By अंकित सिंह | Jul 22, 2024
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले हफ्ते एक आदेश जारी कर आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी अधिकारियों की भागीदारी पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। सरकार के इस फैसले पर सियासत तेज हो गई है। विपक्ष सरकार के इस कदम की आलोचना कर रहा है। भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने भी आदेश का एक स्क्रीनशॉट साझा किया और कहा कि 58 साल पहले जारी एक "असंवैधानिक" निर्देश को मोदी सरकार ने वापस ले लिया है।
वही, कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी से संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा जारी 9 जुलाई को एक कार्यालय ज्ञापन साझा किया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि कानून तोड़कर जो हो रहा था वह अब नियमित हो गया है क्योंकि जी2 और आरएसएस के बीच तनाव बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि 4 जून, 2024 के बाद, स्व-अभिषिक्त गैर-जैविक प्रधान मंत्री और आरएसएस के बीच संबंधों में गिरावट आई है। 9 जुलाई, 2024 को, 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया, जो वाजपेयी के प्रधान मंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था।
पवन खेड़ा ने कहा कि 58 साल पहले केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था। मोदी सरकार ने आदेश वापस ले लिया है। AIMIM सांसद असदुद्दीन औवेसी ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल और नेहरू की सरकार ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्हें इस बात पर सहमत होना पड़ा कि वे भारतीय संविधान का सम्मान करेंगे, वे भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करेंगे और उन्हें अपना लिखित संविधान देना होगा और उसमें कई शर्तें थीं कि वे राजनीति में भाग नहीं लेंगे।
उन्होंने कहा कि आज ये बीजेपी-एनडीए सरकार उस संगठन को इजाजत दे रही है कि सरकारी कर्मचारी आरएसएस की गतिविधियों में हिस्सा ले सकें। इसलिए, मुझे लगता है कि यह बिल्कुल गलत है क्योंकि आरएसएस का सदस्यता प्रपत्र कहता है कि वे भारत की विविधता पर विचार नहीं करते हैं। वे हिंदू राष्ट्र की कसम खाते हैं। मेरा मानना है कि सभी सांस्कृतिक संगठनों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।