देश में ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां की खूबसूरती यहां की संघीय व्यव्स्था है। यहा संविधान को सर्वोच्च माना गया है और संविधान के दायरे में ही केन्द्र और राज्य की सरकारों में शक्तियों का विभाजन हुआ है। भारत में 28 राज्य और 9 केंद्रशासित प्रदेश हैं जहां जनता द्वारा चुनी हुई एक लोकतांत्रिक सरकार काम करती है। केंद्र के अलावा राज्यों में एक साथ अलग-अगल दलों की सरकारें आती और जाती हैं पर व्यवस्था एक ही रहती है। फिलहाल केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार है तो राज्यों में विभिन्न दलों की नेतृत्व वाली सरकारें काम कर रही हैं। चुनावी फायदे और नुकसान को देखते हुए विपक्ष के नेतृत्व वाली सरकारें केंद्र पर आरोप भी लगाती हैं तो समय-समय पर केंद्र सरकार का झुकाव अपनी पार्टी की राज्य सरकारों की तरफ भी देखा गया है। मोदी सरकार पार्ट 2 के 100 दिन पूरे होने पर आज हम आपको यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि विभिन्न राज्यों की सरकारों के साथ केंद्र की सरकार के कैसे संबंध हैं।
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देश के ज्यादातर राज्यों में भाजपा या फिर उसके सहयोगी दलों की सरकार है। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, गुजरात, गोवा, उत्तर प्रदेश, झारखंड, असम, अरूनाचल प्रदेश, कर्नाटक में भाजपा अपने दम पर सत्ता में जबकि बिहार, महाराष्ट्र, तमिल नाडु और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ शासन व्यवस्था में बनी हुई है। सबसे पहले बात भाजपा शासित राज्यों की करें तो यहां केंद्र और राज्य सरकार के बीच सबकुछ सामान्य दिखता है। भाजपा शासित राज्यों की मांगों को केंद्र ज्यादा महत्व देता दिखता है तो मांग खारिज हो जाने के बाद राज्य शोर नहीं मचाते। ऐसे में ज्यादा खबरें मीडिया में नहीं आती। इन राज्यों को केंद्रीय आयोजनों में ज्यादा वरियता मिलती है जैसे की डिफेंस एक्सपो का आयोजन यूपी को दिया गया है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी योग दिवस के दिन खुद झारखंड में मौजूद रहे। भाजपा या उसके शासित राज्यों में केंद्र की योजनाओं का शुभारंभ भी देखा गया जैसे कि पटना में डिजिटल इंडिया के तहत रविशंकर प्रसाद ने कई योजनाओं को शुरू किया। यह ऐसे राज्य हैं जहां केंद्रीय योजनाओं के प्रति इन 100 दिनों में ज्यादा सक्रियता दिखाई दी चाहे स्वच्छता अभियान हो या फिर फिट इंडिया अभियान। केंद्रीय मंत्री भी इन राज्यों के विभिन्न कार्यक्रमों के तहत अपना दौरा करते रहते हैं या फिर इन्हें राज्य सरकारों की तरफ से आमंत्रित भी किया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात, असम, बिहार, कर्नाटक में भयंकर बाढ़ के बाद केंद्र सरकार ने इस राज्यों को हर तरह की मदद मुहैया कराई। इन राज्यों के मुख्यमंत्री नीति आयोग की बैठक हो या फिर जीएसटी काउंसिल की या गृह मंत्रालय की, सभी बैठकों में शामिल हुए जो केंद्र और राज्य सरकार के संबंध को मधुर दिखाने के लिए काफी है। हां, बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी केंद्र से कुछ मुद्दों पर अलग राय जरूर रखती है जो एक विवाद का विषय बन जाता है।
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इन 100 दिनों में केंद्र की मोदी सरकार पर सबसे ज्यादा हमलावर रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। पश्चिम बंगाल में TMC की सरकार है। ममता बनर्जी केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं पर तो सवाल उठाती ही रहीं, वह केंद्र सरकार द्वारा बुलाई गई किसी भी बैठक में शामिल नहीं हुईं। वह केंद्र की सरकार पर ध्रुविकरण की राजनीति का आरोप लगाती रहीं तो अनुच्छेद 370 के हटाए जाने का मुखर होकर विरोध किया। केंद्र का कोई मंत्री भी बंगाल के दौरे पर कम ही गया और गया भी तो वह पार्टी के कार्यक्रम में। ममता बनर्जी केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों का दुरूपयोग करने का भी आरोप लगा रही हैं। पश्चिम बंगाल के बगल में ओडिशा है जहां बीजद की सरकार है और वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हैं। नवीन पटनायक भाजपा और केंद्र सरकार के विरोधी तो हैं पर पिछले 100 दिनों में केंद्र सरकार के खिलाफ उनकी मुखरता कम ही देखने को मिली है। केंद्र के साथ उनके सामान्य रिश्ते का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी पार्टी संसद में केंद्र सरकार द्वारा पेश बिल के समर्थन में रही जिसमें UAPA और तीन तलाक जैसे विवादित बिल भी शामिल हैं। फानी तूफान के समय केंद्र सरकार द्वारा ओडिशा को की गई मदद के बाद नवीन पटनायक ने पीएम मोदी को धन्यवाद पत्र भी लिखा जो कम ही देखने को मिलता है। पूर्वोत्तर की बात करें तो केंद्र सरकार वहां के विकास को लेकर 100 दिनों में एक खास एजेंडे के तहत आगे बढ़ी है। खुद प्रधानमंत्री कई मौके पर वहां को लेकर बड़ी बातें कह चुके हैं।
