Prajatantra: मास्टर स्ट्रोक की तैयारी में मोदी सरकार, क्या फेल हो जाएगी विपक्ष की रणनीति?

By अंकित सिंह | Sep 01, 2023

केंद्र की मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र 18 सितंबर से 22 सितंबर के बीच बुलाया है। इस बात की जानकारी केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने दी। 17वीं लोकसभा का यह 13वां सत्र होगा जबकि राज्यसभा का 261वां सत्र होगा। सबसे खास बात यह है कि यह सत्र राष्ट्रीय राजधानी में जी20 शिखर बैठक के कुछ दिनों के बाद आयोजित होने जा रहा है। विशेष सत्र को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। विपक्ष जबरदस्त तरीके से केंद्र की सरकार पर निशाना साधा रहा है। 

 

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तस्वीरों से संकेत

अगर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के पोस्ट को देखें तो उन्होंने जो तस्वीर साझा की है। उससे एक इशारा अवश्य मिल रहा है। इस तस्वीर में संसद भवन की नई और पुरानी इमारते दिखाई दे रही है। इससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि संसद का विशेष सत्र नई बिल्डिंग में हो सकता है। मई में ही संसद के नई बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ था। हालांकि, मानसून सत्र उसमें नहीं हो सका। ऐसे में दावा किया जा रहा है कि शुभ मुहूर्त देखकर ही यह विशेष सत्र बुलाया गया होगा। यह वह वक्त होगा जब पूरे देश में गणेश चतुर्दशी का वक्त रहेगा। 


एक देश एक चुनाव पर चर्चा

जैसे ही विशेष संसद सत्र बुलाने की बात हुई, उसके साथ ही एक देश, एक चुनाव के चर्चा तेज हो गई। दावा किया जा रहा है कि संसद के विशेष सत्र में एक देश, एक चुनाव पर सरकार बिल ला सकते हैं। कई बार प्रधानमंत्री ने इसकी वकालत की है। आज इसको लेकर एक पैनल भी बना दिया गया। इस पैनल का नेतृत्व देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे। इसके अलावा इस संसद सत्र में माना जा रहा है कि आने वाले चुनाव को देखते हुए सरकार कुछ और बिल पेश कर सकती है। इसमें यूसीसी और महिला आरक्षण बिल भी शामिल है। 


तेज हुई राजनीतिक हलचल

विशेष संसद सत्र को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे ने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि जब मणिपुर जल रहा था, कोरोना चरम पर था, नोटबंदी से लोग परेशान थे, तब सरकार की ओर से स्पेशल सत्र नहीं बुलाया गया। लेकिन अब बिना किसी के चर्चा के स्पेशल सत्र बुला लिया गया। सपा सांसद रामगोपाल यादव ने कहा कि संसदीय व्यवस्था की सारी मान्यताओं को यह सरकार तोड़ रही है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) संजय राउत ने कहा कि मुझे लगता है कि ये एक चुनाव आगे करने के लिए एक साजिश है, ये लोग चुनाव नहीं कराना चाहते...ये लोग INDIA से डर गए हैं, इनके मन में डर है इसलिए नया-नया फंडा लेकर आते हैं। CPI सांसद बिनॉय विश्वम ने कहा, "...संसद का सत्र चर्चा के लिए होना चाहिए, हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं। ये पांच दिन का बिजनेस नाकाफ़ी है।  AAP नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा, ''केंद्र सरकार किसी से राय-मशवरा नहीं लेती, किसी राजनीतिक दल से बात नहीं करती...केंद्र सरकार इस तरह लोकतंत्र का गला घोंट रही है।'' शिवसेना (UBT) सांसद प्रियंका चतुवेर्दी ने कहा कि जिस तरह से प्रह्लाद जोशी ने चोरी-चोरी, चुपके-चुपके यह निर्णय लेकर ट्वीट किया है- मेरा सवाल है कि देश का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार गणेश चतुर्थी (उस समय मनाया जाएगा)...तो हम जानना चाहते हैं कि यह हिंदू विरोधी काम क्यों हो रहा है? यह फैसला किस आधार पर लिया गया है?...क्या यही उनकी 'हिन्दुत्ववादी' मानसिकता है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा किसंसद के विशेष सत्र को लेकर हमें कोई जानकारी नहीं मिली। हमें ट्वीट के माध्यम से सत्र के बारे में पता चला, हमें किसी भी तरह का नोटिस, पत्र या फोन करके इसकी जानकारी नहीं दी गई। 


सरकार का पक्ष

सदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि अभी तो समिति बनी है, इतना घबराने की बात क्या है? समिति की रिपोर्ट आएगी, फिर पब्लिक डोमेन में चर्चा होगी। संसद में चर्चा होगी। घबराने की बात क्या है?...बस समिति बनाई गई है, इसका अर्थ यह नहीं है कि यह कल से ही हो जाएगा। जोशी ने शुक्रवार को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का मजाक उड़ाते हुए उसकी तुलना ‘यात्रा कर रहे बिना दर्शक वाले टॉकीज’ से की। विपक्षी गठबंधन पर निशाना साधते हुए जोशी ने कहा कि ‘‘यह भ्रम और विरोधाभासों का पुलिंदा है’’। 

 

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वर्तमान में देखें तो यह चर्चा का विषय जरूर है कि आखिर संसद के सत्र में क्या होने वाला है? लेकिन विपक्ष ने जिस तरीके से बोलना शुरू किया है उससे उनकी घबराहट साफ तौर पर दिखाई दे रही है। संसद लोकतंत्र का मंदिर होता है और उसके सत्र बुलाए जाने पर सभी को प्रतिभागी बनने का मौका मिलता है। वहां सभी अपनी बात रख सकते हैं। तो इसको लेकर आखिर इतनी आलोचना क्यों?माना जा रहा है कि सरकार कहीं ना कहीं कुछ एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश में है और विपक्ष को लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो उनकी चुनावी रणनीति बिगड़ सकती है। खैर जनता सब कुछ देखती और समझती है और उसी के आधार पर राजनीतिक दलों को परखती है। यही तो प्रजातंत्र है।

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