भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत तेजी से आ रहे हैं कई सकारात्मक बदलाव

By प्रह्लाद सबनानी | Oct 28, 2020

कोरोना वायरस महामारी के चलते आर्थिक गतिविधियां पूरे विश्व में ठप्प पड़ गईं थीं। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा एवं मार्च 2020 के बाद से देश में आर्थिक गतिविधियों में लगातार कमी दृष्टिगोचर हुई। जिसके चलते, कई लोगों के रोज़गार पर विपरीत असर पड़ा था एवं शहरों से भारी मात्रा में मज़दूरों का ग्रामों की ओर पलायन दिखाई दिया था। कुल मिलाकर कोरोना महामारी के काल के दौरान पूरे देश में एक तरह से अवसाद का माहौल उत्पन्न हो गया था। परंतु अब हर्ष का विषय है कि सितम्बर 2020 में आर्थिक गतिविधियों ने देश में पुनः रफ़्तार पकड़ ली है। साथ ही कई क्षेत्रों में तो इस दौरान कई प्रकार के सकारात्मक बदलाव देखने में आए हैं। यथा, देश का विदेशी मुद्रा भंडार रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। कृषि क्षेत्र से निर्यात बहुत तेज़ी से बढ़े हैं, ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति हो रही है, फ़ार्मा उद्योग, वाहन उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग, मेडिकल टूरिज़्म आदि क्षेत्रों में भारत ने पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहिचान बना ली है। इसके कारण, शीघ्र ही देश अवसाद की स्थिति से उबर कर वापस सामान्य स्थिति में आ जाएगा।

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भारत के विदेशी व्यापार क्षेत्र से बहुत अच्छी ख़बर आई है। बहुत लम्बे समय के बाद विदेशी व्यापार के चालू खाता में वर्ष 2020-21 की प्रथम तिमाही अर्थात् अप्रैल से जून 2020 के बीच में 1,980 करोड़ अमेरिकी डॉलर का आधिक्य शेष दर्ज किया गया है। सामान्यतः भारत के विदेशी व्यापार के चालू खाता में कमी का शेष ही रहता आया है। विदेशी व्यापार के चालू खाता में आधिक्य शेष होने का आशय यह है कि देश से निर्यात, आयात की तुलना में अधिक हो रहे हैं। जबकि सामान्यतः देश में आयात, निर्यात की तुलना में अधिक रहते हैं। साथ ही देश के निर्यात में भी 5.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी दिनांक 20 अक्टूबर 2020 को 55,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रिकार्ड स्तर पर पहुँच गया है एवं इसमें लगातार वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। देश में विदेशी निवेश की मात्रा भी लगातार बढ़ती जा रही है।


अभी हाल ही में देश में ऊर्जा के उत्पादन से संबंधित जारी किए गए आँकड़ों से यह तथ्य उभर कर आया है कि भारत में ऊर्जा के कुल उत्पादन में स्वच्छ ऊर्जा का योगदान वित्तीय वर्ष 2020-21 के अगस्त माह तक 30 प्रतिशत हो गया है जो वित्तीय वर्ष 2019-20 के अंत में 24.9 प्रतिशत था। केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई नीतियों को चलते देश के ऊर्जा उत्पादन में पारम्परिक ऊर्जा का योगदान लगातार कम होता जा रहा है। पारम्परिक ऊर्जा को जीवाश्म ऊर्जा भी कहते है एवं इसके निर्माण में तेल, गैस और कोयला आदि का उपयोग होता है। वहीं स्वच्छ ऊर्जा में सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा भी शामिल है। दूसरी, एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के अनुसार भारत अब ऊर्जा क्षेत्र में इस दृष्टि से आत्म निर्भर हो चुका है कि देश में ऊर्जा की कुल आवश्यकता के 99.6 प्रतिशत भाग की उपलब्धता होने लगी है, जो वर्ष 2012-13 में 91.3 प्रतिशत ही हो पाती थी। वर्ष 2013-14 से प्रतिवर्ष ऊर्जा की कुल आवश्यकता एवं ऊर्जा की उपलब्धता के बीच का अंतर लगातार कम होता चला गया है, जो वर्ष 2012-13 के 8.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2020-21 (अप्रैल-अगस्त) में 0.4 प्रतिशत रह गया है।


अन्तर्राष्ट्रीय ऊर्जा संस्थान द्वारा भी अपने एक समीक्षा प्रतिवेदन में बताया गया है कि भारत में 95 प्रतिशत लोगों के घरों में बिजली मुहैया कराई जा चुकी है और 98 प्रतिशत परिवारों की खाना पकाने के लिए, स्वच्छ ईंधन तक पहुँच बन गई है। साथ ही, उक्त समीक्षा प्रतिवेदन में यह भी बताया गया है कि ऊर्जा के क्षेत्र में निजी निवेश की मात्रा भी बढ़ी है, जिससे भारत में ऊर्जा के क्षेत्र की दक्षता में सुधार हुआ है। उसकी वजह से ऊर्जा की क़ीमतों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है एवं ऊर्जा की क़ीमतें सस्ती हुई हैं। सामान्य लोगों की ऊर्जा तक पहुँच बढ़ी है। ऊर्जा की दक्षता बढ़ने के चलते ऊर्जा की माँग में 15 प्रतिशत की कमी आई है। ऊर्जा की माँग में कमी का मतलब 30 करोड़ कार्बन के उत्सर्जन को टाला जा सका है। अन्तर्राष्ट्रीय ऊर्जा संस्थान द्वारा किया गया उक्त मूल्याँकन एक स्वतंत्र मूल्याँकन है अतः इस समीक्षा प्रतिवेदन का अपने आप में बहुत बड़ा महत्व है।

