बंगाल में गरजने और बरसने के साथ ही नेताओं ने गिराया भाषा का स्तर

By अनुराग गुप्ता | May 22, 2019

लोकसभा चुनाव की शुरुआत के साथ ही पश्चिम बंगाल की लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई। तृणमूल टोलबाजी टैक्स से शुरू हुआ चुनाव ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति पर जाकर थमा। इस चुनाव में पहले तो बंगाल भंग हुआ फिर शांति और अंत में मूर्ति के साथ प्रचार भी भंग हो गया। एक तरफ मूर्ति किसने तोड़ी मुद्दा ये था तो दूसरी तरफ पंच धातु की मूर्ति बनाए जाने की बात हो रही थी। लेकिन ऐसे में चुनाव आयोग कहां था ये सवाल भी लाजिमी है। आजाद भारत के इतिहास में शायद पहली दफा हुआ है कि चुनाव आयोग ने सख्त कदम उठाते हुए आर्टिकल 324 का इस्तेमाल किया।

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2014 के बाद आखिर 2019 में क्यों बदला मिजाज

साल 2014 में एक तरफ मोदी लहर थी तो दूसरी तरफ बंगाल की जमीं पर ममता का दबदबा। ऐसे में बीजेपी ने तो उत्तर प्रदेश से समाजवादी को साफ करते हुए 71 सीटें हासिल की। लेकिन बंगाल में मोदी की हवा काम नहीं आई और भाजपा को 2 ही सीटों से संतोष करना पड़ा। हालांकि इस आंकड़े के साथ भाजपा खुश तो जरूर हुई क्योंकि 2009 के मुकाबले 2014 में सीटें दोगुनी जो हो गईं।

 

चुनाव आयोग के सख्त रवैये के बाद ममता बनर्जी ने बंगाल के साथ-साथ बिहार और उत्तर प्रदेश के मतदाताओं से मोदी को हटाने की अपील की। हालांकि आम चुनाव में ममता ने बाहरी लोग, चौकीदार जैसे शब्दों का खासा इस्तेमाल किया और इसके जवाब में मोदी ने ममता के भतीजे अभिषेक को निशाने पर लिया और आतंकवाद, घुसपैठियों को बाहर निकालने जैसे मुद्दे पर जोर दिया।

 

भाजपा द्वारा हमेशा ही इस बात का उल्लेख किया गया कि ममता बनर्जी और तृणमूल के लोग डरे हुए हैं। इसी वजह से वह भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले कर रहे ताकि हम इस जमीन को छोड़कर चले जाएं। लेकिन उन्हें पता नहीं है कि इस बार के नतीजों में भाजपा को 23 प्लस सीटें मिलने वाली हैं। ममता बनर्जी को इस बात की भी चिंता सता रही है कि अमित शाह की रणनीति के दम पर भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सरकार बना ली है और वह बंगाली अस्मिता और भगवान राम के नाम पर बंगाल फतह करना चाहते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो भाजपा अगर एक तिहाई सीटें भी जीतने में कामयाब होती है तो वह विधानसभा चुनाव में तृणमूल को भारी नुकसान पहुंचाएगी।

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चुनावी जनसभाओं में एक तरफ ममता का उतावलापन दिखाई दिया तो दूसरी तरफ मोदी ने खूब पलटवार किया। इंच-इंच का बदला लेने की बात करने वाली ममता ने कोलकाता हिंसा के बाद कहा कि वह दिल्ली में स्थित भाजपा के मुख्यालय पर एक सेकेंड में कब्जा कर सकती हैं। जबकि हिंसा के बाद तो प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर यह कहा कि कश्मीर हिंसा और आतंकवाद के लिए जाना जाता है। कश्मीर में पंचायत के चुनाव हुए। एक भी पोलिंग बूथ पर हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई। उसी समय पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हुए। सैकड़ों लोग मारे गए, जो जीतकर आए उनके घर जला दिए गए। जो जीतकर आए उन्हें झारखंड और पड़ोसी राज्यों में मुंह छिपाकर रहना पड़ा। इतना ही नहीं इसके साथ ही भाजपा नेताओं ने तो बंगाल को दूसरा कश्मीर बनाने का आरोप भी लगाया।

 

उत्तर प्रदेश में सीटों की भरपाई करने के लिए प्रधानमंत्री ने सबसे ज्यादा जोर ओडिशा और बंगाल पर दिया। उन्होंने देशभर में कुल 142 रैलियां और 4 रोड शो किए। जिसकी 40 फीसदी रैलियां तो उत्तर प्रदेश, बंगाल और ओडिशा में ही की। अगर हम सिर्फ बंगाल की ही बात करें तो वहां पर उन्होंने 17 रैलियां कीं। अमित शाह ने पार्टी का प्रदर्शन सुधारने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने भी प्रधानमंत्री की रैलियों की बराबरी करने के अलावा 2 प्रेस वार्ता भी कीं। इसके अतिरिक्त बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत कर वहां का हाल जाना और एक विशाल रोड शो के जरिए पार्टी की ताकत दिखाई। जिसका असर एग्जिट पोल में दिखाई दे रहा है। ममता बनर्जी बनाम मोदी की लड़ाई में बंगाल का आसमान अब तृणमूल धीरे-धीरे अस्त हो रहा और भगवा रंग उस पर हावी भी।

 

