CAA पर अति-आत्मविश्वास का शिकार हो गयी मोदी सरकार

By योगेन्द्र योगी | Dec 24, 2019

केन्द्र की भाजपा सरकार नागरिकता संशोधन कानून लागू करने को लेकर अति−आत्मविश्वास का शिकार हो गई। सरकार और भाजपा इसके परिणामों का अनुमान लगाने को लेकर चूक कर गई। लोकसभा के चुनावी घोषणा पत्र में भाजपा ने साफ तौर पर हिन्दुत्व से जुड़े मुद्दों, धारा 370 को, तीन तलाक और राममंदिर को शामिल किया था। इन मुद्दों सहित अन्य मुद्दों पर भाजपा केंद्र बहुमत पाने में आसानी से कामयाब रही। इसके बाद भाजपा ने एक−एक करके इन मुद्दों को लागू करना शुरू किया।

 

तीन तलाक के मुद्दे पर कानून बना दिया कि अब तलाक अदालत के जरिए ही हो सकेगा। इसका मुस्लिम समुदाय ने बिखरे हुए तरीके से विरोध किया। यह निर्णय चूंकि काफी हद तक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से जुड़ा हुआ था, इसलिए इसका विरोध असरदार नहीं रहा। हालांकि मुल्ला−मौलवियों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। महिलाओं तक को विरोध प्रदर्शनों के लिए उकसाया गया, किन्तु इसके बावजूद देश के सारे अल्पसंख्यक इस मुद्दे पर एक नहीं हो सके। इसके बाद केन्द्र सरकार ने धारा 370 को हटाने का निर्णय किया। देश के मुसलमानों ने इसका जरा भी विरोध नहीं किया। ऐसा करने से उनकी देशभक्ति पर उंगलियां उठने लगतीं।

इसे भी पढ़ें: इन हंगामा करते लोगों के पीछे आखिर किस राजनीतिक ताकत का हाथ है ?

भाजपा पहले ही इस मुद्दे पर राष्ट्रवाद का नारा देकर कांग्रेस सहित अन्य दलों का कटघरे में खड़ा कर चुकी थी। यह मुद्दा जम्मू−कश्मीर में आतंकवाद और पत्थरबाजों द्वारा सुरक्षा बलों पर किए जा रहे हमले से जुड़ा हुआ था। बेशक केंद्र सरकार का यह निर्णय गले नहीं उतरा हो फिर भी देश के मुसलमानों ने इस पर भी चुप रहने में ही भलाई समझी। इस पर देश भर में जम्मू−कश्मीर को छोड़ कर कहीं भी विरोध प्रदर्शन नहीं हुए। हालांकि विदेशों में जरूर कुछ कमजोर विरोध के स्वर सुनाई दिए, चूंकि मुद्दा देश की एकता−अखण्डता से जुड़ा हुआ था, इसलिए विरोध के स्वर देश में एक आवाज नहीं बन सके। हालांकि विपक्ष ने इस मुद्दों पर काफी शोरगुल मचाया, पर यह सारी कवायद वास्तविक कम चुनावी अधिक रही।

 

तीन तलाक और धारा 370 से केंद्र सरकार का आत्मविश्वास बढ़ गया। इसके बाद अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया। इसे सरकार ने अपने पक्ष में माना। यह बात दीगर है कि सत्ता पाने के लिए इस मुद्दे को तुरूप की चाल की तरह भुनाने के लिए पार्टी ने विगत लोकसभा चुनावों में कई बार कई बार प्रयास किए, किन्तु देश के मतदाताओं ने इस आधार पर सत्ता सौंपने के भाजपा के प्रयासों को विफल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या विवाद पर आया फैसला भी शांति से निपट गया। इस पर कहीं कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। दरअसल दोनों ही पक्ष पहले ही कई बार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने की बात कह चुके थे। इससे केंद्र सरकार और पार्टी के आत्मविश्वास में और इजाफा हुआ। विदेशी शरणार्थियों को भी भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया था, इसमें सतही तौर पर अवैध बांग्लादेशी और हिन्दू शरणार्थी शामिल थे।

 

