मैं और मेरा मोटापा (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Nov 23, 2023

वर्ष 2022 के शुरुआती दिनों में मेरा वजन एक सौ दस किलो से थोड़ा ज्यादा था। आज यानि बाईस की विदाई के वक्त दो किलो वजन कम हो गया है। मामला ध्यान देने लायक है। सरकार गलतबयानी और आंकड़ों की बाजीगरी में माहिर है। कृपया ध्यान दें कि यहां सरकार का मतलब गृह सरकार से है। उन्होंने वजन में दो किलो की कमी को स्वास्थ्य के लिए अच्छा संकेत माना। उन्होंने अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ पर ताली भी बजाई और कहा कि सरकार के प्रयासों के अच्छे परिणाम अब दिखने लगे हैं। उन्होंने भी झिझकते हुए उन्हें बधाई दी।


“लेकिन सर! मैंने वज़न कम करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है!” हम हैरान थे।


"प्रयास!! ।।।आम आदमी यानि जनता कब प्रयास करती है!? ।।।सब कुछ सरकार को करना है। सरकार की मांग में आपके नाम का सिन्दूर भरा है। आपके भोजन का जिम्मेदार कौन है?" कपड़े, नींद और जागना?! शायद तुम्हें पता न हो, लेकिन दिन-रात तुम्हें ही दुख होता है। मैंने तुम्हारा घी-तेल कम कर दिया, मिठाइयां और आटा कम कर दिया, महंगा पेट्रोल बचाने के लिए पैदल चलने की आदत डाल दी। याद करो, तुम्हें किसने बनाया धर्म ध्यान करो और सप्ताह में दो बार उपवास करो? पूरे साल शरीर मंदी का शिकार रहा और तुम्हें पता ही नहीं चला।” सरकार ने प्रेस नोट जैसा जवाब जारी किया।

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मुझे याद आया कि ये सब तो हुआ था। उनका लक्ष्य अपना दो दो किलो कम करना था, जो हासिल कर लिया गया। मुझे नहीं पता था कि सरकारी योजनाएं इतनी चमत्कारी होती हैं। लेकिन मां और दोनों बहनें इससे खुश नहीं थीं। उन्होंने अपना वजन दो किलो कम होने को चिंता का विषय बताया। यह भी संकेत दिया कि सरकार की जनविरोधी नीतियों के गंभीर परिणाम होंगे जो भविष्य में घातक साबित होंगे। जब मेरी माँ सत्ता में थीं, तो मेरा शरीर चाँद की तरह बढ़ गया। जिस दिन मुझे पता चला कि मेरा वजन 110 किलो से ज्यादा हो गया है, मेरी मां ने मुझे बादाम का लड्डू बनाकर खिलाया था।


"आप क्या सोच रहे हैं? ।।।क्या आप खुश नहीं हैं?" अचानक सरकार ने प्वाइंट ऑफ ऑर्डर का पत्थर बजा दिया।


“वो क्या है… माँ और बहनें…।”


उन्होंने पूरी बात सुने बिना ही कहा- ''विपक्षी गठबंधन का काम सरकार की अच्छी योजनाओं में खामियां निकालना और गुमराह करना है। क्या आप जानते हैं कि दो किलो वजन कम करने के बाद आपने सेमी सलमान पहनना शुरू कर दिया है। इस समय लोगों को सिक्स पैक की जरूरत है। आशा थी कि आप आभारी होंगे, या कम से कम धन्यवाद कहेंगे, लेकिन।।।गठबंधन की राजनीति ने आपकी सोच पर कब्ज़ा कर लिया है।''


“ऐसी बात नहीं है सरकार। माँ कह रही थी कि अगर इसी तरह वजन कम होता रहा तो पहचान का संकट पैदा हो जाएगा। तुम्हारा क्या भरोसा, तुम उसे पहचानने से इनकार कर देती हो और घर से निकाल देती हो। अभी किसी भी पहचान पत्र में वजन का कोई जिक्र नहीं है!!''


“आप कैसी बातें कर रहे हैं? पहचान पत्र में नाम और चेहरा होता है। पहचान का संकट कैसे पैदा होगा!


“मम्मी कहती हैं कि अच्छी सरकार वही होती है जिसमें लोगों का वजन बढ़े। अगर प्रति वर्ष दो किलो की दर से वजन घटता रहा तो सोचिए 2050 तक आपका वजन कितना रह जाएगा! सरकार तुम्हें तीन कंधों के लायक बना रही है।”


"तो तुम क्या चाहते हो?"


"स्वतंत्रता ।"


“किससे आज़ादी? ।।। क्या मुझसे ?"


“रुको, मैं उनसे पूछकर बताऊँगा।”


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

(हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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