हिंसा के बाद प्रधानमंत्री ने तो बंगाल की जनता को दिए संदेश में कहा था कि ममता दीदी लोकतंत्र ने आपको मुख्यमंत्री की कुर्सी दी है और आप उसकी हत्या कर रही हैं। पूरा देश आपकी हरकतों को देख रहा है। दीदी को सत्ता में नहीं रहना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा ममता दीदी पर किए गए हमले पर अगर हम गौर करें तो बंगाल का इतिहास भी कहता है कि चुनावों में हिंसा कोई नई बात नहीं है। अगर हम कुछ वक्त पहले चले तो 2018 के पंचायत चुनावों में बंगाल का हिंसक रूप देखने को मिला था, जबकि इसके उलट जम्मू कश्मीर में पंचायत चुनाव आराम से निपट गए। इस दौरान बंगाल में तो भाजपा के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की भी मौत हुई और अमित शाह ने अपनी प्रेस वार्ता में इस बात का उल्लेख भी किया था। 

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भाजपा के मुताबिक पंचायत चुनाव में 52 कार्यकर्ताओं ने तो तृणमूल के अनुसार उनके 14 कार्यकर्ताओं ने अपनी जान गंवाई थी। इन आंकड़ों को जानने के बाद आप यह तो जरूर समझ गए होंगे कि बंगाल की धरती में हिंसा कोई बड़ी बात नहीं है। हालांकि पंचायत चुनाव में ममता बनर्जी ने ही 34 फीसदी वोटों के दम पर जीत हासिल की। तृणमूल कांग्रेस का उग्र रूप तो तब देखने को मिला था कि जब तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन ने पार्टी के पक्ष में ट्वीट किया था कि नए जन्मे हुए विशेषज्ञों के नाम, बंगाल पंचायत चुनाव का एक इतिहास है। 1990 में CPIM के कार्यकाल में 400 लोग चुनावी हिंसा के कारण मारे गए थे। 2003 में 40 लोग मारे गए थे। हर मौत एक दुखद घटना है। अब मामला सामान्य हो चला है। 58000 पोलिंग बूथ में से 40 में हिंसा। तो क्या % हुआ?

 

इन ट्वीट के जरिए उन्होंने हिंसा को आम बात बताने का प्रयास किया था। साथ ही वह घटना को दुखद भी बता रहे हैं तो क्या टीएमसी नेता का दायित्व हिंसा को रोकने का था या फिर बढ़ावा देना का? अब आज के वक्त में वापस लौट आएं, जिस तरह से ममता दीदी ने इंच-इंच का हिसाब लेने की बात कही थी तो क्या हिंसा के जरिए वह बदला लेना चाहती थी? यह सवाल भी पूछा जाना वाजिब है।

 

चुनाव प्रचार पूर्णत: थमने के बाद भी दोनों दलों के बीच तल्खी बनी रही। 17 मई को जब प्रधानमंत्री अपनी पहली प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे, पश्चिम बंगाल भाजपा के मुताबिक ठीक उसी समय तृणमूल कांग्रेस द्वारा पार्टी के राज्य मुख्यालय में केबल ऑपरेटर्स की सेवाएं बंद करा दी गई थी।

 

 

 आखिर क्यों इस्तेमाल किया गया आर्टिकल 324

बंगाल की जमीं को मोदी मय बनाने के लिए भाजपा प्रमुख अमित शाह ने जिम्मेदारी ली और उन्होंने भगवान राम नाम के उद्घोष के साथ एक विशाल रोड शो किया। इस दौरान अमित शाह का काफिला कॉलेज स्ट्रीट के पास से गुजरा तो माहौल गर्मा गया। TMC और भाजपा के छात्र कार्यकर्ताओं के बीच झड़पें हो गईं। कुछ ही पल में झड़प हिंसा में तब्दील हो गई। इसी बीच कालेज के भीतर लगी ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा को तोड़ दिया गया और दोनों पक्ष एक दूसरे पर दोषारोपण करने लगे। 

 

यह सिलसिला इतने में ही नहीं थमा। तृणमूल के हर एक नेता और कार्यकर्ता ने ईश्वरचंद्र विद्यासागर की फोटो को अपने प्रोफाइल में लगाया और बाद में ममता बनर्जी के नेतृत्व में रोड शो किया। हिंसा के बाद शाह ने दावा किया कि अगर सीआरपीएफ साथ में नहीं होती तो मैं जिंदा नहीं बचता। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद दोनों दलों के नेता मुखर हो गए और चुनाव आयोग को समय से 20 घंटे पहले ही चुनाव प्रचार को रोकना पड़ा।

 

आर्टिकल 324 क्या है?

भारतीय संविधान के आर्टिकल 324 में चुनाव आयोग को कुछ शक्तियां सौंपी गई हैं। इस आर्टिकल में संसद, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद और राज्य विधानमंडल के लिए चुनाव कराने के नियमों, निर्देशों और चुनाव आयोग के अधिकारों के बारे में बताया गया है। दरअसल चुनाव आयोग भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव सम्पन्न कराने के लिए जिम्मेदार होता है। ताकि चुनाव प्रक्रिया में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके। इस आर्टिकल के तहत किसी भी अधिकारी को निष्पक्ष चुनाव कराए जाने के लिए उसके पद से हटाया जा सकता है। इसी के तहत चुनाव आयोग किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों का दर्जा भी देता है।

 

- अनुराग गुप्ता

 

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