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दक्षिण भारत के राज्यों की बात करें तो सिर्फ कर्नाटक में भाजपा की सरकार है जो हाल में ही बनी है तो तमिल नाडु में AIADMK की जिसने लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा से गठबंधन किया था। इसके अलावा आंध्र प्रदेश में YSR Cong, तेलेगाना में TRS, केरल में वामदलों का और पुडुचेरी में कांग्रेस की। सबसे पहले बात केरल की करें तो वाम की सरकार से केंद्र की मोदी सरकार का टकराव लगातार देखने को मिलता है। इन 100 दिनों में दोनों सरकार के बीच तीन तलाक, UAPA बिल और अनुच्छेद 370 को लेकर टकराव की स्थिति देखने को मिली। इसके अलावा केरल में आई बाढ़ के बाद राज्य सरकार ने केंद्र सरकार पर केरल से पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने का आरोप लगाया। केरल को केंद्र सरकार द्वारा दी गई मदद राशि को भी वहां की सरकार ने नाकाफी बताया था। तमिल नाडु की पलानीस्वामी सरकार केंद्र के साथ तो दिखी पर स्थानीय मद्दों को लेकर वह संसद में भाजपा के खिलाफ बोलती दिखाई दी जिसमें कावेरी पानी समझौता और राज्य में सूखे का मुद्दा शामिल है। आंध्र प्रदेश में जगमोहन रेड्डी की नेतृत्व वाली YSR Cong की सरकार केंद्र सरकार के खिलाफ किसी भी मुद्दे पर नहीं दिखी जो दोनों के बीच के सामान्य संबंध को बतलाते हैं। जगमोहन रेड्डी प्रधानमंत्री मोदी से दिल्ली आकर मिले भी और उसके बाद मोदी जब बालाजी के दर्शन करने गए थे तब रेड्डी उनके साथ-साथ दिखे थे। लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार के खिलाफ विरोध के सुर को ज्वलंत रखने वाले तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव केंद्र सरकार के खिलाफ फिलहाल शांत दिख रहे हैं। केंद्र ने भी राज्य की समस्याओं को लेकर उनसे बातचीत की थी और आंध्र से बंटवारे के बाद उत्पन्न समस्याओं को दूर करने का भरोसा दिया था।
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अब बात कांग्रेस शासित राज्यों की करते हैं। कांग्रेस देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है और भाजपा की सबसे मुखर आलोचक। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब और पुडुचेरी में कांग्रेस की सरकारें हैं। पांचों राज्य के मुख्यमंत्री हों या फिर मंत्री, सभी के निशाने पर केंद्र की भाजपा सरकार ही रहती है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि यहां कि सरकारें संघीय ढांचों को कम महत्व देकर पार्टी लाइन को ज्यादा महत्व देती हैं। हां, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह थोड़ा नरम रूख जरूर रखते हैं। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा बुलाई गई बैठकों में यहां के मुख्यमंत्री शामिल जरूर हुए हैं। इसके अलावा इन राज्यों के मुख्यमंत्री समय-समय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिले। यह लोग केंद्र की सरकार पर विरोधी पार्टी की सरकारों को अनदेखी करने का भी आरोप लगाते हैं। इन राज्य सरकारों में मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं को लेकर काफी ढीला-ढाला रवैया भी दिखता है। जम्मू-कश्मीर अब दो केंद्र शासित प्रदेशों में बंट गया है। हालांकि इन 100 दिनों में केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को लकर ही सबसे ज्यदा सक्रिय नजर आई। प्रदेश के लिए तमाम योजनाओं की घोषणा की गई। कई केंद्रीय मंत्री प्रदेश के दौरे पर गए। वहीं दिल्ली और पुडुचेरी में जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें हैं जो भाजपा की विरोधी पार्टियों के हैं। दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री केंद्र पर हमलावर रहते हैं। केजरीवाल तो हर दिन किसी ना किसी बहाने केंद्र पर बरस पड़ते हैं। वहीं चंडीगढ़, दमन और दीव, दादर और नगर हवेली, अंडमान और निकोबार द्वीप समुह और लक्षद्वीप केंद्र द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि के द्वारा संचालित किए जाते हैं।