By अनन्या मिश्रा | May 01, 2023
हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री में जब भी महान गायकों की बात आती है तो उनमें किशोर कुमार, लता मंगेशकर मोहम्मद रफी के साथ ही मन्ना डे का नाम जरूर लिया जाता है। आज ही के यानी की 1 मई को मन्ना डे का जन्म हुआ था। अपने सिंगिग करियर में मन्ना डे ने एक से बढ़कर एक सदाबहार गाने गाए हैं। साल 1943 में आई फिल्म 'तमन्ना' से उन्होंने बॉलीवुड में गाने की शुरुआत की थी। बता दें कि मन्ना डे 50 से 70 के दशक में उस चौकड़ी का हिस्सा रहे, जिन्होंने हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री पर राज किया है। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सिरी पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में...
जन्म
मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 में कोलकाता में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनका असली नाम प्रबोध चंद्र था। मन्ना को बचपन से ही संगीत में रुचि थी। लेकिन उनके पिता उन्हें एक वकील बनाना चाहते थे। लेकिन मन्ना डे ने अपनी दिल की आवाज को सुना और संगीत की दुनिया में कदम रखा। मन्ना डे ने संगीत की शुरूआती शिक्षा अपने चाचा चाचा उस्ताद कृष्ण चंद्र डे और उस्ताद दाबिर खान से ली थी। मन्ना डे की अनोखी शैली उनको बाकी सिंगरों से अलग बनाती थी।
सिंगर के तौर पर सफर
मन्ना डे ने कई सारे क्लासिकल और सेमी क्लासिकल गानों को अपनी आवाज दी है। आप 'लागा चुनरी में दाग', 'एक चतुर नार' 'बाबू समझो इशारे' आदि गानों से उनकी गायिकी की कला का अंदाजा लगा सकते हैं। पांच दशकों के अपने करियर में मन्ना ने बंगाली, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़ और असमी भाषा में 3500 से अदिक गाने गाए हैं। बाकी गायकों से मन्ना डे के गानों की पसंद अलग थी। मन्ना डे के गाने पेचीदा हुआ करते थे। हालांकि उनको कठिन गाने गाना पसंद था।
मन्ना डे, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के गानों को तो बड़े आराम से गा सकते थे, लेकिन उनके गाने गाना अन्य सिंगरों के लिए काफी मुश्किल था। शास्त्रीय संगीत पर भी उनकी पकड़ काफी मजबूत थी। उन्होंने फिल्मों के लिए कई मजाकिया अंदाज के गाने भी गाए हैं। आज भी लोग उनके गानों को सुनना पसंद करते हैं। बता दें कि फिल्म 'पड़ोसन' का गाना 'एक चतुर नार' आज भी कई सिंगिंग रियलिटी शो में कंटेस्टेंट को गाते हुए देखा जा सकता है। यह गाना गाना इतना मुश्किल है कि संगीत जगत से जुड़े लोगों को आज भी हैरानी होती है कि इतने मुश्किल गाने को कोई सिंगर इतनी आसानी से कैसे गा सकता है।
रफी भी थे मन्ना के फैन
कहा तो यहां तक जाता था कि जब भी कोई गाना किशोर कुमार और मोहम्मद रफी जैसे सिंगर नहीं गा पाते थे। तब संगीतकार अपना गाना लेकर सीधा मन्ना डे के पास पहुंच जाते थे। मन्ना डे की प्रतिभा का लोहा मोहम्मद रफी जैसे बड़े सिंगर भी मानते थे। रफी साहब कई बार खुले आम मन्ना डे की तारीफ करते थे। रफी कहते थे कि लोग उनके गाने सुनते हैं, लेकिन वह मन्ना डे के गाने सुनते हैं। बता दें कि मन्ना डे को पद्मश्री और पद्म विभूषण से भी नवाजा जा चुका है।
90 के दशक में गानों से दूरी
मन्ना डे ने अपने सिंगिंग करियर में कई भाषाओं में जबरदस्त गाने गाए हैं। सिंगिंग के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाले मन्ना ने 90 के दशक में उन्होंने म्यूजिक इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया था। साल 1991 में फिल्म प्रहार में उन्होंने 'हमीरी मुठ्ठी में' गाने के लिए आखिरी बार अपनी आवाज दी थी।
मौत
अपने करियर में 3000 से अधिक गाना गाने वाले मन्ना डे को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह अपने आखिरी समय में फेफड़े में संक्रमण की बीमारी से जूझ रहे थे। 94 साल की उम्र में 24 अक्टूबर 2013 को उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।