By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | May 05, 2022
कोरोना के लाख साइड इफेक्ट के साथ सबसे बड़ा साइड इफेक्ट अब खाने की थाली पर दिखाई देने लगा है। हालांकि देश दुनिया में खाद्यान्नों के उत्पादन में बढ़ोतरी ही हुई है पर कोरोना और उसके बाद दुनिया के देशों में युद्ध और तनाव के हालातों ने कोढ़ में खाज का काम किया है। दरअसल कोरोना के कारण सब कुछ थम जाने के बाद दुनिया के देशों ने जिस और सबसे अधिक ध्यान दिया है वह कोरोना के कारण ठप्प हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दिया गया। इसे अच्छा प्रयास भी माना जा सकता है क्योंकि आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाना इसलिए आवश्यक हो जाता है कि विकास और रोजगार की गति उसी पर निर्भर है।
यह तो दूसरी बात है कि संकट के इस दौर में जहां दुनिया के देशों को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाते हुए रोजगार बढ़ाने के समन्वित प्रयास करने चाहिए थे वहीं पहले अफगान और अब रूस यूक्रेन के युद्ध की त्रासदी में फंस के रह गए हैं। दुनिया अभी महामारी की त्रासदी से निपट भी नहीं पाई है कि रूस यूक्रेन का युद्ध दुनिया के देशों को दो खेमों में बांट कर रख दिया है। दुनिया के देश कोरोना के कारण आई समस्याओं से निपटने के स्थान पर एक दूसरे की टांग खिंचाईं में उलझ कर रह गए हैं। देखा जाए तो दुनिया के देशों में तनाव के कारण कच्चे तेल के भावों में जिस तरह से तेजी आई है और इस तेजी को रोकने के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे उन्हें नजरअंदाज किया गया है और उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। आपसी खींचतान के चलते कच्चे तेल का उत्पादन और विपणन दोनों प्रभावित हुए हैं। पाम आयल का आयात निर्यात प्रभावित हुआ है। तो युद्ध के कारण दुनिया के देशों में गेहूं, चावल आदि का कारोबार प्रभावित हो कर रह गया है। दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था को इन बिगड़े हुए हालातों ने हिला कर रख दिया है।
यदि हमारे देश की ही बात करें तो कोरोना के पहले और बाद के हालातों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ माहों से जब भी घरेलू जरूरत के सामान खरीदने जाते हैं तो पैकिंग पर हर बार बदली हुई रेट देखने को मिल रही है। जानकारों के अनुसार पिछले दो सालों में खाद्य सामग्री के भावों में एक मोटे अनुमान के अनुसार 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी जा रही है। खाद्य तेलों के भाव तो सारे रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं तो दालों के भावों में भी तेजी देखी गई है। मसालों के भाव भी आसमान की ओर हैं तो डेयरी उत्पाद के भाव भी लगातार बढ़ रहे हैं। देखा जाए तो खाद्य तेल, दालें और सब्जियां गरीब की थाली से दूर होती जा रही हैं। दरअसल अन्य सब कारणों के साथ ही पेट्रोल, डीजल और गैस के भावों ने बहुत कुछ बिगाड़ के रख दिया है। पेट्रोलियम पदार्थों के भाव भले ही सरकारों की स्थाई राजस्व का माध्यम हों पर इसका प्रभाव पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। वस्तुओं का परिवहन महंगा हो रहा है तो उसकी वसूली अंततोगत्वा आम आदमी से ही होनी है। ऐसे में भावों में बढ़ोत्तरी का अनवरत दौर जारी है। एक मोटे अनुमान के अनुसार गत दो सालों में खुदरा कीमतों में 6 प्रतिशत से भी अधिक की सालाना बढ़ोतरी रही है। ऐसे में गरीब की थाली सिकुड़ती जा रही है।
सरकारों ने चाहे वह केन्द्र की हो या राज्यों की पेट्रोल-डीजल को आय का साधन बना लिया है। आए दिन पेट्रोल, डीजल और गैस के भावों में बढ़ोतरी हो रही है और इन पर करों का बोझ सीधे-सीधे लोगों को प्रभावित कर रहा है। यह भी सही है कि सरकार को इनसे निरंतर राजस्व मिल रहा है और अब सरकारों के राजस्व का प्रमुख जरिया यह हो गया है। पर आखिर आम आदमी की दिक्कत और परेशानियों को भी समझना होगा। खाने की थाली पर जिस तरह से महंगाई का तड़का लग रहा है वह एक सीमा को पार कर चुका है। यह तो कभी कोरोना का डर तो कभी अन्य मुद्दों के चलते आम आदमी को अपना दर्द बयां करने का मौका ही नहीं मिल पाता। एक तरह से यह तो आम आदमी के धैर्य की परीक्षा हो रही है।
भारत ही नहीं दुनिया के देशों को यह समझना होगा कि खाने की थाली पर महंगाई की मार नहीं पड़नी चाहिए। आखिर नागरिकों को भरपेट भोजन ही नहीं मिलेगा तो फिर एक समय ऐसा आएगा कि दूसरे सभी मुद्दे नेपथ्य में चले जाएंगे और महंगाई ही मुख्य मुद्दा रह जाएगा। इसलिए समय रहते इस तरह की रणनीति तय करनी होगी जिससे आम आदमी दो टाइम भरपेट भोजन कर सके। जिस तरह से पानी, बिजली व अन्य वादों को लेकर मुफ्तखोर बनाया जा रहा है उससे अच्छा तो यह हो कि खाद्य वस्तुओं पर राहत दी जाए। होना तो यह चाहिए कि अनाज, तेल, दालें, सब्जियां, गैस आदि पर महंगाई की मार नहीं पड़नी चाहिए। इसी में गरीब ही नहीं आम आदमी का हित है। क्योंकि यह साफ हो जाना चाहिए कि अनाज, दाल, तेल आदि अमीर को चाहिए तो गरीब की थाली भी इन्हीं से भरी जाएगी ऐसे में इस ओर ध्यान देते हुए रणनीति बनानी होगी ताकि कोई भूखा ना सोए। भरपेट भोजन मिल सके। वैसे ही लाख समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है आए दिन। ऐसे में थाली को महंगाई की मार से बचाने की ठोस योजना बनानी होगी।
-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा