By डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Nov 21, 2018
पहले देश के लोगों को यही बड़ा धक्का लगा था कि सीबीआई के दो सबसे बड़े अधिकारी एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। भारत की भ्रष्टतम सरकारों के जमाने में भी ऐसे वाकए पहले कभी नहीं हुए। लेकिन अब तो खुद सरकार ही फंसती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय पर ही कीचड़ उछलने लगा है। सीबीआई के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल मनीष सिन्हा जो कि भ्रष्टाचार-विरोधी विभाग की देखरेख करते हैं, ने आरोप लगाया है कि इस भ्रष्टाचार के मामले को दबाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोभाल, राज्य मंत्री हरि चौधरी, सतर्कता आयोग कमिश्नर के.बी. चौधरी, विधि सचिव सुरेशचंद्र और रॉ के विशेष सचिव सामंत गोयल ने भी पूरा जोर लगाया है।
इस समय अजित दोभाल भारत के वास्तविक उप-प्रधानमंत्री हैं। दोभाल के आगे सभी मंत्री फीके हैं। फिर भी गुजरात से आए हरिभाई चौधरी और दो-तीन सचिव के नाम भी उछले हैं। मनीष सिन्हा ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाकर कहा है कि उनका तबादला रातोंरात नागपुर इसलिए किया गया कि वे राकेश अस्थाना की जांच कर रहे थे। राकेश अस्थाना पर सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा रिश्वतखोरी के मामले की जांच करवा रहे थे। देश के साधारण नागरिकों को यह बात समझ में नहीं आ रही है कि जिस अफसर पर रिश्वतखोरी की जांच चल रही थी, उस पर तो कोई मुकदमा नहीं चल रहा है लेकिन जो अफसर (वर्मा) उस पर जांच करवा रहा था, उस पर सर्वोच्च न्यायालय मुकदमा चला रहा है।
दूसरी बात यह कि जांच करने वाले अफसरों को एक झटके में दिल्ली से दूर अंडमान-निकोबार तक फेंक दिया गया है। ऐसे ही अफसर हैं- मनीष सिन्हा। किसी नौकरी करते हुए अफसर की क्या मजाल कि वह किसी मंत्री या किसी मंत्री से भी ज्यादा ताकतवर आदमी पर अदालत में आरोप लगा दे ? उसने इतनी हिम्मत की, इसका मतलब है कि दाल में कुछ काला है। सिन्हा वही अफसर हैं, जो नीरव मोदी और मेहुल चोकसी द्वारा की गई अरबों रु. की लूटपाट की जांच कर रहे थे। सिन्हा ने उक्त घोटालों के बारे में इन अफसरों की टेलिफोन पर चलने वाली गुप्त बातों के टेपों का हवाला देते हुए जांच की मांग की है। यह पता नहीं कि सिन्हा अदालत के सामने अपने आरोपों को सिद्ध कर पाएंगे या नहीं, लेकिन किसी सरकार पर उसके अफसरों द्वारा ऐसे आरोपों को लगाना ही क्या सिद्ध करता है ? क्या यह नहीं कि उस सरकार का नैतिक बल समाप्त हो चुका है ? यह मामला राफेल से भी ज्यादा गंभीर होता जा रहा है। यदि इस मामले में खुद नरेंद्र मोदी ने पहल नहीं कि तो 2019 में लेने के देने पड़ जाएंगे। राफेल को समझना आम आदमी के लिए जरा मुश्किल है लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार का यह मामला कहीं भाजपा के गले का पत्थर न बन जाए ?