By नीरज कुमार दुबे | Sep 05, 2022
क्या सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर गुजरात विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार होंगी? यह सवाल इसलिए उठ खड़ा हुआ है क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के गुजरात में लगते चक्करों के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि कुछ लोग सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को गुजरात की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश कराने की कोशिश कर रहे हैं।
हम आपको बता दें कि मेधा पाटकर ने राज्य की जीवनरेखा नर्मदा परियोजना का विरोध किया था। यदि नर्मदा परियोजना को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे नहीं बढ़ाया होता तो गुजरात में जल संकट आज भी बरकरार होता। ऐसे में सवाल उठता है कि विकास परियोजनाओं में रोड़े अटकाने वाले लोग यदि सत्ता में आयेंगे तो जनता का क्या होगा? जहां तक आम आदमी पार्टी से मेधा पाटकर के रिश्ते की बात है तो आपको याद दिला दें कि ‘आप’ ने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की संस्थापक सदस्य मेधा पाटकर को 2014 के लोकसभा चुनावों में मुंबई की उत्तर पूर्व सीट से मैदान में उतारा था। मेधा पाटकर आम आदमी पार्टी की सीएम कैंडिडेट हो सकती हैं इस बात के संकेत इससे भी मिलते हैं कि भाजपा नेताओं ने मेधा पाटकर पर राजनीतिक हमले बढ़ा दिये हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो उन पर नर्मदा परियोजना की राह में बाधा खड़ी करने का आरोप लगाया ही था हाल ही में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी मेधा पाटकर को अर्बन नक्सल बताया था। अब खुद गृहमंत्री अमित शाह ने भी मेधा पाटकर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और उनकी असलियत से लोगों को रूबरू कराना शुरू कर दिया है।
अमित शाह ने अहमदाबाद में 36वें राष्ट्रीय खेलों के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि नर्मदा परियोजना का विरोध करने वाली मेधा पाटकर को गुजरात की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश कराने के लिए कुछ लोगों ने इन दिनों नई शुरुआत की है। उन्होंने कहा कि मैं गुजरात के युवाओं से पूछना चाहता हूं कि क्या वे नर्मदा परियोजना के साथ-साथ गुजरात के विकास का विरोध करने वालों को राज्य में घुसने देंगे।
जहां तक विकास परियोजनाओं के विरोधियों को आगे बढ़ाने की बात है तो आम आदमी पार्टी पहले भी ऐसा कर चुकी है। मणिपुर विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी बनाकर मैदान में उतरने वाली इरोम चानू शर्मिला का आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने खुलकर समर्थन किया था। लेकिन राज्य की जनता ने शर्मिला को ऐसी बुरी तरह खारिज किया था कि वह अपनी खुद की विधानसभा सीट भी नहीं बचा पाई थीं। अरविंद केजरीवाल जिन्हें आयरन लेडी करार दे रहे थे उन्हें चुनाव में मात्र 90 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था।