सपा-बसपा गठबंधन क्या लोकसभा चुनाव में गुल खिलायेगा यह कहना मुश्किल है जिस तरह मायावती ने गेस्ट हाउस कांड को अभी तक भुलाया नहीं है और इस बात को जाहिर भी कर दिया। उन्होंने गठबंधन के प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि राष्ट्रहित में हम गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर साथ आए हैं। दोनों पार्टियां 38-38 लोकसभा सीटों पर लडऩे का ऐलान किया और शेष दो सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ दी हैं और दो अन्य किसी पार्टी के लिए। लोकसभा चुनाव जीतने के दोनों धुर विरोधी पार्टियां एक हो गयी क्योंकि दोनों ही भाजपा सरकार को सत्ता से हटाना चाहती हैं। दोनों पार्टी प्रमुखों पर सीबीआई की नज़र थी मायावती पर आय से अधिक सम्पत्ति का मामला चल रहा था। वहीं अखिलेश यादव पर अवैध खनन को मामला हालिया में उठा था। जिसमें आईएएस चन्द्रकला व कई अधिकारियों के यहाँ सीबीआई का छापा पड़ा था।
इसे भी पढ़ेंः महागठबंधन की दिशा और कांग्रेस का सिमटता जनाधार
वहीं हम 26 साल पहले की बात करें तो सपा-बसपा में 1993 में गठबंधन हुआ था तब यूपी में बाबरी विध्वंस के बाद राष्ट्रपति शासन चल रहा था। मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण ध्रुवीकरण चरम पर था। यह सभी राजनीतिक दल समझ चुके थे। इसी के मद्देनजर प्रदेश की धुरविरोधी पार्टियां सपा और बसपा ने साथ चुनाव लडऩे का फैसला लिया था। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। गठबंधन ने दिसंबर 1993 को सत्ता की कमान संभाली थी। मायावती मुख्यमंत्री बनीं। और जब मुलायम सिंह की कुर्सी सम्भालने की बारी आई तो जून 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कर लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। दोनों का गठबंधन टूट गया। बसपा के समर्थन वापसी से मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई और मुलायम सरकार गिर गयी थी। फिर मायावती ने भाजपा के साथ तीन जून, 1995 को मिलकर सत्ता की कमान संभाली।
इसे भी पढ़ेंः उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ निर्विवाद रूप से सबसे बड़ी नेत्री हैं मायावती
तभी दो जून 1995 को गेस्ट हाउस कांड हुआ जो प्रदेश की राजनीति में कभी हुआ। उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर बसपा सुप्रीमो की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी। मायावती के समर्थन वापस लेने से गुस्साए सपा विधायक व कार्यकर्ता मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्टहाउस पहुँचकर मायावती से बदसलूकी करनी शुरू कर दी। मायावती वहीं ठहरी हुई थीं। सपा कार्यकर्ताओं व विधायकों ने उनको जान से मारना चाहते थे। यह सब जब उन्होंने मुकदमा कराया था तो इब बातों का जिक्र किया गया था। उस दिन को लेकर कई बातें होती रहती हैं। यह आज भी एक विषय है कि दो जून 1995 को लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में हुआ क्या था। इन सब बातों को वह भुलाकर उन्होंने यह गठबंधन किया है तो कुछ सोंच समझकर किया होगा क्योंकि वह अवसरवादी रहीं हैं। उन्होंने ऐसा भाजपा के साथ भी किया था 1995 में जब ताज सम्भाला तो अपना कार्यकाल पूरा करने बाद भाजपा को सत्ता में काबिज होने नहीं दिया। जिससे यह पता चलता है कि मायावती अवसर का भरपूर फायदा उठाती रहीं हैं। इसलिए बसपा सुप्रीमों पर भरोसा करना सपा को भारी पड़ सकता है। बसपा सुप्रीमो जिधर भारी पड़ला देखती है उधर ही झुक जाती हैं। इससे यही प्रतीत होत है कि अखिलेश ज्यादा भरोसा करेंगे तो धोखा भी खा सकते हैं।
पहले इस गठबंधन का हिस्सा बनने जा रहे राष्ट्रीय लोकदल की बात करें तो उनको भी घोखा ही मिला क्योंकि पहले उनका गठबंधन होता था परन्तु बाद में उनको गठबंधन के प्रेस कॉन्फ्रेंस में रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत सिंह या उनके बेटे व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जयंत सिंह को नहीं बुलाया गया। क्योकि वह ज्यादा सीटें मांग रहे थे इसलिए सपा-बसपा ने दो सीटें छोड़ दी। अब अगर गठबंधन में शामिल होना है तो मजबूरी में दो सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ेगा परन्तु अभी तक रालोक की तरफ से कोई ऐलान नहीं किया गया है कि वह अकेले लड़ेगी या इस गठबंधन का हिस्सा बनेगी।
इसे भी पढ़ेंः अखिलेश छाया में कमजोर होता मुलायम सिंह यादव का समाजवाद
हाल में हुए पाँच विधानसभाओं के चुनाव में बसपा सुप्रीमों मायावती ने कांग्रेस को मध्य प्रदेश में बिना शर्त समर्थन किया और बाद में दबाव बनाया कि उनके नेताओं पर जितने मुकदमे हैं उनको वापस ले नहीं तो समर्थन वापस लिया जा सकता है। इसी दबाब में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को मुकदमा वापस लेने का फैसला लेना पड़ा। क्योंकि मध्य प्रदेश में सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के विधायक को मंत्री न बनाने पर सपा मुखिया ने नाराजगी ज़ाहिर की थी उसके बाद मायावती ने भी तेवर दिखाने चालू किये तो कांग्रेस को झुकना ही पड़ा। यदि मायावती व अखिलेश यादव समर्थन वापस ले लेते हैं तो मध्य प्रदेश की सरकार जाना तय हो जाता है।
अगर सपा-बसपा के गठबंधन पर सियासी प्रतिक्रिया की बात की जाये तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा व प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने मायावती पर आरोप लगाया कि वह पैसे लेकर टिकट देती हैं इस गठबंधन के लिए भी उन्होंने पैसे लिये होंगे। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा-बसपा के गठबंधन पर कहा कि, राज्य की राजनीति पर कोई असर नहीं होगा, अच्छा है कि दोनों दल एक हो गये। अब भाजपा को इन्हें कायदे से 'निपटाने' में मदद मिलेगी। योगी ने कहा, सपा-बसपा के गठबंधन का मतलब, भ्रष्टाचारी, जातिवादी मानसिकता वाले अराजक और गुंडों को सीधे-सीधे सत्ता देकर जनता को उसके भाग्य पर छोड़ देने जैसा है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, मायावती-अखिलेश ने जो फैसला लिया, मैं उसका आदर करता हूं। यह उनका फैसला है। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में खुद को खड़ा करना है। हम यह कैसे करेंगे, यह हमारे ऊपर है। हमारी लड़ाई भाजपा की विचारधारा से है और हम उत्तर प्रदेश में पूरे दम से लड़ेंगे। राहुल ने यह भी कहा कि गठबंधन का ऐलान करते समय कांग्रेस को लेकर कुछ गलत बातें भी कही गईं, लेकिन उन्हें स्वीकार करते हैं। प्यार से राजनीति करना हमारा तरीका है।
- रजनीश कुमार शुक्ल