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अब ऐसा आभास होने लगा है कि देश में कृषि क्षेत्र, आर्थिक विकास में अपने योगदान को बढ़ाने की ओर अग्रसर है। इसका हल्का-सा इशारा वित्तीय वर्ष 2020-21 की प्रथम तिमाही में कृषि एवं सहायक गतिविधियों के क्षेत्र में दर्ज की गई 3.4 प्रतिशत की वृद्धि दर से मिलता है। जबकि इसी दौरान, सकल घरेलू उत्पाद में 22.6 प्रतिशत की कमी रही है। कोरोना महामारी से विशेष रूप से भवन निर्माण, व्यापार, होटल व्यवसाय, यातायात कार्य, सेवा क्षेत्र, विनिर्माण क्षेत्र आदि पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ा है। परंतु कृषि क्षेत्र पर कोरोना महामारी का प्रभाव नहीं पड़ा है। इसी प्रकार मार्च से जून 2020 की तिमाही में देश से कृषि क्षेत्र में निर्यात भी 23.24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए रुपए 25,553 करोड़ तक पहुंच गए हैं। साथ ही, अप्रैल से जुलाई 2020 के दौरान राष्ट्रीय फ़र्टिलायज़र लिमिटेड ने फ़र्टिलायज़र की 18.79 लाख मीट्रिक टन की रिकॉर्ड बिक्री की है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान की गई 15.64 लाख मीट्रिक टन की बिक्री से 20 प्रतिशत अधिक है। देश में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक देखने में आ रही है, जिसके चलते वाहनों की बिक्री सितम्बर 2020 माह में, पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक रही है। बुआई की दृष्टि से कृषि क्षेत्र में विस्तार हुआ है, जिसके चलते इस वर्ष ख़रीफ़ सीज़न की पैदावार अच्छी होने के आसार हैं। इस वर्ष, वर्षा भी सामान्य से 9 प्रतिशत अधिक रही है, जिसके कारण, ख़रीफ़ सीज़न के बाद रबी सीज़न में भी अधिक पैदावार होने की सम्भावना बलवती हो गई है। अतः अब ग्रामीण क्षेत्रों से उत्पादों की मांग में वृद्धि दिखाई देगी।


ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों की संख्या के मामले में भारत पूरे विश्व में अब प्रथम स्थान पर आ गया है एवं ऑर्गेनिक खेती के क्षेत्र (एरिया) के मामले में भारत पूरे विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत से ऑर्गेनिक खेती के निर्यात में शामिल हैं फ़्लैक्स बीज, सीसेम, सोयाबीन, चाय, मेडिसिनल प्लांट, चावल एवं दालें। इसी प्रकार, दूध के उत्पादन में भी भारत विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है एवं कृषि क्षेत्र में उत्पादन के लिहाज़ से भारत पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर आ गया है। परंतु, भारत से कृषि निर्यात मात्र 1 प्रतिशत है इसमें गेहूँ, दालें, फल आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। लेकिन हमारे देश के पास बाग़वानी एवं मसालों आदि का निर्यात करने का जो सामर्थ्य है उसे भुनाया नहीं जा सका है। कृषि उत्पादन में तो हमारे देश ने काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है एवं इस क्षेत्र में हम लगभग आत्मनिर्भर बन गए हैं परंतु इस क्षेत्र से निर्यात का अच्छा स्तर प्राप्त नहीं हो पा रहा है।


भारत, फ़ार्मा क्षेत्र में भी विश्व में प्रथम पंक्ति में आ गया है। आज भारत 100 से अधिक देशों को दवाईयों का निर्यात करता है इसके पीछे मुख्य कारण है भारतीय दवाओं की गुणवत्ता एवं भारतीय कम्पनियों की साख। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा बाज़ार है। दुनिया में बीमारियों के टीकों की 50 प्रतिशत मांग भारतीय दवा कम्पनियों से पूरी होती है। अमेरिका में 40 प्रतिशत पूर्ति भारतीय दवाओं से होती है। आज भारतीय फ़ार्मा उद्योग का आकार 4000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। जेनेरिक दवाओं के निर्यात में तो भारत की जैसे बादशाहत है। पूरे विश्व में दवाओं के निर्यात में भारत की लगभग 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।

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साथ ही भारत पूरे विश्व में, इलाज के लिहाज़ से पसंद किया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। वर्ष 2013 में 59,129 मेडिकल वीज़ा जारी किए गए थे जबकि वर्ष 2017 में बढ़कर 495,056 मेडिकल वीज़ा जारी हुए। विकसित देशों में इलाज बहुत मंहगा है, जबकि भारत में विकसित देशों में ख़र्च होने वाली राशि की तुलना में केवल 20/30 प्रतिशत तक राशि में इलाज हो जाता है। साथ ही भारत में वैश्विक स्तर की चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध करायी जा रही हैं। अतः भारत में मेडिकल टूरिज़्म फल फूल रहा है। पूरे विश्व के चिकित्सा पर्यटन में भारत का हिस्सा क़रीब 18 प्रतिशत है।


सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तो भारत ने विकसित देशों में जाकर अपना लोहा मनवा लिया है। आज अमेरिकी में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारतीय ही चला रहे हैं। अमेरिका में जारी किए जाने वाले एच1बी वीज़ा की कुल संख्या में से क़रीब करीब 70 प्रतिशत हिस्सा भारतीयों को जारी होता है। इनमें से कई कम्पनियों में मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी आज भारतीय ही हैं।

 

- प्रहलाद सबनानी

सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक

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