Indus Water Treaty के विरोध में उतरे Omar Abdullah तो Pakistan के समर्थन में खुलकर खड़ी हो गयीं Mehbooba Mufti

By नीरज कुमार दुबे | Nov 14, 2024

सिंधु जल संधि के विरोध में उमर अब्दुल्ला उतरे तो महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान के समर्थन में खड़ी हो गयीं हैं। हम आपको बता दें कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की बातचीत के बाद 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता था। यह समझौता जम्मू-कश्मीर में कई सीमा पार नदियों के पानी के उपयोग पर दोनों पक्षों के बीच सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक तंत्र स्थापित करता है।


इस जल संधि से जम्मू-कश्मीर को हो रहे नुकसान पर देश का ध्यान आकर्षित करते हुए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) मुख्य रूप से भंडारण संबंधी बाधाओं के कारण केंद्र शासित प्रदेश की विशाल जल विद्युत संभावनाओं का दोहन करने की क्षमता को बाधित कर रही है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (जिनके पास ऊर्जा विभाग भी है) ने, नयी दिल्ली में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन में कहा, "संधि बाधाओं के परिणामस्वरूप, जम्मू-कश्मीर को सर्दियों के महीनों में भारी कीमत चुकानी पड़ती है, जब बिजली उत्पादन कम हो जाता है, जिससे लोगों के लिए कठिनाइयां पैदा होती हैं।" मुख्यमंत्री ने कहा, "जल विद्युत जम्मू-कश्मीर का एकमात्र व्यवहार्य ऊर्जा स्रोत है। क्षेत्र को अन्य राज्यों से बिजली आयात पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे इसकी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।"

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उधर, उमर अब्दुल्ला के बयान का विरोध करते हुए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि सुलझे हुए मुद्दों को फिर से खोलने से तनाव उत्पन्न होगा और इससे भाजपा को फायदा होगा। अब्दुल्ला की टिप्पणी पर विरोध जताते हुए महबूबा ने श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘पिछले 75 वर्षों में जम्मू-कश्मीर ने बहुत कुछ झेला है और कई कठिनाइयां देखी हैं। कई लोग मारे गए और संपत्ति नष्ट हुई। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण जम्मू-कश्मीर को नुकसान उठाना पड़ा। सिंधु जल संधि एकमात्र संधि है जो युद्ध और तनाव के बावजूद कायम रही।’’ उन्होंने कहा कि हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संधि के कारण जम्मू-कश्मीर को नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन ‘‘पिछले कुछ वर्षों से भाजपा का विमर्श यह रहा है कि वह सिंधु जल संधि को मुद्दा बनाना चाहती है।’’


उन्होंने कहा, ‘‘उमर (अब्दुल्ला) ने कहा है कि इससे नुकसान हुआ है और हम अधिक बिजली नहीं बना सकते। लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि हम जो बिजली बना रहे हैं, वह हमारी है या नहीं। हम कहते हैं कि हम इसलिए नुकसान उठा रहे हैं क्योंकि हम अधिक पानी का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं और अधिक बिजली नहीं बना पा रहे हैं। मैं पूछना चाहती हूं कि हम जो बिजली बना रहे हैं, क्या वह हमारी है?’’ पीडीपी प्रमुख ने कहा कि अब्दुल्ला परिवार ने ही जम्मू कश्मीर की बिजली परियोजनाओं को एनएचपीसी को सौंपा था। उन्होंने कहा, ‘‘जब दिवंगत शेख (नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला) मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने सालार परियोजना एनएचपीसी को दे दी थी। जब फारूक (अब्दुल्ला) 1997 में मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने सात बिजली परियोजनाएं एनएचपीसी को सौंप दी थीं।’’ महबूबा ने कहा कि मुख्यमंत्री को केंद्र से कम से कम दो बिजली परियोजनाओं को वापस मांगने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘जब हमने भाजपा के साथ सरकार बनाई थी, तो उन बिजली परियोजनाओं का उल्लेख हमारे गठबंधन के एजेंडे में था और भाजपा ने उन्हें वापस करने पर सहमति जताई थी।’’ महबूबा ने यह भी मांग की कि अगर केंद्र बिजली परियोजनाएं वापस नहीं करता है तो जम्मू-कश्मीर को वित्तीय मुआवजा दे।


पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा ने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य है, जो बिजली पैदा करने के बावजूद अंधेरे में रहता है। हमारी बिजली एनएचपीसी को जाती है, जो फिर हमें वापस बेचती है। इसलिए, हमें सिंधु जल संधि को मुद्दा नहीं बनाना चाहिए और दोनों देशों के बीच और तनाव पैदा नहीं करना चाहिए, जिससे केवल भाजपा को ही लाभ होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यदि कोई मुद्दा उत्पन्न होता है, तो इसका खामियाजा जम्मू-कश्मीर के लोगों को भुगतना पड़ेगा और इससे भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इससे पंजाब या राजस्थान को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बल्कि केवल जम्मू-कश्मीर को फर्क पड़ेगा। हमारे हाथ पहले ही खून से रंगे हुए हैं। इसलिए, हमें पूरी तरह से सोच-समझकर बात करनी चाहिए और उन मुद्दों को फिर से नहीं खोलना चाहिए जो पहले से ही कुछ हद तक सुलझ चुके हैं, अन्यथा हम भाजपा के रुख का अनुसरण करेंगे।’’ 

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