कई फिल्में होती हैं, जो दर्शक के दिल में अपनी एक खास जगह बना जाती हैं। कुछ फिल्में मनोरंजन के लिए होती हैं, तो कुछ ऐसी होती हैं जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं। ऐसी फिल्में लंबे समय तक हमारे दिलो-दिमाग में रहती हैं। इसी शुक्रवार एक ऐसी फिल्म रिलीज़ हुई है, जो निश्चित रूप से आपके मन में गहरी छाप छोड़ने वाली है – मैच फिक्सिंग – द नेशन एट स्टेक। यह फिल्म न सिर्फ एक शानदार थ्रिलर है, बल्कि यह हमें राजनीति, आतंकवाद और धार्मिक साज़िशों के घने जंगल में भी ले जाती है, और हर पहलू को इतनी सटीकता से पेश करती है कि आप इसकी दुनिया में खो जाते हैं।
यह फिल्म कर्नल कन्वर ख़ताना की किताब 'द गेम बिहाइंड सैफरन टेरर' से प्रेरित है, जो 2004 से 2008 तक भारत में हुए आतंकवादी हमलों और 26/11 के मुंबई हमलों के संदर्भ में गहरी सच्चाईयों को उजागर करती है। फिल्म का मुख्य किरदार कर्नल अविनाश पटवर्धन (विनीत कुमार सिंह) एक अंडरकवर आर्मी ऑफिसर है, जो एक बड़े राजनीतिक साज़िश का पर्दाफाश करने के लिए काम करता है। फिल्म का मुख्य विषय "सैफरन टेरर" के बनाए गए झूठे सिद्धांत को उजागर करना है, जहां हिंदू को आतंकवादी हमलों का दोषी ठहराया जाता है, ताकि राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। यह फिल्म राजनीति, आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जटिल ताने-बाने को दर्शाती है।
फिल्म के निर्देशक केदार गायकवाड़ ने बेहद सशक्त तरीके से फिल्म का निर्देशन किया है। उनकी कहानी कहने की शैली और हर दृश्य की गहरी समझ दर्शकों को पूरी तरह से बाँध लेती है। फिल्म के हर दृश्य को ऐसे प्रस्तुत किया गया है कि वह दर्शकों को एक्शन और थ्रिल से भरपूर रोमांच के साथ गहरे विचारों में भी डाल देता है। गायकवाड़ की सिनेमेटोग्राफी की भी तारीफ की जानी चाहिए, क्योंकि हर फ्रेम में एक गहरी वास्तविकता और गंभीरता दिखाई देती है, जो फिल्म के वातावरण को एकदम सजीव बना देती है।
फिल्म की एडिटिंग आशीष माथरे द्वारा की गई है, जो कहानी को तेज़ी से आगे बढ़ाते हुए, हर पल को महत्वपूर्ण बनाती है। वहीं, अनुज एस. मेहता की पटकथा बेहद मजबूत है, जो एक जटिल राजनीतिक कहानी को सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करती है। उन्होंने अलग-अलग राजनीतिक संदर्भों और घटनाओं को बहुत अच्छे से जोड़कर फिल्म को दिलचस्प बना दिया है।
फिल्म में अभिनय की बात करें तो, विनीत कुमार सिंह ने कर्नल अविनाश पटवर्धन के किरदार में एक गहरी छाप छोड़ी है। अपनी भूमिका को इतनी सटीकता से निभाया है कि वह न सिर्फ एक जांबाज़ सैनिक, बल्कि एक परिवार के प्यार में उलझा हुआ इंसान भी नजर आता है। उनका अभिनय फिल्म की आत्मा बन जाता है। अनुजा साठे ने कर्नल की पत्नी के किरदार में बहुत प्रभावी अभिनय किया है, जो फिल्म की भावनात्मक गहराई को बढ़ाता है। मनोज जोशी, किशोर कदम और राज अर्जुन जैसे सीनियर कलाकार भी अपनी भूमिका में शानदार हैं, विशेष रूप से राज अर्जुन ने पाकिस्तानी कर्नल के रोल में जो गहराई दिखाई है, वह सराहनीय है।
समीर गरुड के संवाद बेहद तीव्र और प्रभावी हैं। फिल्म के हर संवाद में एक गहरी राजनीतिक और सामाजिक समझ छिपी हुई है। चाहे वह राजनीतिक बहस हो या आर्मी अधिकारियों के बीच की बातचीत, हर लाइन में एक खास संदेश छिपा हुआ है।
फिल्म का संगीत रीमी धार द्वारा कंपोज्ड है, जो कहानी की गंभीरता और थ्रिल को सही रूप में पेश करता है। फिल्म के शीर्षक गीत के रूप में दलेर मेहंदी की आवाज़ में गाना फिल्म को और भी जोश और ऊर्जा प्रदान करता है। वहीं, ऋषि गिर्धर का बैकग्राउंड स्कोर भी शानदार है। इसका संगीत घटनाओं के तात्कालिक प्रभाव को और भी मजबूत करता है और दर्शकों को पूरी तरह से फिल्म की दुनिया में डुबो देता है।
फिल्म के प्रोडक्शन डिजाइन को लेकर कोई संकोच नहीं किया जा सकता। हर दृश्य, चाहे वह मिलिट्री यूनिफॉर्म हो या राजनीतिक बैठकें, पूरी तरह से वास्तविक लगती हैं। यह फिल्म के यथार्थवादी दृष्टिकोण को और अधिक सशक्त बनाता है।
अगर आप एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं, जो न सिर्फ मनोरंजन दे, बल्कि आपको सोचने पर भी मजबूर कर दे, तो मैच फिक्सिंग – द नेशन एट स्टेक एक बेहतरीन विकल्प है। यह फिल्म आपको राजनीति, आतंकवाद, और धार्मिक साज़िशों के बारे में सवाल पूछने पर मजबूर करेगी। इसका गहरा संदेश और शानदार निर्देशन इसे एक जरूरी देखने योग्य फिल्म बना देता है।
निर्देशक केदार गायकवाड़ और निर्माता पल्लवी गुर्जर की मेहनत और साहस की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने ऐसे संवेदनशील विषय को चुनने का साहस दिखाया। यह फिल्म न सिर्फ आपकी सोच बदलने वाली है, बल्कि एक प्रेरणा भी है कि हम सच के साथ खड़े रहें।
मैच फिक्सिंग – द नेशन एट स्टेक
निर्देशक – केदार गायकवाड
निर्माता – पलवी गुर्जर
कास्ट – विनीत कुमार सिंह, अनुजा साठे, मनोज जोशी, राज अर्जुन, शताफ फिगर, ललित परीमू, किशोर कदम
समय – 2 घंटा 26 मिनट
रेटिंग – 4/5
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