प्रवासी श्रमिकों के पलायन से जम्मू-कश्मीर में लोगों की मुश्किलें बढ़ीं

By सुरेश एस डुग्गर | Nov 05, 2019

आतंकवादग्रस्त जम्मू-कश्मीर को प्रवासी श्रमिकों की जबरदस्त कमी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी कमी के संकट से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए समस्या यहां तक पहुंच गई है कि अगर यह कमी यूं ही बनी रही तो कई प्रकार की गतिविधियां ठप्प हो जाएंगी जो इन्हीं प्रवासी श्रमिकों के सहारे जारी रहती हैं। अभी तक जम्मू कश्मीर में प्रवासी श्रमिकों की कोई कमी नहीं थी परंतु 5 अगस्त को सरकार की सलाह के बाद वे वापस अपने घरों को लौट गए और जो वापस लौटे उन्हें आतंकियों द्वारा लगातार निशाना बनाए जाने के कारण कश्मीर में तो उनका नामोनिशान अब नहीं दिख रहा जबकि जम्मू मंडल में भी सीमा पर पाक गोलीबारी की घटनाएं उन्हें मजबूर कर रही हैं कि वे अपने प्रदेशों को लौट जाएं।

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असल में पाक समर्थक विदेशी आतंकियों ने कश्मीर में होने वाले नरसंहारों के क्रम में पहले इन प्रवासी मजदूरों को भी तेजी के साथ निशाना बनाया था। और अब वे सरकारी सलाह के बाद घरों को तो लौट गए लेकिन उनकी वापसी भी सहज नहीं है। आतंकी उन्हें डराने धमकाने की खातिर उन पर हमले करने लगे हैं तथा उन्हें मौत के घाट उतारने लगे हैं। इन परिस्थितियों का नतीजा यह है कि राज्य से बोरिया बिस्तर समेट अपने घरों को लौटने तथा जम्मू में डेरा लगाने का जो क्रम आरंभ हुआ वह लगातार जारी है। अगर आंकड़ों पर विश्वास करें तो कश्मीर घाटी पूरी तरह से प्रवासी मजदूरों से रिक्त हो चुकी है।

नरसंहारों के उपरांत आतंकी धमकियों के चलते जान बचाने की इस दौड़ में अब प्रवासी मजदूरों के शामिल हो जाने के बाद स्थिति यह हो गई है कि कश्मीर में वे सब कार्य ठप्प हो गए हैं जिनमें यह प्रवासी श्रमिक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। याद रखने योग्य तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय श्रमिकों की भारी कमी है और श्रमिकों के विकल्प के रूप में प्रवासी मजदूरों का सहारा लिया जाता है जो उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्य प्रदेश से आते हैं। इन्हीं श्रमिकों का सहारा सीमावर्ती किसान अपने खेतों की बुवाई, कटाई आदि के लिए भी लेते आ रहे हैं।

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लेकिन पिछले एक लंबे अरसे से जबसे पाक सेना अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भी भयानक गोलीबारी कर रही है, कई बार पाक सेना की गोलीबारी का निशाना ये श्रमिक भी बने हैं। नतीजतन इन प्रवासी श्रमिकों द्वारा अकसर सीमावर्ती खेतों में कार्य करने से इंकार किए जाने से सीमावर्ती किसानों की समस्याएं बढ़ गई हैं जिनके पास पहले ही समय की कमी इसलिए है क्योंकि सीमा पर युद्धविराम के बावजूद सीमाओं पर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं।

इसी प्रकार की स्थिति का सामना अब कश्मीर के लोगों को भी करना पड़ रहा है। वहां भी किसानों के लिए परेशानी का सबब यह है कि वे अपने कार्यों के लिए प्रवासी श्रमिकों को नहीं पा रहे तो ईंट भट्ठा मालिक तथा फल उत्पादक, जिनके खेतों में फलों को पेटियों में भरने के कार्य को वे करते रहे हैं, इससे सबसे अधिक त्रस्त हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि कश्मीर की अर्थव्यवस्था इन्हीं प्रवासी मजदूरों पर टिकी हुई है जो अभी तक आतंकवाद के बावजूद कश्मीर में टिके हुए थे परंतु अब वे पलायन कर अर्थव्यवस्था को भी धक्का पहुंचाने लगे हैं।

-सुरेश एस डुग्गर

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