मनीष तिवारी ने शाह पर कसा तंज, बोले- इतिहास के अपने ज्ञान पर मंथन करें गृह मंत्री

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 28, 2019

नयी दिल्ली। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा कश्मीर समस्या के लिए पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीतियों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद कांग्रेस ने शुक्रवार को पलटवार किया और कहा कि शाह को इतिहास के अपने ज्ञान पर मंथन करना चाहिए। पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यह भी दावा किया कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाने और जम्मू कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 5 और 9 के तहत आरक्षण के प्रावधान में संशोधन के प्रस्ताव पर लोकसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए शाह ने विपक्ष के सवालों का जवाब नहीं दिया और सिर्फ बातों को घुमाने की कोशिश की।

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उन्होंने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन काल बढ़ाने पर लोकसभा में विस्तृत चर्चा हुई। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि विपक्ष की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब देने की जगह गृह मंत्री ने बात को घुमाने की कोशिश की। कांग्रेस के लोकसभा सदस्य ने सवाल किया कि अगर जम्मू-कश्मीर में सबकुछ ठीक है तो फिर राष्ट्रपति शासन की अवधि क्यों बढ़ाई जा जा रही है? क्या जम्मू-कश्मीर की वर्तमान परिस्थिति के लिए भाजपा-पीडीपी गठबंधन और दोनों की सरकार जिम्मेदार नहीं है? तिवारी ने दावा किया कि भाजपा की यह आदत है कि अपनी नाकामियां छिपाने के लिए वो इतिहास में अपने अलावा दूसरे सभी को दोषी ठहराते हैं। अब तो मनगढ़ंत और तथ्यों से परे घटनाक्रम बताने की कोशिश बढ़ती जा रही है। गृह मंत्री को इतिहास के अपने ज्ञान पर मंथन करने की जरूरत है।

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उन्होंने कहा कि गृह मंत्री ने भारत के विभाजन का जिक्र किया और उन्होंने इसके लिए कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की। जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा के पूर्वजों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में रत्ती भर भी भूमिका नहीं निभाई। आरएसएस ने आजादी की लड़ाई से खुद को अलग कर लिया था। कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार सदन के भीतर और बाहर पिछले 70 साल के घटनाक्रम पर कहीं भी बहस करना चाहे तो हम तैयार हैं। गौरतलब है कि गृह मंत्री ने लोकसभा में शुक्रवार को कश्मीर की वर्तमान स्थिति को लेकर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उन्होंने (पंडित नेहरू) तब के गृह मंत्री एवं उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को भी इस विषय पर विश्वास में नहीं लिया।

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