भाजपा ने सत्ता में आने से पहले यह इरादा जाहिर नहीं किया कि नागरिकता कानून के दायरे में मुस्लिम शरणार्थियों को शामिल नहीं किया जाएगा। भाजपा का उद्देश्य बांग्लादेशी शरणार्थियों को वापस भेजना और हिन्दुओं को नागरिकता देना था। पूर्व के मुद्दे आसानी से लागू करने के कारण केंद्र सरकार का आत्मविश्वास और ज्यादा बढ़ गया। सरकार ने नागरिकता कानून लागू कर दिया, इसमें शरणार्थी मुसलमानों को नागरिकता देने से इंकार कर दिया। हालांकि अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सफाई देने के काफी प्रयास किए कि इससे देश के मुस्लिमों के हितों पर आंच नहीं आएगी।

 

दरअसल पूर्व के फैसलों को आसानी से लागू करने से भाजपा सरकार अतिरेक आत्मविश्वास का शिकार हो गई। यह मानते हुए कि उनका कहीं मजबूत विरोध नहीं हुआ तो इस निर्णय का भी विरोध नहीं होगा। निर्णय के आकलन की यह गलती केंद्र सरकार को भारी पड़ गई। दरअसल देश के अल्पसंख्यकों को इस निर्णय के बाद लगने लगा कि केंद्र सरकार खुले तौर पर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने पर उतारू है। इससे पहले के सभी निर्णर्यों को भी अल्पसंख्यक कहीं न कहीं अपनी हार के तौर पर देख रहे थे, किन्तु उनमें सीधे भेदभाव दिखाई नहीं देने से कहीं विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ।

इसे भी पढ़ें: NPR क्या है, इसके पीछे के मकसद और कैसे गिने जाएंगे नागरिक, सरल भाषा में पूरा निचोड़

नागरिकता कानून के बाद तो मानो उनका पैमाना छलक गया। अल्पसंख्यक जिस एकजुटता के साथ देश भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे यह मुद्दा अब केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है। सरकार की समस्या यह है कि चूंकि कानून बनाया जा चुका है तो उसमें संशोधन करना आसान नहीं है। यदि सरकार ऐसा करती भी है तो इससे यही संदेश जाएगा कि सरकार ने सत्ता का दुरूपयोग करते हुए अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया है। यदि सरकार संशोधन नहीं करती है तो मुसलमानों का विश्वास हासिल करना अब आसान नहीं होगा। लोकतंत्र में यह संभव नहीं है कि लंबे अर्से तक एक बड़े समुदाय की भावना और हितों की उपेक्षा की जा सके। इससे देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित होगी। परोक्ष तौर पर देश की एकता−अखंडता पर भी प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा।

 

जिन्ना के धर्म के आधार पर बनाए द्विराष्ट्र सिद्धान्त के बावजूद अल्पसंख्यकों ने भारत छोड़ कर पाकिस्तान जाना उचित नहीं समझा। कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों ने लंबे समय तक ध्रुवीकरण की राजनीति अपना कर इन्हें अलग−थलग रखने का प्रयास भी किया। भाजपा की मौजूदा राजनीतिक इमारत कांग्रेस और अन्य दलों की इसी राजनीति के विरोध में खड़ी हुई है। नागरिकता संशोधन विधेयक से उभरे विरोध के स्वर से देश की लोकतांत्रिक बुनियाद को भी खतरा खड़ा हो गया है। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की सरकारों ने इसे अपने राज्यों में लागू करने से इंकार कर दिया है। ऐसे में देश की एकता−अखंडता प्रभावी होना लाजिमी है। देखना यही है कि केंद्र की भाजपा सरकार इसके तमाम प्रभावों के बीच कैसे शांति स्थापित कर पाती है।

 

-योगेन्द्र योगी

 

प्रमुख खबरें

Hair Growth Toner: प्याज के छिलकों से घर पर बनाएं हेयर ग्रोथ टोनर, सफेद बाल भी हो जाएंगे काले

Vivo x200 Series इस दिन हो रहा है लॉन्च, 32GB रैम के अलावा जानें पूरी डिटेल्स

Kuber Temples: भारत के इन फेमस कुबेर मंदिरों में एक बार जरूर कर आएं दर्शन, धन संबंधी कभी नहीं होगी दिक्कत

Latur Rural विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने किया दशकों तक राज, बीजेपी को इस चुनाव में अपनी जीत का भरोसा